2016-12-14 16:39:00

ख्रीस्त जयंती आशा का संदेश, संत पापा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 14 दिसम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल 6वें सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्म शिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो

सुप्रभात,

हम ख्रीस्त जयंती के करीब पहुँच रहें हैं और नबी इसायस पुनः एक बार हमें अपने को आशा के साथ सुसमाचार के संदेश हेतु खोलने का निमंत्रण देते हैं जो हमारे लिए मुक्ति का संदेश लेकर आता है।

नबी इसायस के 52वें अध्याय की शुरूआत येरुसालेम के आहृवान के साथ होती है जहाँ वे उसे उठने, अपने शरीर से धूल गर्दो और बेड़ियों को झाड़ते हुए नये सुन्दर वस्त्र धारण करने को कहते हैं क्योंकि मुक्तिदाता ईश्वर अपने लोगों की मुक्ति हेतु आ रहें हैं। (इसा.1-3) वे कहते हैं “उस दिन मेरी प्रजा मेरा नाम जान जायेगी। वह अनुभव करेगी कि मैं वही हूँ, जो कहता है, “मैं यहाँ हूँ।” (6)

ईश्वर का “मैं यहाँ हूँ” कहना मानव हेतु मुक्तिविधान, उनकी सारी बातें को अपने में सम्माहित करता है। यह बालीलोन की दासता से छुटकारा को दिखलाता है जहाँ इस्रराएली विश्वास में अपने ईश्वर को पुनः प्राप्त करते हुए उनके महान कार्यों का स्तुति गान करते हैं। वे आनंद के गीत गाते हैं,

जो शांति घोषित करता है, सुसमाचार सुनाता है, कल्याण का संदेश लाता और सियोन से कहता है, “तेरा ईश्वर राज्य घोषित करता है”–इस प्रकार शुभ संदेश सुनाने वाले के चरण पर्वतों पर कितने रमणीय हैं।

येरुसलेम के खँडहर आनन्द विभोर हो कर जयकार करें। प्रभु-ईश्वर अपनी प्रजा को सांत्वना देता और येरुसलेम का उद्धार करता है।

प्रभु-ईश्वर ने समस्त राष्ट्रों के देखते-देखते अपना पावन सामर्थ्य प्रदर्शित किया है। पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है। (इसा.52.7, 9-10)

नबी इसायस द्वारा कहे इन शब्दों में शांति के चमत्कार झलकते हैं जिसे हम सभी अपने जीवन में पाने की तमन्ना रखते हैं। शांति का शुभ संदेश ईश्वर की चुनी हुई प्रजा हेतु मुक्ति, स्वतंत्रता और ईश्वरीय राज्य की घोषणा करता है।

ईश्वर अपने लोगों को नहीं भूले हैं वे उन पर बुराई को विजय होने नहीं देते हैं क्योंकि उनकी कृपा और निष्ठा हमारे पापों से महान है। हमें इसे अपने जीवन में अनुभव करने की जरूर है लेकिन अपनी कठोरता के कारण हम ऐसा नहीं कर पाते हैं। उन्होंने विश्वासी समुदाय को प्रश्न करते हुए कहा, “कौन सबसे बड़ा है ईश्वर या पाप?” “कौन अन्ततः विजयी होता है?” उन्होंने कहा, “ईश्वर हमारे बड़े से बड़े पापों पर विजयी होते हैं। वे हमारे सबसे शर्मनाक पापों पर भी विजयी होते हैं। हमारे पाप कितने ही भंयकर और बुरे क्योंकि न हो ईश्वर उस सबों पर विजयी होते हैं। संत पापा ने अपने अगले सवाल को ईशशस्त्रियों के लिए रखते हुए कहा, “वह कौन-सा हथियार है जो ईश्वर को पापों पर विजयी दिलाती है?” “प्रेम”। यह हमारे लिए यही प्रदर्शित करता है कि ईश्वर विजयी हैं और वे “ईश्वर राज्य” करते हैं। वे अपने प्रेम में मानव जाति की ओर झुकते, उन पर अपनी करुणा प्रदर्शित करते और उनमें ईश्वर के सुन्दर रुप को बचाते हैं, क्योंकि पाप हमें कुरूप बना देती है। इस तरह हम ईश्वर के महान प्रेम को ख्रीस्त जयंती के रुप में मनाते हैं जिसकी अनुभूति हमें निश्चय ही येसु के पास्का में होती है। ख्रीस्त जयंती की सबसे बड़ी आन्तरिक खुशी हमारे लिए शांति है क्योंकि ईश्वर हमारे पापों को क्षमा करते और हममें से प्रत्येक को अपनी करुणा से भर देते हैं जो हमारे लिए जन्म पर्व की खुशी है।

उन्होंने कहा कि जब हमारे जीवन में नकारात्मक सच्चाइयों के कारण सारी चीज़ें धूमिल नजर आतीं और हमारा विश्वास डगमगाने लगता, जब जीवन की सारी चीज़ें व्यर्थ जान पड़ती हैं तो ऐसी परिस्थिति में हमारे लिए यह संदेश दिया जाता है कि ईश्वर हमारे जीवन में कुछ नया करने आ रहे हैं, वे शांति की स्थापना करने आ रहें हैं। उन्होंने अपनी बाहों को हमारे लिए खुला रखा है जिससे वे हमें स्वतंत्रता और सांत्वना प्रदान कर सकें। हमारे जीवन में बुराई विजयी नहीं होगी और दुःखों का बादल सदैव बना नहीं रहेगा क्योंकि ईश्वर हमारे साथ हैं।

संत पापा ने कहा कि हमें येरुसलेम के समान अपने में उठने का आहृवान किया जा रहा है। हमें आशा में ईश्वर के नये पुत्र-पुत्रियाँ बनने का निमंत्रण दिया जा रहा है जिससे हम ज्योति की संतान की तरह ईश्वर के राज्य हेतु कार्य कर सकें। उन्होंने कहा कि एक ख्रीस्तीय के लिए अपनी आशा को खोना अच्छी बात नहीं होती। “मेरे लिए सारी चीजें खत्म हो गई हैं मैं अपने जीवन में किसी अच्छी चीज की आशा नहीं करता।” यदि वह अपने जीवन में आशा के नये क्षितिज को नहीं देख पाता और अपने हृदय में एक दीवार को खड़ा करता तो ऐसी स्थिति में ईश्वर अपनी क्षमाशीलता में उसके हृदय की दीवार को ढाह देते हैं। ईश्वर हमें रोज दिन आशा से भर देते हैं जिसकी अनुभूति हमें बेतलेहेम की चरनी में येसु की ओर नजरें फेरने पर होती है। ईश्वर हमें अपने संदेशवाहक के रुप में भेजते हैं क्योंकि दुनिया इस शुभ संदेश, न्याय, सच्चाई और शांति की भूखी और प्यासी है।

बालक येसु को चरनी में देखते हुए दुनिया के छोटे लोग यह अनुभव करें कि ईश्वर की प्रतिज्ञा पूरी हुई है और ईश्वर का संदेश सच्चे रुप में मानव के लिए आया है। नये जन्मे बालक के रुप में जिसे बहुत सारी चीजों की जरूरत है, जो कपड़ों में चपेट कर चरनी में रखा गया है ईश्वर की एक शक्ति की निशानी है जो दुनिया को बचाती है। हम अपना हृदय खोलें क्योंकि जनम पर्व इसकी माँग करता है। जब हम अपने हृदयों को खोलते तो ईश्वरीय आश्चर्य को देखते और अनुभव करते हैं जो एक गरीब, कमजोर बालक के रुप में, ईश्वरीय महानता का परित्याग कर हमारे बीच आते जिससे वे सदैव हमारे करीब रह सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें आगमन काल की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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