2016-11-28 16:00:00

ख्रीस्त से मुलाकात के रास्ते पर हमारे मनोभाव


वाटिकन सिटी, सोमवार, 28 नवम्बर 2016 (वीआर सेदोक): ″ख्रीस्तीय विश्वास कोई सिद्धांत या दर्शनशास्त्र नहीं बल्कि येसु के साथ मुलाकात है।″ यह बात संत पापा फ्राँसिस ने सोमवार को  वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग प्रवचन में कही।

आगमन काल की शुरूआत पर उन्होंने कहा कि येसु ख्रीस्त से सच्ची मुलाकात हेतु हम अपने रास्ते, तीन मनोभावों को धारण करें, प्रार्थना में चौकसी, दान देने में उदारता तथा प्रसन्नचित प्रशंसा।

संत पापा ने प्रवचन में येसु से मुलाकात विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा, ″येसु से मुलाकात की कृपा, हम आगमन काल में प्राप्त करना चाहते हैं।″ उन्होंने बाईबिल में येसु का कई प्रकार के लोगों से मुलाक़ात का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि आगमन काल हमें आगे बढ़ने और येसु के साथ मुलाकात करने का अवसर प्रदान करता है, अतः यह चुपचाप बैठने का समय नहीं है।   

संत पापा ने विश्वासियों के चिंतन हेतु कुछ प्रश्नों को सामने रखा, हम किस तरह येसु से मुलाकात कर सकते हैं? किस मनोभाव के साथ? येसु से मुलाकात करने हेतु मुझे अपने आपको किस तरह तैयार करना है?   

आगमन काल में उन्होंने तीन मनोभावों को धारण करने की सलाह दी, प्रार्थना में चौकसी, दान देने में उदारता तथा प्रसन्नचित प्रशंसा। उन्होंने कहा कि हमें चौकस रहकर प्रार्थना करना है, प्रेम के कार्य में सक्रिय होना है तथा न केवल दान देना किन्तु उन लोगों को साथ देना है जिन्हें हमारी आवश्यकता है, विशेषकर, परिवार में। साथ ही साथ प्रभु के आगमन की आशा में आनन्द का अनुभव करना। उन्होंने कहा कि उनसे मुलाकात हमारे लिए विस्मयकारी हो सकता है क्योंकि स्वयं प्रभु विस्मयकारी हैं। वे चुपचाप खड़े नहीं रहते, जब हम उनकी ओर आगे बढ़ते हैं तो वे भी हमारी ओर आते हैं। जब हम उन से मुलाकात करेंगे तो हमें मालूम होगा कि वे भी हमसे मुलाकात करने हेतु कितने व्यकुल रहते हैं। बशर्ते कि हम में उनसे मुलाकात करने की चाह हो और यदि हममें ऐसी चाह है तब वे हमारी मदद करते हैं, वे जीवन भर हमारा साथ देते हैं ऐसे क्षणों में भी जब हम उनसे दूर चले जाते हैं। वे उड़ाव पुत्र के पिता के समान हमारा इंतजार करते।  

संत पापा ने कहा कि विश्वास कोई सिद्धांत नहीं है बल्कि येसु से मुलाकात है। कई बार हम उनके करीब आना और देखना चाहते हैं कि क्या वे हमसे मुलाकात करने आते हैं किन्तु इससे बढ़कर महत्वपूर्ण है प्रभु से मुलाकात।

संत पापा ने फरीसियों का उदाहरण देते हुए कहा, ″नियम के पंडितों को समकालीन सभी सिद्धांतों और नीतियों का ज्ञान था किन्तु उनमें विश्वास का अभाव था क्योंकि उनका हृदय ईश्वर से दूर चला गया था।

उन्होंने प्रार्थना करने की सलाह दी कि ईश्वर हमारे हृदयों में भले कार्यों द्वारा प्रभु के पास पहुँचने एवं उनसे मुलाकात करने की इच्छा जागृत करे।








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