2016-11-24 11:10:00

पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल, स्तोत्र ग्रन्थ 78 वाँ भजन (भाग-5)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"ईश्वर ने मिस्र देश, तानिस के मैदान में उनके पूर्वजों को चमत्कार दिखाया था। उसने समुद्र विभाजित कर उन्हें पार कराया, उसने जल को बाँध की तरह खड़ा कर दिया। वह उन्हें दिन में बादल द्वारा और हर रात को अग्नि के प्रकाश द्वारा ले चलता था। उसने मरुभूमि में चट्टानें फोड़कर मानो अगाध गर्त्त में से उन्हें जल पिलाया। उसने चट्टान में से जलधाराएँ निकालीं और पानी को नदियों की तरह बहाया। फिर भी वे उसके विरुद्ध पाप करते रहे और मरुभूमि में सर्वोच्च ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते रहे।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के 11 से लेकर 17 तक के पद जिनकी व्याख्या  हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। 78 वें भजन के प्रथम पदों के समान ही इन पदों में भी उपदेशक ईश्वर के कार्यों का बखान करना जारी रखता है। वह इस्राएली लोगों के इतिहास के पन्नों को उलटते हुए उन्हें स्मरण दिलाता है कि जब वे मिस्र से प्रतिज्ञात देश की ओर निकले थे तब यदि ईश्वर अपने चमत्कार नहीं दिखाते तो इस्राएली जाति प्रतिज्ञात देश तक कभी भी पहुँच नहीं पाती। वस्तुतः, उक्त पदों में प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ की कहानी निहित है जिसमें मिस्र से पारगमन की जटिल यात्रा और संकटों को पार करने में ईश्वर से मिली मदद का विवरण मिलता है।

श्रोताओ, ईश्वर ने इस्राएली जाति की हर प्रकार से रक्षा की थी किन्तु रास्ते में इस्राएली लोगों का विश्वास डगमगा गया था। मार्ग में पड़नेवाली कठिनाइयों को देखकर उन्होंने ईश्वर को कोसा और उनपर भरोसा रखने के बजाय काम वासना में लग गये। उन्होंने सोने का बछड़ा बनाया और उसकी पूजा करने लगे। 78 वें भजन का उपदेशक मिस्र से शुरु हुई इस्राएली जाति की जटिल यात्रा के दौरान हुई घटनाओं द्वारा हमें स्मरण दिलाता है कि हालांकि, ईश प्रजा कहलानेवाले लोगों ने ईश्वर पर भरोसा नहीं रखा उनके नियमों को तोड़ा किन्तु इसके बावजूद प्रभु ने उनकी रक्षा की, उन्होंने मरुभूमि की चट्टानें फोड़कर उन्हें जल पिलाया और उनका मार्गदर्शन किया। उसी प्रकार आज भी वे हमारी रक्षा को तैयार हैं, भले ही हम उन्हें भूल जायें ईश्वर हमें कभी नहीं भुलाते। आज भी वे हमें संकटों के सागर से बचाते हैं ज़रूरत है तो केवल उनपर भरोसा रखने की, उनके नियमों के अनुकूल जीवन यापन की और आपत्ति के क्षण उन्हें पुकारने की।

आगे, 78 वें भजन के 18 वें, 19 वें और 20 वें पदों में भजनकार यह दर्शाता है कि ईश्वर की अनुकम्पा प्राप्त करने के बावजूद लोग उन पर भरोसा नहीं रख पाये, इन पदों में वह बताता है कि वे प्रभु के चमत्कारों को देख लेने के बाद भी उनपर विश्वास करने में असफल रहे। ये पद इस प्रकार हैं:  "उन्होंने अपनी रुचि का भोजन मांगा और इस प्रकार प्रभु की परीक्षा ली। उन्होंने ईश्वर की निन्दा करते हुए यह कहा: "क्या ईश्वर मरुभूमि में हमारे लिये भोजन का प्रबन्ध कर सकता है? उसने तो चट्टान पर प्रहार किया और उसमें से जल की नदियाँ फूट निकलीं। किन्तु क्या वह अपनी प्रजा के लिये रोटी और माँस का प्रबन्ध भी कर सकता है?"

श्रोताओ, इन शब्दों में लोगों की कृतघ्नता व्यक्त हुई है। प्रभु के महान कार्यों के लिये उनके प्रति धन्यवाद देने के बजाय वे उन्हें केवल कोसते ही नहीं रहे बल्कि उन्होंने उनकी परीक्षा लेने का भी दुस्साहस किया। भजनकार ने हमारे समक्ष इन पदों को रखकर यह दर्शाना चाहा है कि उस युग के लोग अपने जीवन में सम्पादित घटनाओं में ईश्वर के चमत्कारों को देख नहीं पाये थे, एक प्रकार से इन महान कार्यों के प्रति उनकी आँखें अन्धी हो गई थी। जिन घटनाओं से वे गुज़र रहे थे उनमें अर्थ नहीं ढूँढ़ पाये थे। उन्होंने ईश्वर द्वारा प्रदत्त सम्विदा के नियमों को तोड़ा और उनके कार्यों पर प्रश्न उठाये कि कैसे ईश्वर चट्टान से पानी निकाल सकते हैं? कैसे वे सागर से रास्ता निकाल उन्हें पार जाने दे सकते हैं? यह सब कैसे हुआ उनकी समझ से बाहर था, उनकी बुद्धि के परे था। यह सब इसलिये हुआ क्योंकि उनमें विश्वास की कमी थी और विश्वास की कमी ही लोगों में शंकाओं को उत्पन्न करती हैं। हम प्रभु के हर कार्य पर प्रश्न नहीं उठा सकते। उनपर अटकलें नहीं लगा सकते, उन्हें हम केवल विश्वास की आँखों से परख सकते हैं क्योंकि ईश्वर के रहस्य को समझना मानव बुद्धि के परे है, उनकी लीला अपरमपार है।

इस स्थल पर श्रोताओ को स्मरण दिला दें कि स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन का रचयिता दृष्टान्तों में बात कर रहा था। ठीक उसी प्रकार जैसे ईश्वर के महान कार्यों को प्रकट करने के लिये प्रभु येसु ख्रीस्त ने भी दृष्टान्तों में शिक्षा दी। इन दृष्टान्तों के पीछे छिपी शिक्षा को ग्रहण कर ही मनुष्य ईश्वर के महान कार्यों और चमत्कारों की थाह तक पहुंच सकता है। 78 वें भजन के दूसरे पद में भजनकार स्वयं कहता है "मैं तुम लोगों को एक दृष्टान्त सुनाऊँगा, मैं अतीत के रहस्य खोल दूँगा।"  जब हम इन शब्दों का मर्म समझ पायेंगे तब ही हम ईश्वर के कार्यों को पहचान पायेंगे। अन्यथा ईश्वर विषयक बातें हमें मन गढ़न्त कहानी प्रतीत होंगी। उदाहरण के लिये बता दें कि इस भजन के 13 वें पद में हम सागर विभाजन के बारे में पढ़ते हैं, "उसने समुद्र विभाजित कर उन्हें पार कराया, उसने जल को बाँध की तरह खड़ा कर दिया।" आम इन्सान के लिये इस बात पर विश्वास करना असम्भव है, भला समुद्र को कैसे विभाजित किया जा सकता था? किन्तु यदि हम निर्गमन ग्रन्थ के 14 वें अध्याय के 21 पद पर ग़ौर करें तो इसमें लिखा हैः "तब मूसा ने सागर के ऊपर हाथ बढ़ाया और प्रभु ने रात भर पूर्व की ओर ज़ोरों की हवा भेजकर सागर को पीछे हटा दिया। सागर दो भागों में बँटकर बीच में सूख गया।"

इस प्रकार श्रोताओ हम देखते हैं कि 78 वें भजन के "उसने जल को बाँध की तरह खड़ा कर दिया" शब्द भजनकार की रचना का परिणाम थे और जो कुछ मिस्र से प्रतिज्ञात देश में जानेवालों के साथ हुआ वह ईश्वर के चमत्कारों का परिणाम था। भजनकार के लिये ईश्वर अपने लोगों के लिये वह दीवार बनकर उनकी रक्षा करते हैं जैसे दाऊद के लिये ईश्वर उसके गढ़ और उसकी शरणशिला थे। 








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