2016-11-21 15:37:00

मेल-मिलाप और क्षमा के द्वार को कभी बंद न करें


वाटिकन सिटी, सोमवार, 21 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने ख्रीस्त राजा महोत्सव के अवसर पर संत प्रेत्रुस के प्रांगण में पवित्र ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए करुणा की जयंती वर्ष का समापन किया।

उन्होंने ख्रीस्तयाग के दौरान अपने प्रवचन में कहा कि प्रभु येसु ख्रीस्त, दुनिया के राजा का महोत्सव कलीसियाई पूजन विधि और करुणा की जयंती वर्ष की पराकाष्ठा है। आज का सुसमाचार हमारे लिए आश्चर्यजनक ढ़ंग उनके मुक्ति कार्य की चर्चा करता और उन्हें दुनिया के राजा के रुप में पेश करता है। ईश्वर का चुना हुआ ख्रीस्त राजा (लूका. 23.35.37) शक्ति और महिमा विहीन हमारे सामने पेश किये जाते हैं। क्रूस में उनका टाँग जाना उनकी विजयी की अपेक्षा उन पर विजयी-सा प्रतीत होता है। उनका राजत्व विरोधाभास लगता है क्योंकि उसका सिंहासन क्रूस है उनके मुकुट काँटों के हैं, उनका कोई राजदण्ड नहीं है उनके वस्त्र चमकदार नहीं, लेकिन वे वस्त्र विहीन हैं, उनकी हाथों में कोई अँगूठी नहीं है वरन् उन्हें कीलों से छेदित कर दिया गया है, उनके पास कोई धन नहीं है बल्कि उन्हें चांदी के तीस सिक्कों में बेच दिया जाता है।

संत पापा ने कहा कि येसु का राज्य सचमुच में इस संसार का नहीं है। (यो. 18.36) लेकिन संत पौलुस कलोसियों के नाम अपने पत्र में हमें बतलाते हैं, कि हम उनके द्वारा मुक्ति और क्षमा पाते हैं। (कलो.1.13-14) उनका राज्य दुनिया की शान-शौकत नहीं वरन् उनका प्रेम है, एक प्रेम जो अपने मिलन में सारी चीजों को नया कर देता है। उन्होंने हमारे प्रेम के खातिर अपने को दीन-हीन बना लिया और मानव कष्टों में अपना जीवन यापन किया। वे हमारे खातिर अन्याय, धोखा, परित्यक्त अनुभव किये और घोर दुःख उठाते हुए मार डाले और दफनाये गये। हमारे राजा ने दुनिया में इस तरह की यात्रा की जिससे वे हमारा आलिंगन कर सकें और सारी मानव जाति को बचा सके। उन्होंने हमें दोषी नहीं ठहराया न ही उन्होंने हम पर विजय पाई। उन्होंने हमारी स्वतंत्रता का हनन कभी नहीं किया वरन् अपनी नम्रता पूर्ण प्रेम में उस राह को चलते गये जो हमारे जीवन के सभी पापों को क्षमा करता, सभी चीजें के लिए आशा जाग्रति करते हुए सारी चीजों को व्यवस्थित करता है। यह उनका प्रेम है जो सभी चीजों में निरंतर विजयी होता और हमारे जीवन के सभी शत्रुओं पाप, मृत्यु और भय पर विजयी होता है।

संत पापा ने कहा कि आज हम ईश्वर के स्वभाव प्रेम की घोषणा करते हैं जो कभी खत्म नहीं होता, जिसके द्वारा येसु सारी दुनिया में विजयी प्राप्त करते और पूरे इतिहास के राजा बन जाते हैं। हम येसु को अपने राजा के रुप में पाकर आनन्द विभोर होते हैं क्योंकि उनके प्रेम की शक्ति पाप को कृपा में, मृत्यु को पुनरुत्थान और भय को विश्वास में परिणत कर देती है।

संत पापा ने कहा यदि हम येसु को दुनिया का राजा कहते लेकिन व्यक्तिगत रुप से उन्हें अपने दिल का राजा स्वीकार नहीं करते और उनके राजा होने के तौर तरीके को नहीं माने तो सभी चीजें व्यर्थ प्रतीत होती हैं। आज के सुसमाचार का परिदृश्य तीन तरह के लोगों के मनोभावों को हमारे लिए पेश करता हैः लोग जो येसु को देख रहे थे, वे क्रूस के निकट खड़े थे और डाकू जो उनके साथ टंगे थे।

पहला समूह जिसका जिक्र करते हुए सुसमाचार कहता है कि लोग बगल में खड़े होकर देख रहे थे। (लूका.23. 35) उनमें से कोई कुछ नहीं कहता और कोई पास नहीं आता था। वे दूर खड़े होकर नजारा देखते थे कि क्या हो रहा है। ये वही लोग थे जो अपनी जरूरत की घड़ी में येसु के पास गिरे पड़ते थे लेकिन अभी वे उन से दूर हैं। हमारे जीवन की परिस्थिति और हमारे अधूरे ख्वाब हमें भी येसु के नम्रता पूर्ण प्रेम से दूर रहने को प्रलोभन देते हैं क्योंकि हम अपने जीवन को तकलीफ और मुसीबत में नहीं डालना चाहते हैं। इस तरह उनके निकट आने के बदले हम उनसे दूर रहना पसंद करते हैं लेकिन येसु हमें अपने प्रेम में जीने हेतु निमंत्रण देते हैं। हम रोज दिन अपने आप से पूछे, प्रेम मुझे से किस चीज की माँग करता है? मुझे जीवन में आगे बढ़ने हेतु क्या प्रेरित करता है? मैं अपने जीवन से येसु को क्या उत्तर देता हूँ?   

दूसरा एक समूह है जिसमें नेता, सैनिक और एक कुकर्मी है। वे येसु की खिल्लियाँ उड़ते हैं। वे उन्हें उसकाते हैं, “अपने को बचा”। (लूका. 23.35,37.39) यह एक कठोर परीक्षा है। वे येसु की परीक्षा उसी तरह लेते हैं जैसे कि शैतान ने उनकी परीक्षा ली थी। (लूका.4.1-13) यह ईश्वर की इच्छा का परित्याग कर दुनिया की रीत अनुसार जीवन यापन करने का प्रलोभन देता है। “यदि तू ईश्वर का पुत्र है तो क्रूस से नीचे आ और अपनी शक्ति और प्रभुत्व को हमें दिखा”, यह परीक्षा प्रेम पर सीधे तौर से आक्रमण करती है। “तू दूसरों को नहीं, अपने आप को बचा”।(37, 39) यह सुसमाचार की पहली और सबसे कठिन परीक्षा है। येसु इसके उत्तर में अपनी ओर से कुछ प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं। वे अपनी सुरक्षा हेतु कोई पहल नहीं करते हैं। येसु अपने और अपने राजत्व का विश्वास दिलाने हेतु कोई प्रयास नहीं करते हैं। वे अपने कृष्ट और दुःख भरे इस क्षण में भी हमें प्रेम करना जारी रखते और अपने पिता की इच्छा पूरी करते हैं।

येसु के राजत्व के भागी होने हेतु हमें आज अपनी परीक्षा के विरुद्ध जूझना का निमंत्रण दिया जाता है। वे हमें हमारी निगाहें को अपने क्रूस की ओर गड़ाये रखने का आहृवान करते हैं जिससे हम उनके प्रति निष्ठावान बने रहें। हम कितनी बार दुनिया के ऐशों-आराम और निश्चितताओं की चाह रखते हैं जिसे दुनिया हमें देती है। हमें अपने क्रूस से कितनी बार नीचे उतरने का प्रलोभन मिलता है। ईश्वर का राज्य कैसे क्रियाशील है हम उसे बहुत बार भूल जाते हैं क्योंकि हम अपनी शक्ति और सफलता के द्वारा सुसमाचार का प्रचार करना चाहते हैं। करुणा की यह जयंती वर्ष हमें अपने मूलभूत आधार को जाने और उसकी ओर लौटने हेतु प्रेरित करती है। करुणा का यह समय हमें राजा येसु के असल चेहरे को दिखालाता है जो पास्का में प्रदीप्त होता है। यह कलीसिया का युवा और सुन्दर चेहरा है जो उस समय और अधिक चमकीला हो जाता जब हम अपने प्रेरितिक कार्य में दूसरों का स्वागत करते, अपने में स्वतंत्र और विश्वस्त होते तथा अपनी निर्धनता के बावजूद येसु के प्रेम में धनी बने रहते हैं। सुसमाचार का केन्द-विन्दु करुणा है जो हमें अपनी आदतों और उन कार्यों का परित्याग करने की मांग करता है जो कि ईश्वरीय राज्य की सेवा में बाधक बनते हैं। करुणा हमें अपने जीवन में येसु की नम्रता पूर्व राजत्व का आलिंगन करने को प्रेरित करती है।

सुसमाचार में एक दूसरा व्यक्ति जो येसु के निकट आता वह है भला डाकू, “येसु जब आप अपने राज्य में आयेंगे तो मुझे याद कीजिएगा”।(42) वह व्यक्ति येसु की ओर देखते हुए उनके राज्य पर विश्वास करता है। वह अपनी गलतियों में येसु का पास लौटकर आता है। वह येसु से अपने को याद करने की विनय करता और इस तरह उनकी करुणा का अनुभव करता है। “तुम आज ही मेरे साथ स्वर्ग में होगे”।(43) संत पापा ने कहा कि हम जैसे ही ईश्वर को मौका देते, तो वे हमें याद करते हैं। वे हमारे पापों को पूर्णरूपेण भूल जाते हैं क्योंकि उनकी स्मरण शक्ति हमारी तरह नहीं है जो हमारी बुराइयों का हिसाब रखें। वे हमारे पापों को नहीं वरन् हम में से हर एक को याद करते हैं क्योंकि हम उनकी प्रिय संतान हैं। वे विश्वास करते हैं कि हम अपने में एक नये जीवन की शुरूआत कर सकते हैं।

संत पापा ने कहा आइए हम इस कृपा हेतु निवदेन करें कि हम अपने मेल-मिलाप और क्षमा के द्वार को कभी बंद न करें बल्कि इस तथ्य को जान सकें कि हम कैसे बुराई, उदासीनता से ऊपर उठकर आशा के मार्ग में अग्रसर हो सकते हैं। ईश्वर हम सबों पर जिस तरह विश्वास करते हैं हम भी उसी तरह आशावान बने रहते हुए दूसरों को अवसर प्रदान करें क्योंकि पवित्र द्वार के बंद होने पर भी करुणा का सच्चा मार्ग जो कि येसु ख्रीस्त का हृदय है हमारे लिए सदा खुला रहता है। उनके छेदित बगल से हमारे लिए सदैव करुणा, सांत्वना और आशा प्रवाहित होती रहती है।

कितने सारे तीर्थयात्रियों ने पवित्र द्वार में प्रवेश किया और ईश्वर की करुणा का एहसास किया है। हम ईश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि हमने उनकी करुणा का अनुभव किया है जिस के द्वारा दूसरों के लिए करुणा का माध्यम बनते हैं। आइए हम एक साथ इस मार्ग पर चलें। माता मरियम हम सबों की सहायता करें जो हमें अपने आंचल तले रखना चाहती हैं क्योंकि क्रूस के नीचे खड़ी रह कर उन्होंने भले डाकू को क्षमा का वरदान पाते देखा और येसु के शिष्य को अपने पुत्र के समान ग्रहण किया। वे करुणा की माता हैं जिन्हें हम अपने को समर्पित करते हैं, हमारी कोई भी परिस्थिति, हमारी कोई भी प्रार्थना, जब हम उनकी करुणा की निगाहों की ओर उठाते हैं तो वे सुनी जाती हैं। 








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