2016-11-16 14:41:00

करुणा के कार्यों पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 16 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज की धर्मशिक्षा माला में हम, हमारे विरूद्ध गलती करने वाले के प्रति अपनी धैर्य की चर्चा करेंगे। हम सब अपने परेशान होने वाली परिस्थितियों से वाकिफ हैं, विशेषकर, जब हम राह चलते  हुए किसी से मिलते या फोन में किसी को किसी के बारे में लगातार शिकायत या निंदा करते हुए सुनते हैं जो हमारे लिए परेशानी का सबब बनता है। कई बार तो हमारे अपने ही लोग जो हमारे अति करीब रहते हैं हमारे लिए परेशानी का कारण बन जाते हैं। हम उनके बारे में क्या करें क्योंकि करुणा के कार्य इसे भी अपने में समाहित करता है।

धर्मग्रंथ में हम ईश्वर को लोगों की शिकायतें सुनते हुए पाते हैं। निर्गमन ग्रंथ में इस्ररायलों की शिकायत असहनीय हो जाती हैं। मिस्र देश में अपनी गुलामी के समय वे ईश्वर से गिड़गिडाते हैं और दसता से बचाये जाने के पूर्व वे मरुभूमि में खाना को ले कर शिकायत करते हैं। ईश्वर उनके लिए मन्ना और बटेर की व्यवस्था करते लेकिन फिर भी उनका कुड़कुड़ाना समाप्त नहीं होता है। मूसा ईश्वर और उनकी चुनी हुई प्रजा के बीच मध्यस्थ का कार्य करते हैं। याहवे अपने लोगों की शिकायतों के प्रति धैर्यवान बने रहते और इस भांति विश्वास में बने रहने की शिक्षा हमें देते हैं।

यह हमारे लिए एक सवाल लेकर आता है कि क्या हम दूसरों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं? हम बहुत बार इस संदर्भ में दूसरों की निंदा शिकायत करते हैं लेकिन क्या हम अपने में यह अनुभव करने की कोशिश करते हैं कि हमारी शिकायतों से दूसरों को कैसा लगता है। 

संत पापा ने कहा कि येसु अपने तीन वर्षों के प्रेरितिक कार्य के दौरान कितने धैर्यवान बने रहे। एक बार जब वे अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे तो जेम्स और जोन की माता ने उन्हें रोक लिया और अपने बेटों के लिए सम्मान जनक ओहदे की मांग की। (मती.20.12) येसु ने धैर्य पूर्व उत्तर देते हुए कहा कि यह पिता द्वारा उनके लिए निर्धारित किया गया है जो सेवा पूर्ण कार्य करते हैं। यह हमें करुणा के दो आध्यात्मिक कार्यों की झलक देती है पापियों को चेतावनी और अज्ञानियों की शिक्षा। यहाँ हमारा ध्यान हमारे उस प्रयास की ओर जाता है जहाँ हम दूसरों के विश्वास को मजबूत करने और उन्हें जीवन जीने की शिक्षा देते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं कितने ही माता-पिता, धर्मबन्धुओं और प्रचारकों के बारे में सोचता हूँ जो बच्चों को विश्वास की धर्म शिक्षा देते हैं। उन्हें कितना प्रयास करना पड़ता हैं जब लड़के धर्म ज्ञान की अपेक्षा खेलना पसंद करते हैं।
जीवन के मूलभूत बातों को एक-दूसरे के साथ साझा करना हमारे लिए कितना सुन्दर और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके द्वारा हम जीवन जीने के मकसद को एक-दूसरे के साथ बाँटते हैं। हमारी मुलाकात बहुधा ऐसे लोगों से होती है जो व्यर्थ और क्षणभंगुर चीजों में अपना जीवन यापन करते हैं कभी-कभी ऐसा इसलिए होता है कि उन्हें किसी ने जीवन को गम्भीरतापूर्वक देखने की चुनौती नहीं दी। जीवन की सार्थकता पर अन्यों को दी गई हमारी शिक्षा उनके लिए जीवन का कारण बनती है। ईश्वर हमारे जीवन के द्वारा क्या चाहते हैं और उनकी इच्छा की पूर्ति में हमारा प्रत्युत्तर कैसा होना चाहिए यह शिक्षा दूसरे के जीवन में खुशी की बयार लेकर आती हैं। येसु का जेम्स और जोन की माता को दिये गये उत्तर के द्वारा येसु अपने शिष्यों और अपने अनुयायियों को ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, चापलूसी और परीक्षाओं से बचने का निर्देश देते हैं। दूसरों को सलाह, फटकार और शिक्षा देना हम में यह मनोभाव न लाये कि हम दूसरों से उत्तम हैं वरन् यह हमें अपने को उन बुराइयों से निरंतर सजग रहने हेतु मदद करें। हम येसु के वचनों को न भुले “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो। ” (लूका. 6.41) पवित्र आत्मा हमें धैर्यवान बनाये जिससे हम नम्रता और सरलता में एक दूसरों को ईश्वरीय प्रेमपूर्ण सलाह दे सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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