2016-11-11 14:46:00

ख्रीस्तीय एकता हेतु संत पापा फ्राँसिस का आहृवान


वाटिकन रेडियो, शुक्रवार, 11 नवम्बर 2016 (वी आर) संत पापा फ्राँसिस ने गुरुवार को ख्रीस्तीय एकता हेतु गठित परमधर्मपीठीय के परियोजना सभा में अपने मनोभाव को प्रकट करते हुए कहा कि उनकी प्रमुख इच्छाओं में से एक ख्रीस्तीय एकता है जिसे सभी विश्वासी आपस में साझा कर सकते हैं। 

वाटिकन रेडियो के फिलिप्पा हिचेन से अपने वार्ता के दौरान अन्तरकलीसियाई वार्ता समुदाय के वरिष्ठ सदस्यों ने संत पापा के मनोभावों को जाहिर करते हुए कहा कि इस वर्ष उन्होंने विश्व के कई मुख्य नेताओं और काथलिक समुदाय के अगुवों से मुलाकात की है। अपने फिलहाल की स्वीडेन यात्रा और लुथेरन-काथलिक सुधारवादी जयंती की याद करते हुए उन्होंने कहा कि लुंद की उनकी यह प्रेरितिक यात्रा सन् 1952 के विश्व कलीसियाई सम्मेलन की याद दिलाती है जो कलीसियाओं को सभी मुद्दों में एक साथ कार्य करने की माँग करता है सिवाय उनको छोड़कर जिनमें एक गहरी असमानता झलकती है। 

उन्होंने कलीसियाई एकता पर जोर देते हुए कहा कि यह हमारे विश्वास की एक अति महत्वपूर्ण आवश्यकता है जहाँ हम व्यक्ति और समुदाय के रुप में येसु ख्रीस्त की इच्छा के अनुसार अपने जीवन में परिवर्तन लाते हैं। उन्होंने कहा कि एकता ईश्वर की ओर से हमारे लिए दिया गया एक उपहार है जिसे हमें अपने बीच स्वागत करते हुए अन्यों के लिए प्रदर्शित करना है। यह हमारा लक्ष्य मात्र न हो वरन् इस एकता को हमें एक यात्रा के रुप में देखने की जरूरत है जहाँ हम धैर्य, दृढ़ निश्चय, प्रयास और समर्पण को धारण करते हुए अपने में यह अनुभव करते हैं कि हम पापी हैं और हमारे लिए ईश्वर के हृदय में करुणा भरी हुई है। उन्होंने कहा कि हम याद रखें कि जब हम कार्य, प्रार्थना और जरूरतमंद लोगों की सेवा एक साथ करते हैं तो हम अपनी एकता का साक्ष्य देते हैं।

हमारे ईशशस्त्रीकरण, विधि-विधान समारोह, आध्यात्मिकता और कलीसियाई नियमावली में अन्तर है  जो कि सच्ची प्रेरितिक परंपरा पर आधारित है यह एक दूसरे के लिए भय का कारण नहीं वरन् कलीसियाई एकता की एक निधि है। इनका दमन करना जैसा कि अतीत में हुआ हमारे लिए पवित्र आत्मा की कृपाओं के विरुद जाना है जिन्होंने हमें विभिन्न प्रकार के वरदानों से विभूषित किया  है।

उन्होंने एक कलीसिया द्वारा अन्य कलीसियाओं के एकीकरण के प्रयास को कलीसियाई एकता की यात्रा में जहर की संज्ञा दी। हमारी सच्ची एकता हमारे स्वयं के बातों-विचारों और नियमों पर ध्यान देने नहीं वरन् ईश्वर के वचन को सुनने, ग्रहण करने और दुनिया को इसका साक्ष्य देने की माँग करती है। 








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