2016-11-10 09:55:00

प्रेरक मोतीः प्रेरक मोतीः सन्त लियो महान (निधन -461)


वाटिकन सिटी, 10 नवम्बर सन् 2016:

इटली के तोस्काना प्रान्त में सन्त लियो महान का जन्म हुआ था। जब वे उपयाजक थे तब सम्राट वेलेनटाईन तृतीय की ओर से उन्हें, मध्यस्थ रूप में, फ्राँस के गॉल शहर भेज दिया गया था। सन् 440 ई. से सन् 461 ई. तक लियो काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष थे तथा कलीसिया के हित में किये अपने अनुपम कार्यों के कारण उन्हें सन्त पापा लियो महान का शीर्षक प्रदान किया गया है। सन्त पापा लियो के प्रयासों के फलस्वरूप ही सम्राट वेलेनटाईन ने रोम के धर्माध्यक्ष तथा काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष, सन्त पापा, के आधिपत्य को मान्यता प्रदान की तथा 445 ई. में इस विष्य पर एक राजाज्ञा निकाली।

कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष को प्रेषित एक पत्र में सन्त पापा लियो ने प्रभु येसु ख्रीस्त के देहधारण का धर्मसिद्धान्त लिख भेजा था। कॉन्सटेनटीनोपल के प्राधिधर्माध्यक्ष पहले ही यूटीखेस की आलोचना कर चुके थे (अपधर्मी यूटीखेस ने एफेसुस की पहली धर्मसभा में नेस्टोरियुस द्वारा प्रस्तावित सभी धर्मसिद्धान्तों का विरोध किया था)। तदोपरान्त, कालसेडॉन की धर्मसभा में प्रभु येसु ख्रीस्त के व्यक्तित्व से सम्बन्धित, सन्त पापा लियो के पत्र की, काथलिक विश्वास की अभिव्यक्ति रूप में, पुष्टि की गई थी।

पाँचवी शताब्दी के बर्बर आक्रमण की उथल-पुथल के दौरान सन्त पापा लियो द्वारा सम्पादित कार्यों की प्रशंसा सभी धर्मनिरपेक्ष ऐतिहासिक ग्रन्थों में की गई है। हुन आतिल्ला नामक बर्बर सेनानायक के साथ उनका साक्षात्कार तथा रोम के प्रवेश द्वार से ही उसे अपनी सेना सहित लौट जाने के लिये राजी करने में सन्त पापा लियो ने अपनी महान वाग्मिता का परिचय दिया था जिसके सम्मानार्थ आज भी एक ऐतिहासिक स्मारक खड़ा है। जेनसेरिक के अधीन जब लुटेरों ने रोम पर कब्ज़ा कर लिया था तब उन्होंने शहर को न लूटने और उसके निवासियों को नुकसान न पहुँचाने हेतु आक्रमणकारियों को राजी कर लिया था। सन् 461 ई. में सन्त पापा का निधन हो गया था। उन्होंने ऐसे कई पत्र विरासत रूप में छोड़े हैं जिनका गहन ऐतिहासिक महत्व है। सन्त लियो महान का पर्व 10 नवम्बर को मनाया जाता है।

चिन्तनः "पृथ्वी के शासको! न्याय से प्रेम रखो। प्रभु के विषय में ऊँचे विचार रखो और निष्कपट हृदय से उसे खोजते रहो; क्योंकि जो उसकी परीक्षा नहीं लेते, वे उसे प्राप्त करते हैं। प्रभु अपने को उन लोगों पर प्रकट करता है, जो उस पर अविश्वास नहीं करते" (प्रज्ञा ग्रन्थ 1:1-2)। 








All the contents on this site are copyrighted ©.