2016-11-10 10:14:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ 78 वाँ (भाग-3)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"उसने याकूब के लिये एक नियम लागू किया; उसने इस्राएल के लिये एक विधान निर्धारित किया। उसने हमारे पूर्वजों को यह आज्ञा दी कि वे उसे अपने पुत्रों को सिखायें, जिससे भविष्य में उत्पन्न होनेवाले उनके पुत्र उसे जान जायें और वे भी उसे अपने पुत्रों को बतायें।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन के पाँचवे एवं छठवें पदों के शब्द जिनकी व्याख्या  हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। 78 वाँ भजन एक उपदेश है जिसमें उपदेशक अपने पूर्वजों से सुनी बातें मन्दिर में उपस्थित भक्त समुदाय के समक्ष प्रस्तुत करता है। उस युग में ऐतिहासिक एवं आप बीती घटनाओं को अपनी सन्तानों अथवा भावी पीढ़ियों तक प्रसारित करने का एकमात्र माध्यम मुख का शब्द हुआ करता था और इसीलिये उपदेशक चाहता था कि जो भी अच्छी बातें उसने अपने पूर्वज़ों से सुनी थीं वे सब की सब बातें वह आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचाये। इस बात का हमने सिंहावलोकन किया था कि 78 वें भजन का उपदेशक संकेत देता है कि उपदेशक का कार्य ईश्वर के महान कार्यों के बारे में बताना होता है। उसका कार्य प्रचार करना, शिक्षा देना तथा परामर्श प्रदान करना होता है और हमारा काम होता है उसे ध्यानपूर्वक सुनना तथा उससे मिली शिक्षा को अपने जीवन पर अमल करना।

श्रोताओ, विश्वास परिवारों में पोषित और विकसित होता है। विश्वासी परिवार में पोषित होने वाला व्यक्ति ही विश्वास के मर्म को समझ पाता है। जब माता-पिता या अभिभावक ईश नियमों का पालन करते हुए जीवन यापन करते हैं तथा अपने बच्चों के संग-संग कृपा एवं समझदारी में जीवन यापन करते हैं तब विश्वास के बीज प्रस्फुटित होते और पनपते हैं। तब प्रभु ईश्वर का परम रहस्य विश्वासी परिवार में प्रसारित होता है और वह परिवार कृपा की संहिता के अधीन रहकर जीवन यापन करने में समर्थ बनता है। इसी अर्थ में, भजनकार के अनुसार पहल प्रभु ईश्वर द्वारा की गई। ईश्वर ने, 78 वें भजन के उक्त पदों के अनुसार, "याकूब के लिये एक नियम लागू किया; उसने इस्राएल के लिये एक विधान निर्धारित किया"। ग़ौर करें कि याकूब और इस्राएल एक ही हैं, सम्पूर्ण ईश प्रजा के पूर्वज।

श्रोताओ, इस तथ्य की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि साक्ष्य स्मृति को ताज़ा करता है। किसी के द्वारा दिया गया साक्ष्य बताता है कि अतीत में क्या हुआ था अथवा हमें चेतावनी देता है कि कौनसा रास्ता हम अपनायें और कौनसा नहीं। हममें इस तथ्य के प्रति चेतना जागृत करता है कि साक्ष्य जिस बात का प्रतिनिधित्व करता है वह बात ईश्वर से आती है।

78 वें भजन के छठवें पद का "विधान" शब्द, वस्तुतः, भजन के पहले पद में निहित "शिक्षा" शब्द का ही पर्याय है। जब हम शिक्षा को स्वीकार करते हैं तब हमारी आँखें "मूसा की पाँच पुस्तकों" के प्रति खुल जाती हैं। "तोराह" में प्रभु ईश्वर ने अपनी इच्छा को प्रकट किया ताकि आनेवाली सभी पीढ़ियाँ अतीत के अनुभव से शिक्षा प्राप्त कर सके। तात्पर्य यह कि ईश प्रजा विनम्रतापूर्वक ईश्वर द्वारा दिये गये नियमों पर चलकर जीवन की तीर्थयात्रा पूरी कर सकती है। मीकाह के ग्रन्थ के छठवें अध्याय के आठवें पद में लिखा है, "मनुष्य तुमको बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है – न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।"    

आगे, 78 वें भजन के सात से लेकर दस तक के पदों में हम पढ़ते हैं: "यह इसलिये हुआ कि वे प्रभु पर भरोसा रखें, ईश्वर के महान कार्य नहीं भुलायें, उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें और अपने पूर्वजों जैसे नहीं बनें। वह एक हठीली और विद्रोही पीढ़ी थीः एक ऐसी पीढ़ी जिसका हृदय दृढ़ नहीं, जिसका मन ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं। एफ्रईम के अनुभवी धनुर्धारी पुत्रों ने युद्ध के दिन पीठ दिखाई क्योंकि उन्होंने ईश्वर के विधान का पालन नहीं किया था, उन्होंने उसके नियमों पर चलना स्वीकार नहीं किया था।"

श्रोताओ, प्राचीन व्यवस्थान के युग में स्तोत्र ग्रन्थ के भजन रचे गये थे। ये भजन, दाऊद के अतिरिक्त, कई लोगों ने लिखे इसलिये यह पता लगाना सम्भव नहीं कि 78 वाँ भजन किसने रचा था। बाईबिल पंडितों का मानना है कि सम्भवतः यह भजन एफ्रईम  के पतन के बाद नबी इसायाह द्वारा रचा गया था, इसका अर्थ है मसीह के जन्म से 720 वर्ष पूर्व। वस्तुतः, एफ्रईम इस्राएल के कुलों में से सर्वाधिक विशाल कुल का नाम था।

श्रोताओ, 78 वाँ भजन एक लम्बी कहानी है जिसमें राजा दाऊद के काल तक ईश प्रजा का इतिहास  निहित है। यह भजन दर्शाता है कि ईश्वर भले हैं तथा अपनी प्रजा के प्रति वे सदैव दयालु रहे हैं, हालाँकि, प्रजा ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं रही। 78 वें भजन के आठवें पद के अनुसार, "वह एक हठीली और विद्रोही पीढ़ी थीः एक ऐसी पीढ़ी जिसका हृदय दृढ़ नहीं, जिसका मन ईश्वर के प्रति निष्ठावान नहीं रहा।" नवें और दसवें पदों में भजनकार कहता है, "एफ्रईम के अनुभवी धनुर्धारी पुत्रों ने युद्ध के दिन पीठ दिखाई क्योंकि उन्होंने ईश्वर के विधान का पालन नहीं किया था, उन्होंने उसके नियमों पर चलना स्वीकार नहीं किया था।" उन्होंने ईश आज्ञाओं का पालन नहीं किया।

श्रोताओ, आज भी यही हो रहा है। मनुष्य अपने अहंकार और स्वार्थ के कारण ईश नियमों पर चलने से इनकार कर रहा है। प्रश्न उठता है कि जब ईश्वर हमारे प्रति दयावान हैं, हम पर मेहरबान हैं तो क्योंकर हम ईश्वर की बातों को नहीं मानते? उनके आदेशों के अनुपालन से इनकार क्यों करते हैं?  78 वाँ भजन इन्हीं प्रश्नों का उत्तर पाने में हमारी मदद करता है, इसके सातवें और आठवें पदों से यह बात स्पष्ट हो जाती है जिनमें लिखा है, "यह इसलिये हुआ कि वे प्रभु पर भरोसा रखें, ईश्वर के महान कार्य नहीं भुलायें, उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें और अपने पूर्वजों जैसे नहीं बनें।"








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