2016-11-09 15:23:00

करुणा के कार्यों पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 09 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

अपने तीन वर्षों के प्रेरितिक कार्य के दौरान येसु ख्रीस्त का जीवन लोगों से मिलने-जुलने से भरा रहा जहाँ वे बीमारों का विशेष ख्याल करते हैं। सुसमाचार के कितने ही दृश्यों में हम उन्हें अंधे, लगड़े, बहरें, कोढियों, अपदूतग्रस्तों, मिर्गी पीड़ितों और बीमारों से मिलते हुए सुनते हैं। येसु उनके पास जाते और उन्हें चंगाई प्रदान करते हैं। अतः हमें भी बीमारों की सेवा और उनकी भेंट करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि इसके साथ-साथ हमें उन लोगों के निकट भी रहने की जरूरत है जो क़ैदख़ानों में हैं क्योंकि बीमार और कैदी अपनी स्वतंत्रता के सीमित दायरे में रहते हैं। येसु हमारी कमजोरियों और तुष्टियों के बावजूद हमें एक अवसर प्रदान करते हैं कि हम सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्त रहें। इस तरह हमारे अच्छे स्वास्थ्य में वे हमें अपने से मिलने का एक सुअवसर प्रदान करते हैं।

अपनी करुणा के कार्यों द्वारा वे हमें भी मानवता की सेवा में अपना हाथ बंटाने को कहते हैं। जो बीमार हैं वे अपने में अकेलापन का अनुभव करते हैं। हम इस तथ्य को गुप्त नहीं रख सकते कि बीमारी किस तरह हमारे जीवन में एक गहरे अकेलेपन की अनुभूति लेकर आती है। बीमारों से हमारी मुलाकात उनके लिए एक अच्छी दवाई की तरह होती है क्योंकि यह उनके अकेलेपन को कम करती है। हमारी मुस्कान, स्नेह भरे स्पर्श छोटी चीज़ें हैं लेकिन यह उनके लिए बहुत बड़ी है जो अपने में परित्यक्त अनुभव करते हैं। संत पापा ने कहा कि हम में से कितने हैं जो रोगग्रस्त लोगों से अस्पतालों और घरों में भेंट करने हेतु समर्पित हैं। यह स्वयं सेवा का एक कीमती कार्य है। जब हम यह कार्य ईश्वर के नाम पर करते हैं तो यह करुणा की अभिव्यक्ति और प्रभावकारी बनती है। हम रोगियों का परित्याग न करें। वर्तमान में अस्पताल सचमुच में “कष्ट के निवस स्थल” बन रहे हैं यद्यपि वहाँ सेवा और सहानुभूति की झलक मिलती है।

संत पापा ने कहा कि मैं उन लोगों के बारे में सोचता हूँ जो क़ैदख़ानों में बंद हैं। येसु उन्हें भी नहीं भूलते हैं। वे हमें उनसे मुलाकात करने हेतु निमंत्रण देते हैं। जेल में अपनी गलतियों की सज़ा काट रहे लोगों को भी ईश्वर प्रेम करते हैं। एक ख्रीस्तीय के रुप में ईश्वर हमें उनके जीवन में प्रवेश करने तथा उनकी भावनाओं और दुःखों को समझने का आह्वान करते हैं क्योंकि स्वतंत्रता की कमी निश्चित रुप से मानवीय जीवन के सबसे बड़े दुखों में से एक है।  

कैदियों से हमारी मुलाकात करुणा के विशेष कार्यों में से एक है जो हमें सामाजिक न्याय के विभिन्न रूपों का एक अंग बनाती है। इस तरह हम किसी को दोषी नहीं ठहराते हैं बल्कि करुणा के माध्यम बनते हुए एक दूसरे हेतु अपनी सेवा और सम्मान के भाव प्रदर्शित करते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं बहुधा क़ैदख़ाने में पड़े लोगों के बारे में सोचता हूँ। मैं आश्चर्य करता हूँ कि किस बात ने उन्हें अपराध करने को प्रेरित किया और वे कैसे विभिन्न तरह की बुराइयों का शिकार हो गये। इस सारी चीजों के बावजूद उन्हें हमारी करुणा और निकटता की आवश्यकता है क्योंकि ईश्वर की करुणा विस्मयकारी कार्य करती है। मैंने कितने कैदियों की आँखों में आंसुओं के सैलाब देखे हैं क्योंकि वे अपने जीवन में अपनों और अन्यों के प्रेम का अनुभव करते हैं।

हम यह न भूलें कि येसु और शिष्यों को भी कैदखाने का अनुभव करना पड़ा था। अपने दुःखभोग में येसु को अपराधी की भांति गिरफ्तार किया गया। उन्हें कोड़ों की मार खानी पड़ी और काँटों का मुकुट पहना करा उनकी खिल्ली उड़ाई गई यद्यपि वे निर्दोष थे। प्रेरित पेत्रुस और पौलुस को भी जेल जाना पड़ा लेकिन उन्होंने वहाँ भी ईश्वर के वचनों को प्रचारित किया। यह हमें द्रवित करता है कि किस तरह पौलुस कैद खाने में बंद अकेलेपन का अनुभव करते और अपने मित्रों द्वारा भेंट की आशा करते हैं। (2 तिमथी 4. 9-15)

संत पापा ने कहा कि करुणा के कार्य प्राचीनतम लेकिन अनंत हैं। हम इसके प्रति उदासीन न हों लेकिन ईश्वरीय करुणा का माध्यम बने जिससे हम लोगों की खोई प्रतिष्ठा और खुशी को पुनःस्थापित कर सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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