2016-11-02 15:21:00

स्वीडेन की प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर संत पापा रोम लौटते, विमान में पत्रकारों से बातचीत


विमान, बुधवार, 2 नवम्बर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने अपनी स्वीडेन प्रेरितिक यात्रा की समाप्ति के उपरान्त रोम लौटने के क्रम में सभी पत्रकारों और संचार माध्यमों से जुड़े लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए उनके सवालों का उत्तर दिया।
स्वीडेन की पत्रकार एलिन के द्वारा सीरिया और इराक के लोगों का प्रवासी के रुप में यूरोपीय देशों में हो रहे पलायन और इससे यूरोपीय देशों की संस्कृति के खतरे, फिलहाल स्वीडेन की सीमा क्षेत्रों में प्रवासियों की रोक पर पूछे गये सवाल का उत्तर देते हुए संत पापा ने कहा कि मैं सर्वप्रथम स्वीडेन की उदार हृदयता हेतु उनका धन्यवाद करता हूँ क्योंकि उन्होंने सैन्य तानाशाही काल के दौरान अर्जेटीना, पेरु, और चीली के लोगों को अपने देश में प्रवासियों के रुप में पनाह दी। स्वीडेन का इतिहास प्रवासियों के संबंध में गौरवपूर्ण रहा है क्योंकि उन्होंने न केवल उनका अपने देश में स्वागत किया वरन् शीघ्रता पूर्वक उनके लिए आश्रय, विद्यालय और कार्यों की व्यवस्था की जिससे वे देश में एकजुटता का अनुभव करें। मुझे बतलाये गये आँकड़ों के मुताबिक देश की जनसंख्या करीब नौ मिलियन है जिसमें करीबन साढे आठ मिलियन लोग प्रवासी और शरणार्थी या उनके बच्चें हैं यद्यपि उन्होंने कहा कि मैं अपने इस आँकड़े में गलत हो सकता हूँ। उन्होंने कहा कि दूसरी बात कि हमें प्रवासियों और शरणार्थियों के बीच अन्तर स्पष्ट करने की जरूरत है। प्रवासियों के साथ हम कुछ नियमों की तरह व्यवहार करते हैं क्योंकि यह एक अधिकार है जबकि शरणार्थी वे हैं जो युद्ध, दुःख, भुखमरी और अपनी कठिन परिस्थिति के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान प्रलायन करते हैं जिन्हें अधिक सेवा और कार्य करने की जरूरत है। मैं इस बात को पुनः दुहराना चाहता हूँ कि स्वीडेन ने इस संदर्भ में हमारे लिए एक मिसाल पेश की है और इस संदर्भ में मैं कहना चाहूँगा कि यूरोप को भयभीत होने की जरूर नहीं है क्योंकि यहाँ लगातार संस्कृतियों का समन्वयन होता रहा है। उन्होंने कहा कि यूरोप प्रवासियों से बना है। उन देशों के बारे जिन्होंने अपने सीमा क्षेत्रों को प्रवासियों के लिए बंद कर दिया है मैं सोचता हूँ कि सिद्धान्त के अनुसार आप एक शरणार्थी हेतु अपना हृदय बंद नहीं कर सकते हैं। यह हमें उनके लिए विधि व्यवस्था निर्धारित करने की मांग करता है जिससे उनकी उचित देख-रेख हो सके और वे हमारे संस्कृति के अंग बन सके। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो हम अपने में संकुचित रह जाते हैं और हमारी इस सोच का मुख्य कारण भय है।

अन्ना ख्रीटीना काप्पेलिन स्वीडेन दूरदर्शन के कार्यकर्ता द्वारा महिलाओं की पुरोहिताई पर पूछे गये सवाल के उत्तर में संत पापा ने कहा कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में कई कार्यों को बेहतर ढंग से कर सकती हैं, कलीसिया के धर्म सिद्धान्तों के क्षेत्र में भी। लेकिन काथलिक कलीसिया के दो आयाम हैं, पहला है परमाध्याक्षीय आयाम जिसका स्रोत प्रेरित संत पेत्रुस और प्रेरितमंडल है जो धर्माध्यक्षों की मेषपालीय प्रेरिताई में निहित है तथा दूसरा है मरियम पक्ष जो कलीसिया का नारी सुलभ आयाम है। संत पापा ने कहा कि मैंने इसकी चर्चा कई बार की है। मैं आश्चर्य करता हूँ कि काथलिक कलीसिया में शस्त्र और रहस्यवाद में कौन सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। कलीसिया येसु की वधू है जो वैवाहिक संबंध को बयाँ करती है। इस रहस्य की गहराई में हम कलीसिया के दोनों आयामों को समझ सकते हैं। कलीसिया हमारी माता है और इस नारी पक्ष के बिना हम कलीसिया की कल्पना नहीं कर सकते हैं।

स्पानी पत्रकार अस्टीन ईभेरेई द्वारा पारंपरिक कलीसियाओं, विशेषकर, आर्थोडोक्स, एंगलिकन और लूथरन कलीसियाओं से एकतावर्धक धार्मिक मिलन की पहल और इसके परिणाम के बारे में पूछे गये सवाल के उत्तर में संत पापा ने कहा कि यह पुनर्मिलन हेतु किया जा रहा प्रयास है जहाँ हम अपनी विगत गलतियों के लिए क्षमा की याचना करते हैं। क्षमा मांगने के द्वारा हमारे घावों की चंगाई होती है। इस मिलन और आपसी वार्ता के द्वारा हमारे बीच आपसी समझ और एक-दूसरे के प्रति सम्मान में बढ़ोतरी के साथ-साथ अन्तर कलीसियाओं में किन कार्यों को विशेष रूप से करने की जरूरत है इसकी जानकारी हमें मिलती है जो हमारी एकता को दृढ़ता प्रदान करती है।

स्पानी रेडियो “कोप” के एवा फेरनांडेज कादेना ने संत पापा से पूछा कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोला मादूरो से मुलाकात तथा वार्ता की शुरूआत, पर उनका क्या विचार है।

इस सवाल के जवाब में संत पापा ने बतलाया कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने उनसे मुलाकात करने की अनुमति मांगी है। उन्होंने इसका सकारात्मक जवाब देने की बात करते हुए कहा, ″सभी प्रकार के संघर्षों के लिए एक ही रास्ता है, वार्ता। मैं अपनी ओर से वार्ता हेतु पूरी कोशिश करता हूँ और सोचता हूँ कि हमें उसी रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए। मुझे मालूम नहीं कि इसका अंत कैसा होगा क्योंकि यह अत्यन्त जटिल है किन्तु जो लोग वार्ता के लिए प्रतिबद्ध हैं वे महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति हैं।″ उन्होंने बतलाया कि स्पानी सरकार ने परमधर्मपीठ को वार्ता हेतु निमंत्रण दिया है तथा परमधर्मपीठ ने इसके लिए अपना प्रतिनिधि भेजने की मंजूरी दे दी है किन्तु उन्होंने कहा कि वार्ता जो समझौता को महत्व देता है वही संघर्ष का समाधान कर सकता है इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। यदि मध्यपूर्व ने इसकी पहल की होती तो कितने लोगों के जीवन बचाया जा सकते थे।

रेडियो फ्रांस से मटिल्डा एमबेरती ने संत पापा से धर्म के प्रति उदासीनता पर सवाल किया कि स्वीडेन में इसका प्रभाव बहुत ज्यादा है जो यूरोप को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने शंका व्यक्त की कि आने वाले दिनों में फ्राँस में अधिकतर नागरिक धर्म के प्रति उदासीन हो जायेंगे। उन्होंने कहा, ″क्या आपके विचार से धर्म के प्रति उदासीनता अपरिहार्य है? इसके लिए कौन उत्तरदायी है, धर्म के प्रति उदासीन सरकार अथवा डरपोक कलीसिया।

संत पापा ने कहा, ″मैं नहीं कह सकता कि कौन इसके लिए उत्तरदायी है। यह भी नहीं कह सकता कि आप ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। यह एक प्रक्रिया है।″ संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने इसके बारे कई बातें, बहुत स्पष्ट तरीके से कही हैं। विश्वास गुनगुना हो जाता है जब कलीसिया कमजोर हो जाती है। जब हम फ्राँस का धर्म के प्रति उदासीनता पर विचार कर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि याजकों द्वारा दुनियादारी मामलों पर अधिक ध्यान देने के कारण सुसमाचार प्रचार को पीछे छोड़ देना अथवा उसके मूल्य को धूमिल होने देना जिसके कारण उसकी शक्ति कमजोर हो जाती है। जब कभी दुनियादारी की भावना हावी हो जाती है सुसमाचार प्रचार में दुर्बलता आ जाती है।

दूसरी प्रक्रिया है सांस्कृतिक प्रक्रिया। मानव ने विश्व को ईश्वर द्वारा प्राप्त किया है जिसपर संस्कृति को बढाया जाना है किन्तु संस्कृति को बढ़ावा देने के क्रम में व्यक्ति खुद को संस्कृति का स्वामी मान लेता है। हम बाबेल के मीनार की कथा की याद करें। यह संस्कृति के स्वामी की कहानी है जिसमें लोगों ने संस्कृति के स्वामी बनाने का प्रयास करते हुए सृष्टिकर्ता का स्थान लेने का प्रयास किया है। संत पापा ने कहा कि धर्म के प्रति उदासीनता धीरे से ही सही किन्तु कभी न कभी सृष्टिकर्ता ईश्वर का स्थान ले लेता है।

संत पापा ने आत्मनिर्भर व्यक्त को धर्म के प्रति उदासीन व्यक्ति से अलग बताते हुए कहा कि उसका मामला स्वस्थ है उसमें वस्तुओं की स्वायत्तता है। उसके लिए विज्ञान, विचार, राजनीति आदि सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता है। संत पापा ने धर्म के प्रति उदासीनता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इसमें व्यक्ति अपने को ईश्वर के स्थान पर रखता है जिसके कारण सुसमाचार प्रचार कमजोर हो जाता है। यह एक कीटाणु के समान है जो ख्रीस्तीयों को गुनगुना कर देता है। विकसित संस्कृति एवं विज्ञान में स्वस्थ आत्मनिर्भरता है जिसमें सृष्ट जीव बने रहने की न कि ईश्वर का स्थान लेने की भावना है तथा सुसमाचार की शक्ति को पुनः प्राप्त करने की चाह है। संत पापा ने कहा कि आज संस्कृति में धर्म के प्रति उदासीनता अधिक प्रबल है। यह दुनियादारी के विभिन्न तरीकों में भी प्रबल है और जब यह आध्यात्मिक उदासीनता कलीसिया में प्रवेश करती है तो स्थिति बदतर हो जाती है। संत पापा ने वाटिकन द्वितीय महासभा के महान ईशशास्त्री कार्डिनल लुबक के शब्दों में कहा कि कलीसिया में जब आध्यात्मिक उदासीनता घुस जाती है तो इसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है, भ्रष्ट संत पापाओं के समय में जो हुआ उससे भी बुरा। संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए भी जोखिम भरा है। येसु अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना करते हैं कि पिता इन्हें संसार से न उठा ले किन्तु दुनियादारी से इनकी रक्षा कर क्योंकि उदासीनता खतरनाक है।

जर्मन टेलीविजन ″ज़ी. डी. एफ.″ के पत्रकार युरगेन एरबाकेर ने आधुनिक दासता, मानव तस्करी एवं उनकी आगामी यात्रा के संबंध में सवाल किया जिसके जवाब में संत पापा ने कहा कि अगले वर्ष की प्रेरितिक यात्रा का कार्यक्रम अभी पूरी तरह तैयार नहीं है किन्तु भारत एवं बंगलादेश की यात्रा लगभग पक्की है किन्तु इसकी मात्र परिकल्पना हुई है।

आधुनिक दासता एवं मानव तस्करी के सवाल पर संत पापा ने बतलाया कि उन्होंने लातीनी अमरीका में कई वर्षों तक काम किया है जिसके दौरान उन्होंने बतलाया कि उन्हें कई प्रकार की गुलामी एवं मानव तस्करी की घटनाओं के उदाहरण मिले जो अत्यन्त दुखदायी थी। उन्होंने कहा कि इटली में भी यह स्थिति देखी जा सकती है जिसके समाधान हेतु अनेक स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। 

विदित हो कि संत पापा ने 31 अक्तूबर से 1 नवम्बर तक स्वीडेन की यात्रा की जहाँ उन्होंने मानवता की सेवा हेतु ख्रीस्तीय एकता पर बल दिया।
 








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