2016-11-02 12:00:00

महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने किया जीवन के सम्मान का आह्वान


न्यू यॉर्क, बुधवार, 2 नवम्बर 2016 (सेदोक): न्यू यॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में 31 अक्टूबर को मानवाधिकारों की सुरक्षा एवं प्रोत्साहन विषय पर परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष बेरनारदीतो आऊज़ा ने विश्व प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर जीवन के सम्मान का आह्वान किया।

संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा के 68 वें सत्र में इस तथ्य पर बल देकर कि हर अवस्था में जीवन की रक्षा अनिवार्य है महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने खेद व्यक्त किया कि अजन्में शिशु के जीने के अधिकार, सुरक्षा की खोज करते आप्रवासियों के अधिकार, युद्धग्रस्त क्षेत्रों में सुरक्षा के अधिकार, निर्धनों, वयोवृद्धों तथा प्राणदण्ड पानेवालों के जीने के अधिकार की अवहेलना की जा रही है। इन अधिकारों के बारे में विचार-विमर्श के बजाय इन्हें प्राथमिक न समझ कर अलग कर दिया जा रहा है।

महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने कहा कि यह कदापि न भुलाया जाये कि क्रमबद्ध ढंग से जीवन के अधिकार से वंचित रखा जाना निर्धनता से जुड़ा होता है और जो लोग निर्धन होते हैं उन्हें आसानी  से आवास, स्वास्थ्य सेवा तथा जीने के उपयुक्त साधनों से वंचित कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि इसलिये यह नितान्त आवश्यक है कि जीने के अधिकार के महत्व पर बल दिया जाये तथा निर्धनता रेखा के नीचे अथवा हाशिये पर जीने वाले लोगों के लिये उपयुक्त आवास, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, शिक्षा आदि का व्यवस्था की जाये।

प्राणदण्ड के उन्मूलन पर भी उन्होंने प्रतिनिधियों को आलोकित किया और कहा कि विश्वव्यापी स्तर पर यह चेतना जागृत हो रही है कि किसी को भी किसी व्यक्ति की जान लेने का अधिकार नहीं है। इस सन्दर्भ में उन्होंने सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा ऑस्लो में, जून माह में प्राणदण्ड पर सम्पन्न सम्मेलन में प्रेषित शब्दों का स्मरण दिलाया, जिन्होंने कहा था, "आज के युग में प्राणदण्ड स्वीकार्य नहीं है भले ही व्यक्ति का अपराध कितना ही गम्भीर क्यों न हो। प्राणदण्ड, जीवन की अलंघनीयता तथा मानव प्रतिष्ठा के विरुद्ध अपराध है। यह व्यक्ति के लिये ईश्वरीय योजना तथा ईश्वर के करुणामय न्याय का विरोध करता है।"








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