2016-11-01 15:31:00

यह अन्य कलीसियाई समुदायों के प्रति धन्यवाद देने का भी अवसर है, संत पापा


मालमो, सोमवार, 31 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा ने प्रोटेस्टण्ट सुधारवाद की पाँचवी शताब्दी के अवसर पर स्वीडेन की अपनी दो दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के पहले दिन ख्रीस्तीय एकता प्रार्थना सभा के दौरान लुंद के लुथेरन महागिरजाघर में अपना संदेश दिया।

“तुम मुझ में बने रहो जैसे मैं तुम में हूँ।” अन्तिम ब्यारी में येसु द्वारा कहे गये ये शब्द उनके क्रूस बलिदान के पहले हमें उनके हृदय को झाँक कर देखने में मदद करता है। हम उनके हृदय को मानव के प्रति प्रेम में धड़कता हुआ पाते हैं जहाँ वे हम विश्वासियों से एकता में एक होने की चाह करते हैं। वे हमें कहते हैं कि वे सच्ची दाखलता हैं और हम सभी डालियाँ हैं और यदि हम अपने जीवन में फलप्रद होने की तमन्ना रखते हैं तो जिस तरह वे अपने पिता से संयुक्त हैं उसी तरह हमें उनमें संयुक्त होने की जरूरत है।

यहाँ लुंद के इस प्रार्थना सभा में हमारा आना येसु के साथ हमारे संयुक्त रहने की चाह को प्रदर्शित करता है जिससे द्वारा हम जीवन प्राप्त करते हैं। हम येसु से विनय करें, “प्रभु अपनी कृपा से हमारी सहायता कर जिससे हम तुझ में और अधिक घनिष्ठता में बने रहें और इस भांति एक साथ मिलकर अपने विश्वास, भरोसे और प्रेम का साक्ष्य प्रभावकारी ढंग से दे सकें।” यह हमारे लिए अन्य कलीसियाई समुदायों के भाई-बहनों के प्रयासों हेतु धन्यवाद देने का भी अवसर है जिन्होंने एक विभाजन के बदले एकता में बने रहने को महत्व दिया और इस भाँति एक ईश्वर में विश्वास द्वारा मेल-मिलाप के आशा को सजीव बनाये रखा है।

काथलिक और लूथरनों के रुप में हमने मेल-मिलाप को अपने जीवन यात्रा का अंग बनाया है। सन् 1517 ई. के सुधारवाद की यादगारी के अवसर पर यह हमारे लिए एक नया अवसर है जहाँ हम एकता के सामान्य मार्ग को स्वीकार करते हैं जो आज से पचास साल पूर्व लुथेरन विश्व समिति और काथलिक कलीसिया द्वारा ख्रीस्तीय एकता वर्धक वार्ता के रुप में शुरू किया गया था। हम अपने बीच हुए विभाजन को लेकर अलग-थलग नहीं रह सकते हैं। हमारे लिए यह एक अवसर है जहाँ हमें अपने ऐतिहासिक विवादों और असहमति में सुधार लाने की जरूरत है जो हमें एक-दूसरे को समझने में बाधा उत्पन्न करती है। येसु हमसे कहते हैं कि पिता एक “बागवान” हैं जो उन डालियों को छाँटते हैं जिससे वे और अधिक फल उत्पन्न कर सकें। (यो.2) वे येसु के साथ हमारे संबंध को लेकर चिंतित रहते हैं कि क्या हमारा संबंध उसने साथ सचमुच में एक है। (यो.4) उनकी नजरें हमारे ऊपर हैं और उनकी प्रेममय कृपा दृष्टि हमारे अतीत को परिशुद्ध करती है जिससे हम वर्तमान में एकजुट होकर कार्य कर सकें और भविष्य में एकता में बने रह सकें।

हमें अपने अतीत को ईमानदारी पूर्वक देखने और अपने गलतियों को पहचानते हुए उनके लिए एक- दूसरे से क्षमा माँगने की जरूरत है क्योंकि केवल ईश्वर हमारे न्यायकर्ता हैं। हमें अपने विभाजन से उत्पन्न दूरियों को ईमानदारी और स्नेह में देखने की जरूरत है क्योंकि यह हमें ईश्वर से दूर ले जाती है। हम एक होने की चाह रखते हैं लेकिन विश्वासीगण नहीं अपितु दुनिया की शक्तियाँ हमारे मध्य विभाजन लेकर आती हैं। अतः हम विश्वासियों को प्रेम में सदैव भले चरवाहे के द्वारा संचलित होने की जरूरत है। निश्चय ही दोनों पक्षों की ओर से सच्चे विश्वास को घोषित करने का निष्ठा पूर्ण प्रयास किया गया है लेकिन हमने अपने भय या विश्वास की घोषणा में एक-दूसरे के प्रति पूर्वाग्रह के कारण अपने को बंद कर लिया है। ईश्वर बागवान हैं जो अपने अद्वितीय प्रेम में दाखलताओं की सुरक्षा करते हैं अतः हम उनकी दया दृष्टि के द्वारा अपने को संचालित होने दें। वे हम से एक चीज की कामना करते हैं कि हम एक जीवित डाली की भांति उनके बेटे येसु ख्रीस्त से संयुक्त रहें।

येसु हमें याद दिलाते हैं, “मुझ से अलग रह कर तुम कुछ नहीं कर सकते।” (यो.5) वे ही हैं जो हमें जीवित रखते और हमारी एकता को प्रत्यक्ष रुप में प्रकट करने हेतु मार्ग प्रशस्त करते हैं। निश्चय ही हमारा अलगाव एक-दूसरे के लिए अति दुःख और नासमझी का कारण रहा है लेकिन फिर भी यह हमें इस बात को ईमानदारी पूर्वक अनुभव करने में मदद करता है कि हम उनके बिना कुछ भी नहीं कर सकते है। यह अनुभूति हमें अपने विश्वास के कुछ तथ्यों को उत्तम रुप से समझने में मदद करती है। हम कृतज्ञता के साथ सुधारवाद को स्वीकार करते हैं जिसके जरिये हम कलीसिया के जीवन में धर्मग्रंथ के केन्द्र-बिन्दु को और गहराई से समझते हैं। धर्मग्रंथ की बातों को आपस में साक्षा करने के द्वारा लुथरनों और काथलिकों के बीच एक महत्वपूर्ण वार्ता संभव हो पाई है जिसकी 50वीं वर्षगाँठ आज हम यहाँ मना रहे हैं। हम ईश्वर से निवेदन करते हैं कि वे हमें एकता में बनाये रखें क्योंकि यह हमारे जीवन को पोषित करता है।

मार्टिन लुथर की आध्यात्मिकता हमें इस बात को याद करने की चुनौती देती हैं कि ईश्वर से अगल रह कर कुछ भी नहीं कर सकते हैं। “मैं कृपालु ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?” यह सवाल लूथर के मन को उद्वेलित करता था और जैसे हम जानते हैं कि उन्होंने कृपालु ईश्वर को येसु के सुसमाचार के रुप में पाया जो मानव बन धरती पर आये, मार डाले गये और मुरदों में से जी उठे। उनका सिद्धांत “कृपा का माध्यम” है जो हमें याद दिलाता है कि ईश्वर हमेशा अपनी ओर से पहल करते हैं। इस तरह न्याय का धर्म सिद्धान्त ईश्वर के सम्मुख मानव जीवन के सार की सार्थकता को स्पष्ट करता है।

येसु एक मध्यस्थ के रुप में हमारे लिए अपने पिता से निवेदन करते हैं, कि उनके शिष्य एकता में बने रहे, जिससे दुनिया उनमें विश्वास करे। (यो.17.21) यही हमें सांत्वना प्रदान करती और हमें येसु के साथ एक होने को प्रेरित करती है इसीलिए हम प्रार्थना करते हैं, “हमें एकता का वरदान प्रदान कर जिससे दुनिया तेरी करुणा की शक्ति पर विश्वास कर सके।” इस साक्ष्य की आशा विश्व हम से करती है। हम खीस्तीय इस साक्ष्य को तब प्रमाणित करते हैं जब हम क्षमा, नवीनीकरण और आपसी मेल-मिलाप को अपने दैनिक जीवन में अनुभव करते हैं। इस तरह हम एक साथ मिलकर ईश्वरीय करुणा को ठोस और खुशी पूर्वक तब घोषित करते हैं जब हम हर एक मानव के आत्मसम्मान और प्रतिष्ठा हेतु कार्य करते हैं। इसके बिना दुनिया की सेवा और दुनिया में ख्रीस्तीयों की सेवा अधुरी है।

लूथेरनों और काथलिकों के रुप में हम इस महागिरजाघर में प्रार्थना करते हुए अपनी चेतना में इस बात का आभास करते हैं कि ईश्वर के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हम उन से सहायता माँगते हैं जिससे हम जीवित व्यक्ति के रुप में उनके साथ संयुक्त रहें और उनकी कृपाओं के भागीदार होते हुए एक साथ मिलकर उनके वचनों को दुनिया में प्रसारित कर सकें जो हमसे कोमल प्रेम और करुणा की मांग करता है।

 








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