2016-11-01 11:46:00

काथलिक एवं लूथरन ख्रीस्तीय वार्ताओं को जारी रखने के लिये वचनबद्ध


लुण्ड, स्वीडन, मंगलवार, 1 नवम्बर 2016 (सेदोक): स्वीडन के लुण्ड शहर का महागिरजाघर 16 वीं शताब्दी में लूथरनवाद राज्यधर्म घोषित होने के बाद काथलिकों से जब्त कर लिया गया था। जर्मनी के मठवासी भिक्षु मार्टन लूथर ने 1517 ई. में सुधारवाद की शुरुआत की थी। रोमी काथलिक कलीसिया में भ्रष्टाचार की निन्दा करते हुए उन्होंने 95 शोध प्रबन्ध लिखे थे जिससे सम्पूर्ण यूरोप के ख्रीस्तीयों में हिंसक झगड़े एवं राजनैतिक अलगाववाद शुरु हो गया था। लगभग 30 वर्षों तक दोनों ओर से मठों, गिरजाघरों एवं कथित अपधर्मियों का दहन और विनाश चक्र जारी रहा था। सोमवार को लुण्ड के महागिरजाघर में सम्पन्न सामान्य प्रार्थना सभा में सन्त पापा ने लूथर एवं उनके सुधारवाद के सकारात्मक पक्षों को भी सराहा। उन्होंने कहा, "कृतज्ञतापूर्वक हम यह स्वीकार करते हैं कि सुधारवाद ने कलीसिया के जीवन में पवित्र धर्मग्रन्थ की केन्द्रीयता को आलोकित करने में मदद प्रदान की।" इसके अतिरिक्त, सन्त पापा ने लूथर को एक "बुद्धिमान व्यक्ति" की संज्ञा प्रदान की जो उस युग की कलीसिया में व्याप्त भ्रष्टाचार, सांसारिकता, सत्ता के लिये लोभ और लालच से तंग आ चुके थे।

काथलिकों एवं लूथरन ख्रीस्तीयों के बीच 50 वर्ष पहले धर्मतत्व वैज्ञानिक वार्ताएँ आरम्भ हो गई थी किन्तु अभी भी काथलिक एवं लूथरन ख्रीस्तीय एक दूसरे के धर्मविधिक समारोहों में परमप्रसाद ग्रहण नहीं कर सकते हैं। बहुतों की आशा थी कि सन्त पापा फ्राँसिस की यात्रा इसके लिये रास्ता सुगम बना पायेगी किन्तु सोमवार को काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष सन्त पापा फ्राँसिस एवं लूथरन वर्ल्ड फेडरेशन के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष मौनीब योनान द्वारा हस्ताक्षरित एवं प्रकाशित संयुक्त वकतव्य में इस विषय का कोई ज़िक्र नहीं मिला। संयुक्त वकतव्य में यह प्रण किया गया कि काथलिक एवं लूथरन ख्रीस्तीय सभी मतभेदों एवं विभाजनों के दूर करने के लिये वार्ताओं को जारी रखेंगे। साथ ही दोनों कलीसियाओं ने निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों की सेवा हेतु सामान्य रूप से साक्ष्य प्रदान करने का भी प्रण किया। संयुक्त वकतव्य में कहा गयाः "अतीत के झगड़ों के बजाय, हमारे बीच विद्यमान एकता रूपी ईश्वर का वरदान हमें सहयोग हेतु मार्गदर्शन देगा तथा हममें एकात्मता को प्रगाढ़ करेगा। ख्रीस्त में अपने विश्वास को सुदृढ़ करते हुए, प्रार्थना करते हुए तथा परस्पर एक दूसरे को सुनने के द्वारा हम काथलिक एवं लूथरन त्रियेक ईश्वर के आगे अपने मन के द्वारों को खुला रखते हैं। ख्रीस्त में मूलबद्ध रहकर तथा उनका साक्ष्य प्रदान करते हुए हम सम्पूर्ण मानवजाति के लिये ईश्वर के असीम प्रेम के सन्देशवाहक बनने हेतु अपने संकल्प को नवीकृत करते हैं।"








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