2016-10-29 16:24:00

भारत में पर्यावरण के अनुकूल दीवाली मनाये जाने का अभियान


नई दिल्ली, शनिवार, 29 अक्तूबर 2016 (ऊकान): भारत के काथलिक संस्थाओं ने वायु प्रदूषण को रोकने में सहयोग देने हेतु पटाखों के बिना दीवाली के अभियान को प्रोत्साहन दिया है।

30 अक्तूबर को दीवाली का त्योहार है। पोस्टर, रैलियों तथा नुक्कड़ नाटक द्वारा लोगों के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश की जा रही है कि दीवाली को पटाखों रहित मनाया जाए ताकि वायु प्रदूषण एवं आवाज प्रदूषण से बचा जा सके।

जालन्धर के धर्माध्यक्ष फ्राँको मुलाक्काल ने अपने क्षेत्र के स्कूली बच्चों से अपील की है कि वे ″दीपक को हाँ और पटाखों को नहीं″ कहकर इको फ्रेंडली दीवाली मनायें। 

दीपों के इस वार्षिक उत्सव को विश्वभर के हिन्दू मनाते हैं जिसमें वे बुराई पर अच्छाई की जीत की याद करते हैं। इस अवसर पर लोग अपने घरों में दीये जलाते तथा समृद्धि के लिए हिन्दू देवता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। 

परम्परा अनुसार प्रत्येक परिवारों में दीवाली की रात पटाखे फोड़े जाते हैं, खासकर, उत्तरी भारत में, जो पूरे वातावरण को धूल एवं धुआँ से भर देता है। अधिकतर शहरों में रातभर पटाखे फोड़े जाते हैं।

धर्माध्यक्ष मुलाक्काल ने बच्चों को सलाह दी कि वे दीये और मोमबत्ती जलायें किन्तु पटाखे फोड़ने से बचें जो वातावरण एवं लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

उधर दिल्ली महाधर्मप्रांत के समाज सेवा विभाग ‘चेतनालय’ ने कई योजनाएँ बनायी है ताकि इस संदेश को 28 अक्तूबर से ही लोगों के बीच प्रचार किया जाएगा। 

चेतनालय के अधिकारी रिका काक्कार ने ऊका समाचार से कहा, ″इस कार्यक्रम में हम बच्चों और युवाओं को संलग्न कर रहे हैं क्योंकि वे ही लोग हैं जो त्योहार के समय फटाखे फोड़ते हैं जबकि वे ही प्रभावशाली परिवर्तन भी लाने में सक्षम हैं।″

दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक के अनुसार 23 अक्टूबर को यह 318 हो गया था। वायु गुणवत्ता सूचकांक में 300 से अधिक को बहुत खराब माना जाता है।

मुंबई मिरर की रिपोर्ट के अनुसार मुम्बई के 150 विद्यालयों के बच्चों ने ‘इको फ्रेंडली दीवाली’ मनाने का प्रण किया है। वे पटाखे फोड़ने से होने वाली हानि के प्रति लोगों के बीच जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। असम में गुवाहाटी के जिला प्रशासन ने भी दीवाली की रात, स्कूलों में यह अभियान जारी करते हुए रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक फटाखे फोड़े जाने पर रोक लगायी है।

पर्यावरणविद्, हिमालय पर्यावरण अध्ययन और संरक्षण संगठन के संस्थापक अनिल जोशी ने ऊका समाचार से कहा कि दीवाली में पहले पटाखे कभी नहीं फोड़े जाते थे।

उन्होंने कहा, ″यह एक ऐसा त्योहार है जब लोग अपने घरों एवं अहाते में दीप जलाते हैं किन्तु आज लोग पटाखे फोड़ने में जोर लगा रहे हैं जब समस्त विश्व ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर विचार करने में लगा है।″ उन्होंने कहा कि लोगों को पटाखे से होने वाली हानि से अवगत कराना होगा। 








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