2016-10-27 11:05:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय: स्तोत्र ग्रन्थ 78 वाँ भजन (भाग-1)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"तूने अपने बाहूबल से अपनी प्रजा का, याकूब और युसूफ़ के पुत्रों का उद्धार किया। ईश्वर! सागर ने तुझे देखा। सागर तुझे देखकर काँप उठा, अगाध गर्त्त भी घबरा गया। बादल बरसने लगे, आकाश गरजने लगा, बिजली चारों ओर चमकने लगी। तेरा गर्जन बवण्डर में सुनाई पड़ा, बिजली ने संसार को आलोकित किया, पृथ्वी काँप उठी और डोलने लगी। तेरा मार्ग समुद्र होकर जाता था, गहरे सागर से होकर तेरा पथ जाता था। तेरे पदचिन्हों का पता नहीं चला। तूने मूसा और हारून के द्वारा झुण्ड की तरह अपनी प्रजा का पथ प्रदर्शन किया।"   

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 77 वें भजन के अन्तिम छः पद जिनकी व्याख्या से हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 77 वें भजन का रचयिता घोषित करता है कि प्रभु ईश्वर पवित्र हैं, वे पापी एवं नश्वर मनुष्यों से बिलकुल अलग हैं जो अपने महान कार्यों को मनुष्यों के जीवन में ही प्रकट करते हैं।  ईश्वर अनन्त हैं, वे आदि से अनादि तक एक जैसे बने रहते हैं, कभी बदलते नहीं। 77 वें भजन के रचयिता में इस तथ्य के प्रति चेतना जागृत होती है कि ईश्वर के समक्ष वह एक महत्वहीन प्राणी है तथापि, ईश्वर के लिये उसका महत्व है। हालांकि, वह छोटा है, गौण है, प्रभु ईश्वर उसकी सुधि लेते हैं। उसे इस बात की अनुभूति होती है कि ईश्वर उसके लिये उत्कंठित रहा करते हैं। वह सृष्टि के आरम्भ से लेकर, इस्राएली जाति के निर्गमन और उनके उद्धार की कहानी में प्रभु के कार्यों की याद करता है। वह याद करता है कि किस तरह प्रभु ने ब्रहमाण्ड के अन्धकार, उसके उजाड़ और कोलाहल से सृष्टि की रचना की थी। फिर वह याद करता है कि मिस्र की गुलामी से प्रतिज्ञात देश की ओर जाती इस्राएली जाति की जटिल यात्रा में ईश्वर अनवरत उसके साथ रहे थे। इस तरह, 77 वें भजन का रचयिता ईश प्रजा की ऐतिहासिक घटनाओं को याद कर प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करता है। यह भजन हमारा ध्यान इस ओर आकर्षित कराता है कि सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक मनुष्य अपने जीवन में सम्पादित घटनाओं का स्मरण कर ईश्वर का ध्यान करता तथा अपनी मुक्ति के लिये उसके प्रति धन्यवाद करता है।   

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 78 वें भजन का अवलोकन करें। इस भजन के प्रथम चार पद इस प्रकार हैं: "मेरी प्रजा! मेरी शिक्षा पर ध्यान दो। मेरे मुख के शब्द कान लगाकर सुनो। मैं तुम लोगों को एक दृष्टान्त सुनाऊँगा, मैं अतीत के रहस्य खोल दूँगा। हमने जो सुना और जाना है, हमारे पूर्वर्जों ने जो बताया है – हम यह उनकी सन्तति से नहीं छिपायेंगे। हम यह आनेवाली पीढ़ी को बतायेंगे – प्रभु की महिमा, उसका सामर्थ्य और उसके किये हुए चमत्कार।" 

श्रोताओ, बाईबिल आचार्यों ने 78 वें भजन को एक उपदेश की संज्ञा प्रदान की है। ऐसा उपदेश जिसमें उपदेशक मन्दिर में उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर उनसे कहता है कि जो कुछ उसने अपने पूर्वजों से सुना है वह ऐसा रहस्य है जिसे छिपाया नहीं जा सकता। उसने अपने पूर्वजों से ईश्वर के महान कार्यों के बारे में सुना था और चाहता था कि उसकी सन्तति और भावी पीढ़ियाँ भी उन्हें जानें। वह अपनी बात दृष्टान्तों में रखना चाहता था। प्रभु येसु ने भी दृष्टान्तों में शिक्षा दी थी।

श्रोताओ, वस्तुतः, दृष्टान्त शब्द का अर्थ होता है, मिसाल और इब्रानी या हिब्रू भाषा में इसके लिये "मशाल" शब्द प्रयुक्त हुआ है। वास्तव में, ऐसी शिक्षा जो ग्राहक अपने मन की आँखों से देख सकता था उसे "मशाल" कहा जाता था। सरल शब्दों में हम इसे उदाहरण कह सकते हैं। अन्यों के उदाहरण से हम बहुत कुछ सीख पाते हैं। इसी सन्दर्भ में 78 वें भजन का उपदेशक कहता है, "मैं तुम लोगों को एक दृष्टान्त सुनाऊँगा, मैं अतीत के रहस्य खोल दूँगा।"    

इस स्थल पर इस बात के प्रति ध्यान आकर्षित कराना हितकर होगा कि सम्भवतः उस युग में आप बीती घटनाओं को अन्यों तक प्रसारित करने का तरीका केवल मुख का शब्द था और उपदेशक चाहता था कि उसने जो कुछ अपने पूर्वजों से सुना और सीखा था वह आनेवाली पीढ़ियाँ भी सुनें और सीखें। उसने उनसे प्रभु की महिमा, प्रभु के सामर्थ्य और उनके द्वारा सम्पदित चमत्कारों के विषय में सुना था और अब चाहता था कि वर्तमान और भावी पीढ़ियाँ भी उन चमत्कारों का ज्ञान प्राप्त करें। सच ही तो है यदि हम प्राप्त शिक्षा को अपने तक ही रखें, उसे अन्यों तक प्रसारित न करें तो हमारी शिक्षा और हमारे कार्यों का कोई महत्व नहीं होगा। अस्तु, ईश्वर को हम जानें और अन्यों को भी ईश सत्य से आलोकित करें।

78 वें भजन का उपदेशक मन्दिर में एकत्र भक्तों को उपदेश दे रहा था। वह इस्राएल के इतिहास में सम्पादित घटनाओं के बारे में बता रहा था। कुछ लोगों ने ध्यानपूर्वक उसके उपदेश को सुना होगा और कुछ लोग मन्दिर में उपस्थित रहने के बावजूद उसके उपदेश पर ध्यान नहीं लगा पायें होंगे। आज भी यही हो रहा है। हम गिरजाघरों में जाते हैं, प्रार्थना करते हैं। धर्मविधियों में भाग लेते हैं, पुरोहित को प्रवचन करते सुनते हैं किन्तु प्रायः उस ध्यान नहीं लगाते। 78 वें भजन का उपदेशक इसी बात की ओर संकेत करता है, इसी पर हमारा ध्यान आकर्षित कराता है कि उपदेशक का कार्य ईश्वर के कार्यों महान कार्यों के बारे में बताना होता है। उसका कार्य प्रचार करना, शिक्षा देना तथा परामर्श प्रदान करना होता है। इसीलिये भजन के पाँचवे और छठवें पदों में कहता हैः "उसने याकूब के लिये एक नियम लागू किया; उसने इस्राएल के लिये एक विधान निर्धारित किया। उसने हमारे पूर्वजों को यह आज्ञा दी कि वे उसे अपने पुत्रों को सिखायें, जिससे आनेवाली पीढ़ी, भविष्य में उत्पन्न होनेवाले उनके पुत्र उसे जान जायें और वे भी उसे अपने पुत्रों को बतायें।" अस्तु, यह उचित ही है कि हम प्रभु के कार्यों के बारे में बतानेवाले की बात ध्यानपूर्वक सुनें और ईश्वर को उनके महान कार्यों के लिये धन्यवाद ज्ञापित करें।








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