वाटिकन रेडियो सोमवार, 10 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 23 अक्टूबर 2016 को संत प्रेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के कोने-कोने से आये पचास हजार लोगों को देवदूत प्रार्थना के पूर्व कलीसिया पूजन विधि वार्षिक कालचक्र स के 30वें सामान्य रविवार और विश्व प्रेरितिक दिवस के अवसर पर संत पौलुस द्वारा तिमथी को लिखे गये द्वितीय पत्र पर (2 ति. 4.6-8, 16-18) अपना संदेश देते हुए कहा,
प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,
आज की धर्मविधि के द्वितीय पाठ में हम संत पौलुस को तिमथी अपने सहयोगी और प्रिय भाई को प्रेरितिक कार्य हेतु प्रेरणा देते और उत्साहित करते हुए सुनते हैं। संत पौलुस अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं और इस तरह वे वर्तमान, अतीत और भविष्य के बारे में जिक्र करते हैं।
वे अपने को एक बलिदान के रुप में व्यक्त करते हुए कहते हैं, “मैं प्रभु को अर्पित किया जा रहा हूँ। मेरे जाने का समय आ गया है।” वे अपने बीते जीवन का चित्रण करते हुए कहते हैं कि मैं एक “अच्छी लड़ाई” और “दौड़” पूरी कर चुका हूँ। यह इस तथ्य को हमारे समक्ष पेश करता है कि उन्होंने अपने कामों और अपने उत्तदयित्वों का निर्वाहन निष्ठा पूर्ण ढ़ग से किया है। इस तरह वे अपने समर्पित कार्यों के लिए ईश्वर से पुरस्कार हेतु विश्वस्त हैं। संत पापा ने कहा कि संत पौलुस का प्रेरितिक कार्य इसलिए प्रभावकारी रहा क्योंकि वे ईश्वर के सानिध्य और उनकी शक्ति से परिपूर्ण रहे और इसके परिणाम स्वरूप वे एक अच्छे उपदेशक की भाँति सभी लोगों के बीच ईश्वर के वचनों को घोषित कर सके। इसका साक्ष्य देते हुए वे स्वयं कहते हैं, “प्रभु ने मेरी सहायता की और मुझे बल प्रदान किया, जिससे मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ और सभी अविश्वासी उसे सुन सकें।(17)
अपनी इस जीवनी में वे कलीसिया के वर्तमान संदर्भ विशेषकर विश्व प्रेरिताई रविवार को “प्रेरितिक कलीसिया, करुणा का एक साक्ष्य” शीर्षक के रुप में हमारे सामने रखते हैं। वे ख्रीस्तीय समुदायों में विश्वास को पाते हैं जो उनके जीवन में ईश्वरीय उपस्थिति की अनुभूति है जो उन्हें प्रेरिताई और सुसमाचार के प्रचार हेतु सबल और प्रभावकारी बनाती है। गैर ख्रीस्तीय के बीच उनके प्रेरिताई कार्य हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमें भी अपने जीवन में त्याग करते हुए अपने को सेवा और प्रेरितिक कार्यों में संलग्न करने की जरूरत है, उसी भाँति जिस भाँति एक धावक हार या जीत की चिंता किये बिना प्रतिस्पर्धा में भाग लेता है। हमारे प्रेरितिक कार्य में हमारी सच्ची जीत ईश्वर की कृपा है और यह पवित्र आत्मा है जो कलीसिया के प्रेरितिक कार्यों को विश्व में प्रभावकारी बनाता है।
संत पापा ने कहा कि आज का दौर प्रेरितिक कार्यों का है जो हमसे साहस की माँग करता है। हमारे लड़खड़ाते क़दमों को साहस की जरूरत है जिससे हम विश्वास के साथ सुसमाचार का साक्ष्य अपने जीवन के द्वारा दे सकें। यह साहसिक होने का समय है यद्यपि इस साहस का अर्थ हमारे लिए यह नहीं कि हमें सदैव सफलता प्राप्त करें। इस साहस का तात्पर्य हमें अपने जीवन में अडिग बने रहना है जीत हासिल करने के उद्देश्य ने नहीं वरन सुसमाचार की घोषणा हेतु लेकिन इसका अर्थ धर्म परिवर्तन नहीं है। हमारे साहस का अर्थ अपने विश्वास के कारण विश्व के सामने एक विकल्प पेश करना है लेकिन या तार्किक या आक्रमणकारी न हो। यह साहस हमें येसु ख्रीस्त को दुनिया का मुक्तिदाता स्वीकार करते हुए सभों के प्रति खुला रहने की माँग करता है। हमें अविश्वास के समक्ष साहस के साथ बिना अभिमानी बने खड़ा रहने की जरूरत है। यह हम सबों को सुसमाचार के नाकेदार के समान नम्रता बनने की माँग करता है जो अपनी आंखों को ईश्वर की ओर उठा पाने में भी असमर्थ है लेकिन वह अपनी छाती पीटते हुए यह विनय करता है,“हे प्रभु मुझ पापी पर दया कर।” आज का समय हमें साहसी होने की माँग करता हैं हम साहसी बनें।
माता मरिया जो कलीसिया की आदर्श हैं जो पवित्र आत्मा के प्रति नम्र और विनीत रहीं हम सबों की सहायता करें जिससे हम बपतिस्मा में प्राप्त अपने मुक्तिदायी प्रेरिताई कार्य को सारी मानवजाति तक पहुँचा सकें। इतना कहने का बाद संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया और सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा फ्रांसिस ने इराक के मोसूल शहर में फंसे लोगों की याद की और उनकी सुरक्षा हेतु प्रार्थना का निवदेन करते हुए कहा, “युद्ध की इस विकट परस्थिति में मैं इराक विशेषकर मोसूल शहर के लोगों के साथ हूँ। हम सभी युद्ध और हिंसा की स्थिति जहाँ कितने ही निर्दोष बच्चों, मुस्लिम, ख्रीस्तीय या अन्य समुदाय और मज़हब के लोग मारे जा रहे हैं, अतः हम सबों का हृदय उनके लिए दुःख से भरा है।” संत पापा ने कहा,“ इराक में कितने बेटे-बेटियों और बच्चों की नृशंस हत्या की खबर सुन कर मैं अत्यंत दुःखी हूँ। यह क्रूरता हमें रुलाती है जिसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते हैं।” उन्होंने इराक के युद्ध प्रभावित लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की और उन्हें अपने विश्वास और आशा में बने रहने हेतु प्रोत्साहित करते हुए अपनी प्रार्थनाओं का आश्वासन दिया। उन्होंने विश्वासियों समुदाय के साथ मिलकर इराक में शांति, सुरक्षा और मेल-मिलाप हेतु मौन प्रार्थना की और तदोपरान्त सबों के साथ मिल कर दूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और अपने लिए प्रार्थना की याचना करते हुए सबों को रविवारीय मंगल कामनाएं अर्पित की।
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