2016-10-22 17:19:00

सार्वजनिक हित की खोज करने वाला राष्ट्र अपने में बंद नहीं हो सकता


संयुक्त राष्ट्र, शनिवार, 22 अक्तूबर 2016 (वीआर सेदोक): ″हमें अधिक सख्ती से सभी राष्ट्रों से संघर्ष, हिंसा, गरीबी तथा भूख के हर ढाँचे को खत्म करना होगा ताकि सभी के लिए सम्मानित एवं उत्पादक श्रम हासिल करने हेतु पर्यावरण की रक्षा अधिक संतोषजनक रूप में किया जा सकें और जिससे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा तथा परिवार की रक्षा हो सके जो मानव तथा समाज के विकास के महत्वपूर्ण तत्व हैं।″ यह बात अमरीका में वाटिकन के स्थायी पर्यवेक्षक तथा प्रेरितिक राजदूत महाधर्माध्यक्ष बेर्नादितो औज़ा ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा के 71 वें सत्र में ″वैश्वीकरण और अन्योन्याश्रय संबंध″ पर अपना वक्तव्य पेश करते हुई कही।

उन्होंने सभा की विषयवस्तु की सार्थकता बतलाते हुए महान दार्शनिक अरस्तू की याद की जिन्होंने कहा था, ″मनुष्य स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है।″

उन्होंने कहा कि आधुनिक युग की तकनीकी ने अन्योन्याश्रय संबंध के इस सच्चाई को उँचाई पर पहुँचा दिया है। तकनीकी के द्वारा विचारों को विश्व स्तर पर साझा किया जा सकता है तथा विश्व के दूसरे हिस्से के व्यक्ति से बातचीत की जा सकती है जिसके द्वारा मानव ज्ञान में अत्यधिक वृद्धि हुई है और जिसके द्वारा धन तथा जन कल्याण का बड़े पैमाने पर विकास हुआ है।

वाटिकन पर्यवेक्षक के तकनीकी विकास के नकारात्मक पक्ष पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि इसने कई समस्याओं और चुनौतियों को उत्पन्न किया है जिसका ज्वलंत उदाहरण है आतंकवाद, विभाजन, डिजीटल वित्त उद्योग, व्यक्तिवाद तथा स्वार्थी उपभोक्तावाद। जो एकात्मकता एवं हमारे आम गृह के स्वास्थ्य पर जोखिम उत्पन्न कर रहा है।

औज़ा ने ″वैश्वीकरण और अन्योन्याश्रय संबंध″ पर वर्तमान के सबसे बड़ी चुनौती शरणार्थी एवं अप्रवासी बतलाया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही जबरन विस्थापन में वृद्धि हुई है और यही परमधर्मपीठ के लिए चिंता का बड़ा मसला है। लाखों शरणार्थियों एवं अप्रवासियों को युद्ध, संघर्ष, अत्याचार, भेदभाव, अत्यधिक गरीबी तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापित होना पड़ा है। परिस्थिति उस समय और भी खराब हो जाती है जब शरणार्थी एवं अप्रवासी भागने के दौरान या अपने लक्ष्य तक पहुँचने पर तस्करों के हाथों पड़ जाते अथवा भूख एवं विभिन्न तरह के शोषण के शिकार बनते हैं। सुरक्षित स्थान पाने के बजाय वे अविश्वास, संदेह, भेदभाव, चरम राष्ट्रवाद, नस्लवाद के शिकार होते तथा स्वीकृति की कमी महसूस करते हैं।

इस समय वैश्वीकरण और अन्योन्याश्रय संबंध का विरोधाभास इस बात पर है कि राष्ट्रों में जब भलाई एवं सेवा हेतु घेरा हटाये जाने की बात हो रही है, वहीं लोगों को रोकने के लिए दीवार खड़े किये जा रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि इस अनुचित बेतरतीबी के सामने भी काथलिक कलीसिया एकात्मता की अपनी परम्परा को पूरी शक्ति से आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। निसंदेह संत पापा फ्राँसिस ने शरणार्थियों एवं अप्रवासियों को अपनी कार्यसूची में प्रथम स्थान पर रखा है। लम्पेदूसा एवं लेसबोस द्वीप की यात्रा कोई आकस्मिक निर्णय नहीं थी किन्तु जानबूझ कर एकात्मता की आवश्यकता को आवाज देना एवं सभी को एकात्मता, उदारता तथा संसाधनों के प्रति ठोस समर्पण के लिए आह्वान करना था। इतना ही नहीं संत पापा सीधे देखभाल द्वारा शरणार्थियों एवं अप्रवासियों के प्रति खास उत्सुकता दिखाते हैं।

उन्होंने सभा को सम्बोधित कर कहा कि हमें अधिक सख्ती से सभी राष्ट्रों से संघर्ष, हिंसा, गरीबी तथा भूख के हर ढाँचे को खत्म करना होगा ताकि पर्यावरण की रक्षा अधिक संतोषजनक रूप में किया जा सकें जिससे कि सभी के लिए सम्मानित एवं उत्पादक श्रम हासिल किया जा सके।  गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान किया जा सके तथा परिवार की रक्षा हो जो मानव तथा समाज के विकास के महत्वपूर्ण तत्व हैं।

वाटिकन पर्यवेक्षक ने कहा कि एक राष्ट्र जो सार्वजनिक भलाई की खोज करता है वह अपने आप में कभी बंद नहीं हो सकता। समाज संबंधों से बलिष्ठ होता है, आज का विस्थापन इसे स्पष्ट कर रहा है। वार्ता आवश्यक है। दीवारों के निर्माण की अपेक्षा हमें सेतु के निर्माण की आवश्यकता है। ये मुद्दे चुभने वाले जरूर हो सकते हैं किन्तु इससे मिलने वाला समाधान न्यायसंगत, उचित और स्थायी है।

 








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