2016-10-21 16:21:00

संत पापा जोन पौल द्वितीय समिति के सदस्यों को संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पापा जोन पौल द्वितीय समिति की 35वीं वर्षगाँठ के अवसर पर समिति के सदस्यों के साथ सामान्य लोकसभा परिषद् भवन में मुलाकात की और उन्हें अपना प्रेरितिक संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि संत पापा जोन पौल द्वितीय के व्यक्तित्व से प्रेरित आप के संगठन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा, संस्कृति, धार्मिक और करुणा के कार्यों को बढ़ावा देना है। आप के ये कार्य विशेष रुप से यूरोप के विभिन्न देशों में फैले हुए हैं जिसके द्वारा असंख्य विद्यार्थियों को शिक्षण के क्षेत्र में सहायता प्राप्त हो रहा है। मैं आप सबों को प्रोत्साहित करता हूँ जिससे आप युवाओं के लिए अपने सेवा और समर्पण के कार्य जारी रखें जिससे वे अपने दैनिक जीवन की चुनौतियों को सदैव सुसमाचार की संवेदनशीलता और विश्वास के साथ सामना कर सकें। युवाओं का प्रशिक्षण भविष्य हेतु निवेश है और भविष्य की आशा को उनसे चुराया नहीं जा सकता है।

करुणा की जयंती वर्ष जिसका समापन हम करने वाले हैं हमें ईश्वर की दिव्य करुणा के बारे में  मनन-चिंतन करने का एक अवसर प्रदान किया है जहाँ मानव के रुप में विकास की चीजों को लेकर हम अपने में आत्मनिर्भरता का बोध करते हैं मानो जीवन की सारी चीजें हमारे ऊपर निर्भर करती हो। ख्रीस्तीयों के रुप में हम यह विश्वास करते हैं कि हमारे जीवन की सारी चीजें ईश्वर द्वारा मिले हमारे लिये उपहार हैं। पैसा हमारा असल धन नहीं है। यह हमें गुलाम बना सकता है बल्कि यह ईश्वर का प्रेम है जो हमें स्वतंत्र बनाता है।

मैं पोलैण्ड की अपनी प्रेरितिक यात्रा को अबतक याद करता हूँ जहाँ विश्व युवा दिवस के अवसर पर मैंने युवाओं में विश्वास की खुशी देखी। पोलैण्ड की भूमि ने हमें संत फोस्तीना और संत पापा जोन पौल द्वितीय के रुप में दो संतों को दिया है जो करुणा के प्रेरित हैं। संत पापा जोन पौल द्वितीय ने ईश्वरीय करुणा को हमारे लिए व्यक्त किया हैं, “येसु विशेषकर, अपने जीवन और कामों के द्वारा दुनिया में अपने प्रेममय रहस्य को प्रकट करते हैं। यह प्रेम पूरी मानव जाति को अपने में आलिंगन करता है। यह प्रेम विशेष रूप से दुःखियों, अन्याय और गरीबी में पडे मानवीय इतिहास से हमारा संबंध स्थापित करने में व्यक्त होता है।”  संत फौस्तीना अपनी डयरी में येसु ख्रीस्त के द्वारा संबोधित शब्दों को लिखती हैं, “मेरी पुत्री, मेरे करुणामय हृदय की ओर ध्यान देते हुए इसे  अपने हृदय और अपने प्रेमपूर्ण कामों में पूरा करो जिससे तुम विश्व में मेरी करुणा को घोषित कर सको जो सदैव उदीप्ति होता है।” 

संत पापा ने कहा कि ये दो संतों के उदाहरण और उनके वाक्य हमें उदारतापूर्वक अपने जीवन को  समर्पित करने हेतु मदद करे। माता मरिया आप की रक्षा करें और आप का सहारा बनें। ईश्वर की आशीष आप को और आप के परिवारों को मिलती रहे। 








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