2016-10-18 11:54:00

लाभ केंद्रित अर्थव्यवस्था कर रही जनजातियों को विकास से वंचित, महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा


न्यूयॉर्क, मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016 (सेदोक): वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष बेरनारदीतो आऊज़ा ने सचेत किया है कि लाभ केंद्रित अर्थव्यवस्था जनजातियों को विकास से वंचित रख रही है।

न्यू यॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में, सोमवार को, जनजातियों के अधिकारों पर आयोजित आम सभा के 71 वें सत्र में सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर राष्ट्र संघ में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवोक्षक महाधर्माध्यक्ष बेरनारदीतो आऊज़ा ने कहा कि वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में जनजातियों के जीने के साधन एवं उनकी संस्कृति ख़तरे में पड़ी है।

उन्होंने कहा, "जनकल्याण के प्रति ज़िम्मेदारी के बजाय लाभकेन्द्रित अर्थव्यवस्था एवं व्यक्तिगत लाभ के इरादों ने जनजातियों के विकास को पीछे छोड़ दिया है। उनकी पारम्परिक मातृभूमियाँ, जिनसे वे शारीरिक एवं आध्यात्मिक रूप से जुड़े हैं, उनसे बिना पूछे छीन ली गई हैं। उत्खनन कार्यों में संलग्न अथवा लोक निर्माण के नाम पर संचालित कम्पनियों और यहाँ तक कि नेकनीयत रखनेवाले भूमि संरक्षणवादियों ने, प्रायः, उन्हें विस्थापित किया है।"  

महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने इस तथ्य के प्रति ध्यान आकर्षित कराया कि विश्व की जनजातियाँ और देशज लोग अन्यों की तुलना में और अधिक निर्धनता, बेरोज़गारी तथा खाद्य असुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं। बोलिविया में सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा जनजातियों के एक दल से कहे शब्दों का स्मरण दिलाकर महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने कहा, "यह आवश्यक है कि अपने वैध अधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ, जनजातियों के सामाजिक संगठन, बहिष्कृत करनेवाले वैश्वीकरण की जगह, एक मानवीय विकल्प की संरचना में सक्षम बने तथा अपने विकास का रास्ता ढूँढ़ सकें।"     

महाधर्माध्यक्ष ने सदस्य राष्ट्रों का आह्वान किया कि वे सम्पूर्ण विश्व जनजातियों के हित में  2030 की कार्यसूची तथा पेरिस समझौते जैसी सम्विदाओं को लागू करने हेतु कृतसंकल्प रहें।








All the contents on this site are copyrighted ©.