2016-10-15 16:27:00

आप उस वृक्ष के समान हैं जो सदैव फल देता है


वाटिकन रेडियो, शनिवार, 15 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने नाना-नानी दिवस के अवसर पर पापा पौल 6वें सभागार में जमा सभी बुजुर्ग कार्यकर्ताओं को अपना संदेश दिया।

उन्होंने उनकी उपस्थिति हेतु शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि कलीसिया आप सभों को बड़े स्नेह, कृतज्ञता और सम्मान की नजरें से देखती है क्योंकि आप ख्रीस्तीय समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण अंग हैं। हमारे जीवन में आप की उपस्थिति अति महत्वपूर्ण है क्योंकि आपके कीमती अनुभव रूपी धन और आप का ज्ञान हमें भविष्य को आशा और उत्तरदायित्व भरी निगाहों से देखने में मदद करता है। आप की परिपक्वता और सालों से संचित विवेक युवा पीढ़ी को उनके जीवन में आगे बढ़ने और भविष्य हेतु खुला रहने में सहायता प्रदान करती है। जीवन के इस कठिन दौर में हमें ईश्वर पर विश्वास को कभी नहीं खोना है। संत पापा ने कहा कि आप उस वृक्ष के समान हैं जो सदैव फल देता है क्योंकि आप के गुण और मूल्य मानव समाज और संस्कृति को धनी और समृद्धि प्रदान करती है।

आप में से कितने हैं जो अपनी बहुमूल्य कार्य क्षमता द्वारा कलीसिया की सेवा करते हैं विशेषकर प्रभु के घर की सजावट, पल्लियों में धर्मशिक्षा, धर्मविधि के दौरान गीतों का संचालन और अन्य दूसरे सेवा कार्यों का साक्ष्य इत्यादि। परिवारों में आप की भूमिका के क्या कहने। आप में से कितने नाना-नानी और दादा-दादी अपने नाती-पोतियों की देखरेख करते हुए उन्हें अपने जीवन के अनुभवों, समुदाय की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गुणों को बाँटते हैं। उन देशों में जहाँ धर्म सतावट हुई वहाँ नाना-नानियों ने अपने विश्वास के दीप को जलाये रखा और सतावट के बावजूद इसे अपनी नयी पीढी के हाथों में बपतिस्मा के रूप में सौंपा है।

दुनिया में आज ताकत और दिखावे की स्थिति है जहाँ आप का प्रेरितिक कार्य अपने जीवन के मूल्यों द्वारा साक्ष्य देने की माँग करता जो अतीत तक बना रहता है कारण कि यह मानव हृदय में गढ़ा जाता क्योंकि यह ईश वचनों से सत्यापित होता है। हम जैसे लोग जीवन की संस्कृति का विकास करने हेतु बुलाये गये हैं जहाँ हमें जीवन के हर मुकाम को ईश्वरीय उपहार, इसकी सुन्दरता और इसके महत्व का साक्ष्य देना है यद्यपि हमारा यह जीवन क्षणभंगुर है।

आप में से बहुत कोई ऐसे हैं जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों और शारीरिक रुप से कमजोर हैं जिन्हें सेवा की जरूरत है, मैं ईश्वर का धन्यवाद उन संस्थानों और लोगों के लिए करता हूँ जिन्होंने अपना जीवन आप जैसे लोगों की सेवा हेतु समर्पित कर दिया है। बुज़ुर्गों हेतु सेवारत उन संस्थानों में हम मानवता और ईश्वरीय प्रेम का एहसास करते हैं। यह उनके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करता है जिन्होंने समुदाय और उसकी स्थापना हेतु अपना जीवन दे दिया है। समाज और संस्थानों को बुज़ुर्गों की सेवा हेतु बहुत से कार्य करने की जरूरत है जिनके द्वारा उन्हें सही सम्मान और प्रशंसा दिया जा सकें। ऐसा करने हेतु हमें इस सोच से बाहर निकले की जरूर है कि बुजुर्ग समाज हेतु व्यर्थ है। इसके बदले हमें उन्हें अपने समाज में और अधिक सम्मान देने की जरूर है। हमें दो पीढ़ियों के बीच संबंध स्थापित करने की जरूरत है क्योंकि हमारा भविष्य युवाओं और बुज़ुर्गों के बीच आपसी सामंजस्य स्थापित करने में है। 








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