2016-10-11 11:39:00

इंदौर मिशन के इतिहास पर पुस्तक का विमोचन


इंदौर, मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016 (ऊका समाचार): इंदौर मिशन के समकालीन इतिहास पर दिव्य शब्द धर्मसमाज के काथलिक पुरोहित फादर क्लारेन्स स्राम्बिकल द्वारा लिखित एक नई पुस्तक का विमोचन इंदौर में रविवार को किया गया। "प्रिपेरिंग द वे ऑफ द लॉर्ड" शीर्षक से रची गई 668 पृष्ठोंवाली पुस्तक में सन् 1932 ई. से लेकर सन् 1971 तक के मिशन का विस्तृत विवरण निहित है।

फादर स्राम्बिकल ने कहा, "नई पुस्तक मेरे भीतर निहित एक गहन लालसा का परिणाम है...मैं उन दिग्गजो की कहानी भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहता था जिन्होंने कठिन परिस्थितियों के बावजूद कड़ी मेहनत कर इन्दौर धर्मप्रान्त को एक ठोस आधार प्रदान किया है।"  

विमोचन समारोह में दिव्य शब्द धर्मसमाज के सदस्य तथा इन्दौर के काथलिक धर्माध्यक्ष चाको थोटूमारीकल ने कहा, "इन्दौर धर्मप्रान्त अपने उदय एवं विकास का व्यापक इतिहास लिखने के लिये लेखक के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता है।"

उन्होंने बताया कि इन्दौर धर्मप्रान्त चार अन्य धर्मप्रान्तों को जन्म देने के लिये चार बार बाँटा गया हैः सन् 1964 ई. में भोपाल धर्मप्रान्त की रचना हुई, सन् 1968 ई. में उज्जैन, सन् 1977 में खण्ड्वा तथा 2002 में झाबुआ धर्मप्रान्त की रचना हुई। फादर स्राम्बिकल की पुस्तक इन चारों धर्मप्रान्तों के आरम्भिक इतिहास पर प्रकाश डालती है। निश्चित्त रूप से, यह पुस्तक अतीत के साथ सम्बन्ध जोड़ने में भावी पीढ़ियों की मदद करेगी।"

फादर स्राम्बिकल ने कहा कि उनकी पुस्तक लोगों को आरम्भिक मिशनरियों द्वारा छोड़ी गई विरासत पर विचार करने हेतु बाध्य करेगी तथा उन्हें इसे आगे बढ़ाने हेतु प्रेरणा प्रदान करेगी। उन्होंने कहा, "इस प्रकार हम प्रभु का मार्ग तैयार करने के कार्य को आगे बढ़ाते रहेंगे ताकि इस समृद्ध भूमि के लोग प्रभु के साक्षात्कार का आनन्द प्राप्त कर सकें जो मार्ग, सत्य और जीवन हैं।"

दिव्य शब्द धर्मसमाजी पुरोहित फादर जॉन दीपक सुलिया ने उक्त पुस्तक को उन विश्वसनीय लोगों की "एक वास्तविक प्रेम कहानी" की संज्ञा प्रदान की जिन्होंने मध्यप्रदेश के बलाई, भील तथा बारेला जैसे आदिवासियों के लिये अपना जीवन अर्पित कर दिया था। उन्होंने कहा, "यह उन महान लोगों की प्रेम कहानी है जिन्होंने प्रभु येसु के "जैसा मैंने तुमसे प्यार किया वैसा तुम भी किया करो" वाले आदेश के पालन हेतु अपनी आरामदायक मातृभूमियों का परित्याग किया तथा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक पीड़ाओं को सहा।"








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