2016-10-10 15:53:00

माता मरियम हमारी आदर्शः संत पापा फ्रांसिस


वाटिकन रेडियो सोमवार, 10 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 9 अक्तूबर 20216 को करुणा की जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में संत प्रेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में माता मरिया की जयन्ती का ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए कहा कि हमें सचमुच में एक आदर्श मिला है जिसकी ओर हम अपनी नजरें उठा सकते हैं जो मरिया, हमारी माँ हैं।

संत पापा ने मिस्सा बलिदान के दौरान अपने प्रवचन में कृतज्ञता की महत्वपूर्णता पर भी जोर देते हुए कहा कि इस रविवार का सुसमाचार हमें ईश्वर प्रदत्त उपहारों हेतु आश्चर्य के भाव जाहिर करते हुए उन्हें अपनी कृतज्ञता अर्पित करने का निमंत्रण देता है। येसु अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान की राह पर दस कोढियों से मिलते हैं जो उनके पास आते हुए दूर से ही उन्हें अपने जीवन की तकलीफ को इस विश्वास के साथ बतलाते हैं जिससे कि वे उन्हें मुक्ति प्रदान कर सकें। “ईसा, गुरूवर, हम पर दया कीजिए।” (लूका.17.13) वे सभी बीमार हैं और किसी व्यक्ति विशेष की ओर अपनी चंगाई हेतु आशा लगाये हुए हैं। येसु उन्हें उत्तर देते हुए कहते हैं कि जाओ और अपने को पुरोहितों को दिखलाओ क्योंकि संहिता के अनुसार उन्हें ही किसी भी चंगाई के सत्यापन का अधिकार था। इस तरह येसु उनसे किसी प्रकार की प्रतिज्ञा नहीं करते हैं लेकिन वे उनके विश्वास की परीक्षा लेते हैं। वास्तव में उस वक्त दसों को चंगाई प्राप्त नहीं हुई लेकिन जब वे येसु की आज्ञा का पालन करते हुए पुरोहितों को दिखलाने हेतु अपनी राह पर थे उन्हें स्वास्थ्य लाभ प्राप्त हुआ। इस तरह वे खुशी मनाते हुए अपने को पुरोहितों के सामने पेश करते हैं लेकिन एक को छोड़, जो कि समारी था बाकी सब के सब जीवनदाता ईश्वर के पुत्र येसु ख्रीस्त जिन्होंने उन्हें चंगाई प्रदान की धन्यवाद अदा करने भूल जाते हैं।

समारी जो एक परदेशी है जो चुने हुए लोगों से दूर एक निष्कासित व्यक्ति की तरह जीवन व्यतीत करता है वह अपने विश्वास से मिली चंगाई से संतुष्ट नहीं है वरन् वह अपनी चंगाई के उपहार हेतु येसु का धन्यवाद करने उनके पास लौटकर आता है। वह येसु में सच्ची पुरोहिताई को पहचानता है जो मृत्यु से विजयी हो कर हमें बचाते हैं।

संत पापा ने कहा कि कृतज्ञ होना और ईश्वर द्वारा मिले सभी वरदानों के लिए उनका धन्यवाद करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इस तरह हम अपने आप से पूछ सकते हैं क्या हम धन्यवाद के शब्द कह सकते हैं? हम अपने परिवार में, अपने समुदाय में, और कलीसिया में कितनी बाद “धन्यवाद” के शब्द उच्चरित करते हैं? हम कितनी बार उनका शुक्रिया अदा करते हैं जो हमारी सहायता करते हैं, जो हमारे निकट रहते, जो जीवन की राह में हमारे साथ चलते हैं? हम बहुधा अपने जीवन में चीजों को सहज तरीके से लेते हैं और हमारा व्यवहार हमारे ईश्वर के साथ भी ऐसा ही होता है। ईश्वर से किसी जरूरत की वस्तु माँगना हमारे लिए आसान होता है लेकिन उसके लिए हम उनका धन्यवाद करने भूल जाते हैं। इसीलिए येसु जोर देते हुए कहते हैं “क्या दसों निरोग नहीं हुए? तो बाकी नौ कहाँ हैं? क्या इस परदेशी को छोड़ और कोई नहीं मिला जो लौट कर ईश्वर की स्तुति करे?”

इस जयंती के दिन में हमारे लिए एक आदर्श दिया गया है जिसकी ओर हम देख सकते हैं और वह हमारे लिए मरिया, हमारी माता हैं। स्वर्गदूत के संदेश उपरान्त उन्होंने अपना हृदय ईश्वर की ओर उन्मुख किया और उनका धन्यवाद करते हुए यह भजन गया, “मेरी आत्मा प्रभु का गुण गाना करती है...।” आइए हम माता मरिया से निवदेन करें कि वे हमें जीवन की सभी चीजों को ईश्वर से मिले वरदान स्वरूप देखने में मदद करें और उनके लिए हमें धन्यवाद कहने को प्रेरित करें, इस तरह हमारी खुशी परिपूर्ण होगी।

कृतज्ञता हेतु नम्रता की जरूरत है। प्रथम पाठ में हम नामन के बारे में सुनते हैं जो आराम के राजा के सेनापति हैं। अपने कोढ़ बीमारी से स्वास्थ्य लाभ हेतु वह अपने सेवक के विचारों और सलाह की कद्र करता और नबी एलिशा के पास जाता है जिसे वह अपना शत्रु समझता था। लेकिन नामन अपने को नम्र बनाता और नबी के निर्देशानुसार यर्दन नदी में नहाने जाता है यद्यपि यह उसे अचंभित और क्रोधित करता है। ईश्वर जो इस तरह साधारण बातों की माँग करते हैं क्या सच्चे ईश्वर हो सकते हैं? वह उसके यहाँ से लौट जाने की सोचता है लेकिन फिर अपने सेवक की बातों को सुनता और यर्दन नदी में डुबकी लगाकर चंगाई प्राप्त करता है।

संत पापा ने कहा कि माता मरियम का हृदय किसी अन्य मानव के हृदय से अधिक नम्र है जो ईश्वरीय उपहारों को स्वीकार करती हैं। ईश्वर का पुत्र मानव बनने हेतु उनका चुनाव करते हैं जो नाजरेथ की एक साधारण युवती है जो समृद्धि और धन दौलत में जीवन यापन नहीं करती है। उन्होंने अपने जीवन में कोई असाधारण कार्यों को नहीं किया। आइए हम अपने आप से पूछे कि क्या हम ईश्वर के उपहारों को अपने जीवन में धारण करने हेतु तैयार रहते हैं या अपने भौतिक वस्तुओं, बौद्धिक क्षमताओं के कारण अपने आप में विश्वस्त रहते हैं।

नामन और समारी विशेष तौर से अपने में परदेशी हैं। हमारी जीवन में कितने ही परदेशी और दूसरे सम्प्रदाय के लोग हैं जो हमें अच्छे गुणों का पालन करने की शिक्षा देते हैं जिसे हम बहुत बार दरकिनार कर देते हैं। जो हमारे इर्दगिर्द रहते हैं उन्हें हम शायद विदेशी और तुच्छ समझते हैं लेकिन वे हमें यह शिक्षा देते हैं कि हमें अपने जीवन में ईश्वर के मार्ग में कैसे चलना है। ईश्वर की माता अपने वर संत जोसेफ के साथ मिलकर हमें यह शिक्षा और ज्ञान दें कि हमें अपने परिवारों से दूर कैसे रहना है। वह स्वयं एक परदेशी थी जो मिस्र देश में अपने परिजनों और मित्रों से दूर रही फिर भी उनका विश्वास तकलीफों पर विजय पाने हेतु दृढ़ बना रहा। आइए हम ईश माता मरिया के इस विश्वास से अपने को संयुक्त करें और उनसे बिचवाई करें जिससे हम येसु की ओर लौट सकें और उनसे प्राप्त कृपादानों के लिए सदैव उनके प्रति कृतज्ञ बने रहें। 








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