2016-10-08 15:48:00

अपने हाथों से दूसरों की मदद द्वारा करुणा एवं प्रेम फैलायें


वाटिकन सिटी, शनिवार, 8 अक्तूबर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने अर्जेंटीना के मानोस अबीएरता की राष्ट्रीय सभा के प्रतिभागियों को एक वीडियो संदेश प्रेषित कर दया की भावना को अपनाने का प्रोत्साहन दिया।

अर्जेंटीना के मानोस अबीएरता की राष्ट्रीय सभा की विषयवस्तु है, ″करुणा, हृदय से हाथ तक की एक यात्रा।″ स्पानी शब्द मानोस अबीएरता का अर्थ है ‘खुला हाथ’।

संत पापा ने संदेश में सुसमाचार के उन दो घटनाओं का जिक्र किया जहाँ करुणा की भावना से प्रेरित होकर जरूरतमंद लोगों को मदद दी गयी थी।

उन्होंने कहा, ″जब भला समारितानी ने रास्ते पर घायल व्यक्ति से मुलाकात की तो सुसमाचार कहता है कि वह अपने हृदय में उसके प्रति दया से द्रवित हो गया तथा गद्हे से उतरा, उसका स्पर्श किया एवं उसे चंगाई पाने में मदद की। हृदय की दयालुता ने उसे अपने हाथों से ये सब करने हेतु प्रेरित किया।″

संदेश में संत पापा ने सुसमाचार की एक दूसरी घटना को प्रस्तुत किया जो येसु की दयालुता के बारे बतलाता है। नाईम शहर के द्वार पर येसु ने एक रोती हुई विधवा को देखा जिसके मृत बेटे को दफन के लिए ले जाया जा रहा था। येसु उसे देख, दया से भर आये तथा उसके करीब आकर कहा, ″मत राओ″। तब उन्होंने अरथी ढोने वालों को रोका तथा मृत व्यक्ति का स्पर्श करते हुए कहा″ ऐ युवा मैं तुमसे कहता हूँ उठो।″ इस प्रकार संत पापा ने कहा कि येसु हमें सिखलाते हैं कि हम दूसरों की मदद करें जिसकी प्रेरणा हमें हृदय से मिलनी चाहिए।    

संत पापा ने हृदय को प्रेरित करने वाले तत्वों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि भला समारितानी एवं येसु का हृदय गरीबी द्वारा प्रभावित हुआ। येसु ने विधवा में पीड़ा रूपी गरीबी देखी, उसी प्रकार भला समारितानी ने भी घायल व्यक्ति के असहाय होने की गरीबी को महसूस किया।

संत पापा ने कहा कि हृदय जो दूसरों के कष्टों में शामिल हो जाता है, यही करुणा है। जब दूसरों का कष्ट हमारे हृदय में प्रवेश कर जाता है तब हम उन्हें महसूस कर पाते हैं जो मात्र एहसास नहीं है किन्तु उस कष्ट में सहभागिता और उस कष्ट को दूर करने के लिए प्रेरित होना है। यदि यह हृदय से उत्पन्न न हो तो करुणा नहीं है, हृदय जो दूसरों के दुःख में दुःखी हो जाता है उसी में करुणा है। 

संत पापा ने दया का मनोभाव प्राप्त करने के लिए प्रभु से प्रार्थना करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अपने पापों को स्वीकार करते हुए जब हम ईश्वर से क्षमा की याचना करते तथा क्षमा किये जाने का अनुभव करते हैं तब हम दया के मनोभाव को प्राप्त करते हैं।

उन्होंने कहा कि यहीं से हमारी वापसी की यात्रा शुरू होती है। जब हम अपने पापों और कमजोरियों को स्वीकार करते तथा प्रभु द्वारा क्षमा किये जाने का अनुभव करते हैं तब हृदय से हाथ तक की हमारी यात्रा आरम्भ होती है। इस प्रकार, यह यात्रा वहाँ शुरू होती है जहाँ मुझे कष्ट था और जिसके लिए मैंने दया पायी थी।

संत पापा ने चिंतन हेतु प्रश्न किया कि ऐसी परिस्थिति में ″मैं क्या करता हूँ? क्या मैं अपने हृदय और हाथ खोलता हूँ?

उन्होंने लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि करुणा को प्राप्त करने के लिए अपने आप का परित्याग करें तथा अपने हाथों से दूसरों की मदद द्वारा करुणा एवं प्रेम फैलायें।

 








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