2016-10-04 11:45:00

लिंग सिद्धान्त शिक्षा की सन्त पापा ने की निन्दा


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016 (सेदोक): सन्त पापा फ्राँसिस ने स्कूलों में लिंग सिद्धान्त की भावना को तूल देने की कड़ी निन्दा की। समलैंगिकों के प्रति एकात्मता एवं समझदारी का उन्होंने आह्वान किया किन्तु किसी पर मतारोपण को सरासर ग़लत ठहराया।

रविवार को जॉर्जिया एवं अज़रबैजान में अपनी तीन दिवसीय यात्रा से वापस लौटते समय सन्त पापा ने विमान में उपस्थित पत्रकारों से बातचीत के दौरान कई मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किये।

सन्त पापा प्राँसिस ने कहा कि किसी व्यक्ति में समलिंगकामी अथवा लिंग परिवर्तन की प्रवृत्ति होना या उसके प्रति आकर्षण का होना एक बात है किन्तु दूसरी बात है व्यक्तियों की मानसिकता में बदलाव लाने के लिये उनपर मतारोपण करना और कभी–कभी तो स्कूलों में भी उन्हें इस ओर आकर्षित करने का प्रयास करना।

सन्त पापा ने बताया कि उन्होंने पुरोहित एवं धर्माध्यक्ष रहते कई बार समलिंगकामियों की मदद की है तथा उनके प्रति समझदारी को प्रोत्साहन दिया है। उन्होंने कहा, "मैं समलैंगिक प्रवृत्ति  रखनेवाले लोगों के साथ रहा हूँ, मैंने उनके प्रति एकात्मता और सहानुभूति दर्शाई है तथा प्रेरित रूप में उन्हें प्रभु के निकट लाने का प्रयास किया है, उनका परित्याग कभी नहीं किया है जिस प्रकार प्रभु येसु किसी का परित्याग नहीं करते। यदि कोई समलिंगकामी प्रभु येसु के समक्ष प्रस्तुत होता है तो वे उससे, निश्चित्त रूप से, यह नहीं कहते कि तुम यहाँ से चले जाओ क्योंकि तुम समलिंगकामी हो।" तथापि, सन्त पापा ने कहा, "जानबूझकर बच्चों में इन प्रवृत्तियों को लाने का प्रयास करना ग़लत है।"

सन्त पापा ने कहा कि आज जो लिंग सिद्धान्त सम्बन्धी मतारोपण जारी है उसकी हम निन्दा करते हैं। एक उदाहरण देते हुए सन्त पापा ने कहा कि फ्राँस के एक व्यक्ति ने उन्हें बताया था कि जब वह और उसकी पत्नी अपने बच्चों के साथ खाने की मेज़ पर बातचीत कर रहे थे तब उन्होंने अपने 10 वर्षीय बच्चे से पूछा कि बड़े होकर वह क्या बनना चाहता था तो उसका उत्तर थाः "एक लड़की", पिता तुरन्त समझ गया कि स्कूल में बच्चों को ग़लत शिक्षा दी जा रही थी। सन्त पापा ने कहा, "इस प्रकार की भ्रष्ट बातें बच्चों के मन में डालना प्रकृति के विरुद्ध है और इसी को हम वैचारिक उपनिवेशीकरण या मतशिक्षा कहते हैं जो प्रकृति एवं ईश्वरीय विधान के विरुद्ध है।"








All the contents on this site are copyrighted ©.