2016-10-02 15:48:00

विश्वास एक सुनहरा धागा है


वाटिकन रेडियो रविवार, 02 अक्टुबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्रांसिस ने जार्जिया और अजरबैजान की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे और अंतिम दिन अजरबैजान के बाकु कुंवारी मरिया निष्कलंक गर्भधारण के गिरजा घर में अपना प्रातःकालीन ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि ईश्वर आज ख्रीस्तीय जीवन के दो विशेष बातों, विश्वास और सेवा को हमारे बीच रखते हैं। पहली बात नबी हव्वाकुक के द्वारा एक विनय प्रार्थना के रुप में रखी गई है जहाँ वे न्याय और शांति की स्थापना हेतु निवेदन करते हैं जो मनुष्यों के हिंसा, लड़ाई-झगड़े के कारण व्याप्त है। “प्रभु, मैं कब तक पुकारता रहूँगा और तू अनसुनी करता रहेगा? ईश्वर अपने को प्रत्यक्ष रुप में हमें प्रकट नहीं करते, वे सीधे तौर पर चीजों का निदान करने हेतु हस्तक्षेप नहीं करते हैं और न ही अपने बाहुबल का प्रयोग करते हैं। बल्कि वे धैर्य पूर्वक हमें इंतजार करने, बिना आशा खोये और उससे बढ़कर अपने विश्वास में बन रहने को कहते हैं क्योंकि यह विश्वास है जिसके द्वारा मनुष्य जीवित रहता है। (हबक्कूक 2.4) ईश्वर का व्यवहार हमारे साथ ऐसा ही है वे हमारी सोच के मुताबिक शीघ्रता से दुनिया और लोगों में परिवर्तन नहीं लाते हैं। वे धैर्य पूर्वक मेरे हृदय, आप के हृदय और प्रत्येक जन के हृदय को परिवर्तित करते हैं। वे हमारे हृदय परिवर्तन के द्वारा दुनिया को बदले हैं और वे हमारे बिना ऐसा नहीं कर सकते हैं। वे हमारे हृदयों को खुला रखने का आहृवान करते हैं जिससे वे उसमें प्रवेश कर सकें। हमारे हृदयों को खोलना ईश्वर के प्रति हमारे विश्वास का द्योतक है जिसके द्वारा वह संसार पर विजय होते हैं। ईश्वर जब एक खुला और विश्वासी हृदय पाते तो वे उसके द्वारा अपने कार्य की शुरूआत करते हुए चमत्कार करते हैं।

लेकिन एक सजीव विश्वास का अपने में होना सहज नहीं है और इस तरह हम दूसरे विनय पर आते हैं जो शिष्यों के द्वारा अपने विश्वास में बढ़ोतरी की याचना है। “प्रभु हमारे विश्वास को बढ़ाए।” (लूका. 17:6)  यह एक अच्छी प्रार्थना है जिससे हम अपने रोज दिन के जीवन में येसु से कर सकते हैं। यहां येसु अपने चेलों को उत्तर देते हुए कहते हैं “यदि तुम्हारा विश्वास होता... ” वे हमें विश्वास करने हेतु कहते हैं क्योंकि यह ईश्वर का हमारे लिए दिया गया एक दान है जिसके बारे में हमेशा हमें कहा जायेगा अतः हम अपने में इसे मजबूत करें। यह कोई जादू नहीं जो स्वर्ग से उतरती हो, न ही यह कोई विशेष शक्ति या गुण है जिसके द्वारा हम जीवन की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। विश्वास जो हमारे ज़रूरतों की पूर्ति करता वह स्वार्थ पूर्ण विश्वास है जहाँ हम केवल अपने तक ही सीमित रहते हैं। विश्वास को हमारी कुशलता और अच्छे अनुभवों से जोड़कर देखना गलत है। यह एक सुनहरे धागे के समान है जो हमें ईश्वर से जोड़ता है जिनसे संयुक्त रहकर हम सच्ची खुशी का अनुभव करते हैं। यह हमारे लिए एक उपहार है जो जीवन भर हमारे साथ रहता है और यदि हम अपनी भूमिका अदा करते तो यह फलप्रद होता है।

संत पापा ने कहा कि विश्वास में हमारी क्या भूमिका है? येसु हमें इसे समझने में मदद करते हैं जो हमारी सेवा से जुड़ा है। विश्वास और सेवा एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि वे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। विश्वास और सेवा की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि यह इस सुन्दर दर्री के समान है जिसे हम अपने सामने देखते हैं। आप की यह दर्री आपके कलात्मक कार्य, आपकी पुरानी विरासत है। आपका ख्रीस्तीय जीवन भी आपको विरासत में मिली है। हम इसे कलीसिया में ईश्वर द्वारा पिता के हृदय से प्राप्त करते हैं। एक दर्री जैसे हम जानते हैं कि ताने और बाने से बना है क्योंकि इसके द्वारा ही इसे एक प्ररूप दिया जा सकता है, ठीक उसी तरह हमारा ख्रीस्तीय जीवन भी है। प्रत्येक दिन हमें अपने जीवन को धैर्य रूपी विश्वास के ताने और सेवा रुपी बाने से बुनने की जरूरत है। जब विश्वास सेवा से गुथता तो हमारा हृदय खुला और युवा रहता है जिसके द्वारा कार्य सम्पादित होते है जैसे कि येसु हमें सुसमाचार में बतलाते हैं मजबूत विश्वास शानदार कामों को पूरा करता है। जब हमारा विश्वास सेवा की राह में अग्रसर होता तो यह परिपक्व और शक्तिशाली होता है।

संत पापा ने कहा लेकिन सेवा क्या है? हम सोचते हैं कि यह अपने कामों के प्रति निष्ठावान रहना है या कुछ अच्छे कार्य करना है। येसु के लिए यह इसके भी बढ़कर है। आज के सुसमाचार में येसु बड़े ही ठोस और मूल रूप में हमें अपने जीवन में सदा पूर्णरूपेण उपलब्ध रहने, खुले दिल से, अपने कामों का बिना हिसाब किये अपने को देने की बात कहते हैं। येसु क्यों हम से इतना माँग करते हैं? क्योंकि वे स्वयं हमें इस तरह सेवक बन अपने जीवन के आखिरी सांस तक प्रेम करते हैं। “मैं सेवा करने और अपना जीवन देने आया हूँ।” (मकु.10.45) इस बात की पुनरावृति तब-तब होती जब-जब हम युख्रारिस्त बलिदान अर्पित करते हैं। वे हमारे बीच में आते और हमें अपने प्रेम और सेवा से भर देते हैं। वे हमें निमंत्रण देते हुए कहते हैं, “जो मेरी सेवा करना चाहता है वह मेरा अनुसरण करे।” (जो. 12.26)

अतः हम केवल ईनाम पाने के उद्देश्य से सेवा हेतु नहीं बुलाये गये हैं बल्कि येसु का अनुसरण करने के मकसद से जिन्होंने हमारे प्रेम की खातिर अपने को सेवक बना लिया। हम यदा कदा सेवा करने हेतु नहीं बल्कि सेवा का जीवन जीने हेतु बुलाये गये हैं। सेवा जीवन का मार्ग है जो ख्रीस्तीय जीवन के मर्म को हमें बतलाता है।

संत  पापा ने कहा कि हम ख्रीस्तीयों के जीवन में भी प्रलोभनें आती हैं जो हमें सेवा के मार्ग से दूर निरर्थक जीवन की ओर ले जाती हैं। इन्हें हम दो रुपों में देख सकते हैं। पहला जो हमारे हृदय को कुनकुना बना देती है। कुनकुना हृदय स्वार्थ में अपने तक ही सीमित हो जाता और प्रेम की अग्नि का दमन करता है। कुनकुना  हृदय वाला व्यक्ति केवल अपनी ही सुविधा की चिंता करता है और वह अपने जीवन से कभी संतुष्ट नहीं होता है और इस तरह वह औसत दर्जे में जीवन यापन करने लगता है। वह समय का मोलतोल करता है और कभी भी अपना शत प्रतिशत समय ईश्वर और दूसरों के लिए नहीं देता है। उसके जीवन में उमंग की कमी होती है। वह मानों अच्छी चाय की तरह है लेकिन ठड़ होना पर उसकी स्वाद नहीं ली जा सकती है। यदि हम अपने पूर्वजों के जीवन की ओर गौर करेंगे जो हम से पहले चले गये तो हमारा जीवन कुनकुना नहीं होगा। आप कलीसिया की महत्वपूर्ण ईकाई हैं अतः ईश्वर आप को अपनी प्रेम भरी नजरें से निराहते हैं।

दूसरा प्रलोभन हमारी उदासीनता नहीं लेकिन हमारी अत्यधिक क्रियाशीलता है जिसका हम शिकार हो सकते हैं जहाँ हम अपने को स्वामी की तरह पेश करते हैं और अपने में कुछ पाने और कुछ बनने की तमन्ना रखते हैं। ऐसी स्थिति में सेवा उद्देश्य के बदले एक साधन बन जाती है। इस तरह हम अपने में नाम, प्रसिद्धि और ताकत की चाह करने लगते हैं। येसु हमें इसके बारे में सचेत करते हुए कहते हैं, “तुम्हारे साथ ऐसा नहीं हो, जो तुम लोगों में बड़ा होना चाहता है वह सब का सेवक बने।” (मती.20.26) कलीसिया इसी रूप में बढ़ती और विकास करती है। दर्री को ओर पुःन लौटते हुए हम अपने सुन्दर समुदाय के बारे में कह सकते हैं, आप में से हर कोई शानदार रेशम के धागे के समान है। जब आप का मिलन एक दूसरे के साथ होता है तो आप अपने में एक सुन्दर आकृति तैयार करते हैं। अलग-थलग रहने में हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। अतः आप सदैव एकता में, नम्रता के द्वारा सेवा और खुशी में बने रहे, ईश्वर जो विभिन्नताओं में भी अपनी शांति उत्पन्न करते आपकी रक्षा करेंगे।

हम कुंवारी माता मरिया की मध्यस्था द्वारा विशेष रुप से कोलकता की संत तेरेसा की तरह बन सके जिनका विश्वास और सेवा का फल हमारे समक्ष है। आइए हम आज के सुसमाचार के वचनों को याद करें, “विश्वास का फल प्रेम है, प्रेम का फल सेवा है और सेवा का फल शांति है।” 








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