2016-10-01 17:12:00

जोर्जिया का खजाना यहाँ की नारियाँ


जोर्जिया शनिवार, 1 अक्तूबर 2016 (सेदोक) संत पापा ने जोर्जिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दूसरे दिन त्बिलिसी के मिखाईल मेसाकी स्टेडियम में ख्रीस्तयाग अर्पित किया।

मिस्सा बलिदान के दौरान संत पापा ने अपने प्रवचन में कहा कि यह भव्य देश कई बहुमूल्य खजानों से भरा है जिसमें एक खजाना यहाँ की नारियों का महत्व है। बालक येसु की संत तेरेसा जिसका पर्व आज हम मनाते हैं वे लिखित हैं “वे पुरूषों की तुलना में ईश्वर को अधिक प्रेम करती हैं।” संत पापा ने कहा कि जोर्जिया में नानियों, दादियों और माताओं की संख्या अत्यधिक है जो संत नीनो द्वारा बोये गये विश्वास की रक्षा करते हुए इसे प्रसारित करती और ईश्वर के शुद्ध सांत्वना रूपी जल को असंख्य सूखेपन और लड़ाई की परिस्थितियों में ले कर आती है।

यह हमें ईश्वर के सुन्दर संदेश की सराहना करने के योग्य बनाता है जिसे हम आज के पहले पाठ में सुनते हैं “जिस तरह माँ अपने पुत्र को सांत्वना देती है उसी तरह मैं तुम्हें सांत्वना प्रदान करुंगा। (इसा.66.13) जिस तरह एक माँ अपनी संतान के सारे बोझ और चिन्ताओं को अपने ऊपर ले लेती है उसी तरह ईश्वर हमारे पापों और मुसीबतों को अपने ऊपर ले लेते हैं। वे हमें जानते, हमारी प्रार्थनाओं को सुनते और हमारे आंसूओं को पोछते हैं क्योंकि वे हमें अनंत प्रेम करते हैं। जब वे हमारी ओर दृष्टि फेरे तो वे दया और करुणा से भर जाते हैं। अपने अनंत प्रेम की गहराई में वे हमारे दोष गुनाहों के बावजूद हमें अपने निकट रखते और हमें अपनी बाहों में भर लेते और सब तरह की बुराइयों और ख़तरों से हमारी रक्षा करते हैं। हम येसु के उन वचनों को अपने हृदयों में गुंजित होने दें, “जिस तरह माँ अपने पुत्र को सांत्वना देती है उसी तरह मैं तुम्हें सांत्वना प्रदान करुंगा।”

हम अपने जीवन के कटु अनुभवों और उथल-पुथल के बीच सांत्वना की कामना करते हैं जो हमारे लिए ईश्वरीय उपस्थिति का एहसास दिलाती है। ईश्वर की उपस्थिति हमारे जीवन में सांत्वना का श्रोत बनती है जो हमें बुराइयों से मुक्त करती और हमारे जीवन में शांति तथा खुशी की वृद्धि करती है। अतः यदि हम सांत्वना की चाह रखते हैं तो हमें ईश्वर को अपने जीवन में स्थान देने की आवश्यकता है। येसु के साथ हमेशा रहने के लिए हमें अपने हृदयों के द्वार को उनके लिए खोलने की जरूरत है जिससे वे हम में प्रवेश कर सकें। संत पापा ने कहा कि हमारे लिए बहुत सारे सांत्वना के द्वार हैं जैसे कि प्रति दिन सुसमाचार का पाठ और इसके अनुरूप जीवन यापन, आराधना के दौरान हमारी शांतिमय प्रार्थना, पापस्वीकार, युख्रारीस्त बलिदान जिन्हें हमें खुला रखने की जरूरत है क्योंकि येसु उन द्वारों के जरिये हमारे दिलों में प्रवेश करना पसंद करते हैं। उन द्वारों के माध्यमों से येसु हमारे पास आते और हमें जीवन की नई ताजगी और उमंग से भर देते हैं। जब हमारा हृदय बंद रहता है तो उनकी ज्योति हममें प्रवेश नहीं कर सकती और सारी चीजें अंधेरे में रहती हैं। इस तरह हम निराशवादी बातों के शिकार हो जाते हैं जो कभी परिवर्तित नहीं होती है। इस तरह हम अपने दुःख में डूब जाते हैं और अपने को सभी बातों से तटस्थ कर लेते हैं। ठीक इसके विपरीत यदि हम सांत्वना के द्वार को पूरी तरह खोलते तो ईश्वर की ज्योति हमारे जीवन में प्रवेश करती है।

संत पापा ने कहा कि यद्यपि ईश्वर केवल हमारे हृदयों में ही सांत्वना प्रदान नहीं करते। वे नबी इसासस के द्वारा कहते हैं “तुम्हें येरुसालेम से दिलासा मिलेगा।” (66.13) येरुसलेम ईश्वर का घर है इस तरह जब हम एक समुदाय के रुप में आते हैं तो हम अपने ईश्वर के सांत्वनापूर्ण कार्यों का अनुभव करते हैं। हम कलीसिया में ईश्वर की सांत्वना का अनुभव करते क्योंकि यह सांत्वना का गृह है। हम अपने आप से पूछे सकते हैं मैं जो कलीसिया का एक अंग हूँ क्या मैं अपने जीवन के द्वारा ईश्वर को सांत्वना प्रदान करता हूँ? क्या मैं उन लोगों के लिए सांत्वना का कारण बनता हूँ जिन्हें मैं अपने जीवन में थका और विचलित पता हूँ? एक ख्रीस्तीय के रुप में अपने दुःखों और परित्यक्त क्षणों में भी हम दूसरों के लिए आशा, उनकी उपस्थिति और क्षमा की निशानी विशेषकर उनके साथ बाँटने हेतु बुलाये गये हैं जो अपने जीवन से हताशा और निराश हो गये हैं। दुनिया में कितने लोगों हैं जो अन्याय, मुक़दमों और चिंताओं में पड़े हुए हैं। हमारे हृदयों को ईश्वर की सांत्वना से अभियंजित होने की जरूरत है जिसके द्वारा हमारी तकलीफों के बावजूद भी हम दूसरों को ईश्वर के प्रेम और शांति का एहसास दिला सकें जिससे वे अपने जीवन में अपने तकलीफों का वहन कर सकें। हम ईश्वर की सांत्वना को अपने जीवन में ग्रहण करने और इसे दूसरों तक ले जाने हेतु बुलाये गये हैं जो कि कलीसिया का अति आवश्यक प्रेरितिक कार्य है। संत पापा ने विश्वासियों का आहृवान करते हुए कहा कि भाइयो और बहनों हम इस प्रेरितिक कार्य को अपने ऊपर लें, हम अपने इर्दगिर्द हो रही गलत चीजों का शिकार न हो और न ही अशांत माहौल से दुःखी हो। हम अपनी कलीसिया के “सूक्ष्म-वातावरण” से प्रभावित न हो वरन् अपने जीवन में आशा और साहस में नम्रता के साथ अपने लिए नये क्षितिज को खोलें। ईश्वर के सांत्वना को अपने जीवन में अनुभव करने हेतु हमें एक छोटे बालक के समान बनने की जरूरत है। एक छोटा बच्चा जो अपनी माता की गोद में रहता है। (स्त्रो.130.2)

येसु हमें कहते हैं कि छोटे बच्चे ईश्वरीय राज्य के अधिकारी हैं (मती.18.4) येसु के समक्ष मानव की महानता नम्र होने में है क्योंकि ईश्वर का ज्ञान महान् विद्या और बहुमूल्य पढाई के द्वारा नहीं लेकिन हमारी नम्रता में होता है। ईश्वर के सामने महान होने हेतु हमें प्रतिष्ठित या दुनियावी चीजें और सफलता को जमा करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन हमें अपने को पूरी तरह खाली करने की जरूरत है। एक छोटे बच्चे के पास देने को कुछ नहीं हैं लेकिन लेने को सब कुछ है। वह अपने माता-पिता पर आश्रित रहता है। अतः जो एक बालक की तरह बनता वह अपने में गरीब है लेकिन ईश्वर की नज़रों में धनी है।

बच्चे हमें यह शिक्षा देते हैं कि ईश्वर उन लोगों में महान कार्यों को पूरा करते हैं जो उनका विरोध नहीं करते, जो ईमानदार, सरल और बनावटी नहीं हैं। सुसमाचार हमें बतलाता है कि कैसी छोटी चीजों के द्वारा ईश्वर अपने बड़े कार्यों को पूरा करते हैं, कुछ रोटियाँ और दो मछलियां (मती.14.15-20), राई का दाना (मकु.4.30-32), गेहूँ का दाना (जो.12.24), एक गिलास पानी (मती.10.42), विधवा का गरीब दान (लूका. 21,1-4), मरिया की दीन (लूका.1.46-55)।

यह ईश्वर की अद्भुत महानता है जहाँ वे हमें अपने प्रेम में आश्चर्यचकित करते हैं। हम इस ईश्वरीय प्रेम को अपने जीवन में बनाये रखें क्योंकि उन पर हमारा विश्वास हमें अचंभित करता है। यह हमें इस बात की याद दिलाती है कि हम अपने जीवन के मालिक नहीं लेकिन पिता की संतान हैं जिन्हें उनके प्रेम, आलिंगन और क्षमा की आवश्यकता है। धन्य हैं वे ख्रीस्तीय समुदाय जो आपसी एकता और सच्चाई में अपना जीवन यापन करते हैं। जो आर्थिक रुप से गरीब हैं लेकिन ईश्वर की नज़रों में धनी हैं। धन्य हैं वे चरवाहे जो दुनिया की सोच के अनुसार नहीं बल्कि प्रेम के नियम के अनुसार दूसरों की सुनते, उनका स्वागत और उनकी सेवा करते हैं। जार्जिया की कलीसिया अपने सेवा और शिक्षा के कार्य में समर्पित है येसु आप को अपनी कंधों में उठा कर आप को अपनी सांत्वना देते और अपनी खुशी का इजहार करते हैं।  

संत पापा ने कहा कि मैं संक्षेप में अपने विचारों को बालक येसु की संत तेरेसा के वचनों में व्यक्त करना चाहूँगा, “एक छोटा बालक अपने विश्वास में, भय मुक्त अपने पिता की बाहों में सो जाता है”। येसु हमसे बड़े कार्य की आशा नहीं करते वरन् साधारण समर्पण और कृतज्ञता की माँग करते हैं।” यह आज भी हमारे जीवन में सत्य है “कुछेक हृदय जो बिना संकोच अपने को उन्हें समर्पित करते, वे सचमुच में उनके अतुल्य प्रेम और करुणा को अपने जीवन में समझते हैं।” कलीसिया की आचार्या संत तेरेसा “प्रेम के विज्ञन” में माहिर थीं जो हमें यह शिक्षा देती हैं, “सर्वोतम सेवा दूसरों की गलतियों को अपने में वहन करने में निहित है।” वह हमें याद दिलाती हुए कहती हैं “प्रेम हृदय की गहराई में छुपा नहीं रह सकता है।” आइए हम एक साथ मिलकर ईश्वर से नम्र हृदय की कृपा मांगें जो प्रेम की कोमलता में विश्वास करता और उसके अनुरूप जीवन यापन करता है, आइए हम शांति और ईश्वर की करुणा में सम्पूर्ण विश्वास हेतु कृपा की याचना करें।








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