2016-09-22 10:55:00

बाईबिल कार्यक्रम, स्तोत्र ग्रन्थ भजन 76 दूसरा भाग


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"प्रभु! तू शक्तिशाली और प्रतापी है, शत्रुओं से लूटा हुआ माल पहाड़-जैसा ऊँचा है। शूरवीर चिरनिद्रा में सो गये। उन सब योद्धाओं का बाहूबल नष्ट हो गया। याकूब के ईश्वर! तेरी धमकी सुनकर रथ और युद्धाश्व निष्प्राण हो गये। तू आतंकित करता है। जब तेरा क्रोध भड़क उठता है, तो तेरे सामने कौन टिक सकता है?   

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन के चार से लेकर नौ तक के पदों के शब्द जिनकी व्याख्या हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत की थी। इन शब्दों से भजनकार ने यह सन्देश देना चाहा है कि मनुष्य भले ही लूट के माल से अपना घर भर ले। वह पहाड़ जैसा उसे विशाल बना ले प्रभु ईश्वर के प्रताप के आगे वह कुछ भी नहीं है उसी प्रकार जिस प्रकार निर्गमन ग्रन्थ में निहित नबी मूसा के युग में हुआ। आपका ध्यान हमने इस ओर आकर्षित किया था कि भजनकार उसके अपने दिनों से लगभग 500 साल पहले घटी निर्गमन ग्रन्थ की घटना का स्मरण कर रहा था जिसमें प्रभु ईश्वर ने मिस्र के फराऊन एवं उसके योद्धाओं से इस्राएली लोगों की रक्षा की थी। अब उसी प्रकार ईश्वर यूदा की रक्षा कर रहे थे। ईश्वर के प्रताप और उनके तेज के आगे अस्सूरी राजा के सारे शूरवीर निष्चेत और निष्प्राण ज़मीन पर गिर गये। प्रभु के कोप को वे सहन नहीं कर पाये तथा धराशायी हो गये इसलिये कि बुराई की शक्तियाँ प्रभु ईश्वर के प्रताप के आगे टिक नहीं पाती हैं। उन प्रभु के आगे जिन्होंने चन्द्रमा और सूर्य को स्थापित किया तथा पृथ्वी के सीमान्तों को निर्धारित किया। स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन का रचयिता, वस्तुतः, यह सन्देश देना चाहता था कि प्रभु ईश्वर अपने लोगों की सदैव सुधि लेते हैं। वे दीन-हीन लोगों की प्रार्थना को कभी नहीं ठुकराते तथा आततायियों के दमन चक्र से उनकी रक्षा करते हैं इसलिये मनुष्य प्रभु ईश्वर पर भरोसा रखे, शुद्ध हृदय से उन्हें धन्य मनाये, उनका स्तुतिगान करे तथा सबकुछ के लिये उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया करे। ईश्वर प्रतापी विजेता हैं, उनमें अपने विश्वास को सुदृढ़ करते हुए वह ईश आदेशों के अनुकूल जीवन यापन करे।

आगे 76 वें भजन के नवें एवं दसवें पदों में भी भजनकार कहता हैः "ईश्वर! जब तू न्याय करने और दीन-दुखियों का उद्धार करने उठा, जब तूने स्वर्ग में अपना निर्णय सुनाया, तो पृथ्वी भयभीत होकर शांत हो गयी।"

श्रोताओ, ईश्वर का न्याय तब-तब प्रकट हुआ जब-जब ईश प्रजा ने उन्हें पुकारा। फराऊन के अत्याचारों से त्रस्त जब इस्राएली प्रजा ने ईश्वर को पुकारा तब ईश्वर की महिमा प्रकट हुई। अस्सूरी राजा सेनहेरीब ने जब लोगों को प्रताड़ित किया तब ईश्वर यूदा में प्रकट हुए इसी कारण बाईबिल पंडित मानते हैं कि बुराई इसीलिये उभरी कि प्रभु ईश्वर की महिमा पृथ्वी के सीमान्तों तक छा जाये।

"ईश्वर! जब तू न्याय करने और दीन-दुखियों का उद्धार करने उठा, जब तूने स्वर्ग में अपना निर्णय सुनाया, तो पृथ्वी भयभीत होकर शांत हो गयी।" इन शब्दों में भजनकार बाईबिल प्रकाशना के प्रति सत्यनिष्ठ रहते हुए एक धर्मतत्ववैज्ञानिक चित्र प्रस्तुत करता है तथा ईश्वर के कार्यों का स्मरण दिलाता है। वह ईश्वर के उद्धारकारी कार्यों का बखान करता तथा उन बातों की याद दिलाता है जब ईश्वर के सामर्थ्य से बुराई को परास्त करने के लिये जलप्रलय हुआ और पृथ्वी भयभीत हो उठी थी। जलप्रलय से जो लोग बच निकले उनसे मानों भजनकार कहता है कि वे ईश्वर को अपनी कमर में कमरबन्ध की तरह बाँधें रखें क्योंकि वे ही उनके उद्धारकर्त्ता हैं।

इसका एक अन्य उदाहरण उत्पत्ति ग्रन्थ के जोसफ तथा उसके भाइयों की कहानी में हम पाते हैं। भाइयों ने जोसफ को दास बनाकर बेच डाला था। अपने इस भयंकर अनुभव के बाद सुरक्षित वापस लौटने पर जोसफ ईश्वर का गुणगान करता है और उसके समक्ष एकत्र भाइयों से कहता है, "आपने हमारे साथ बुराई करनी चाही, किन्तु ईश्वर ने उसे भलाई में परिणत कर दिया और इस प्रकार बहुत-से लोगों के प्राण बचाये।"

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन के अन्तिम चार पदों पर दृष्टिपात करें। ये पद इस प्रकार हैं, "विद्रोही एदोम तेरी स्तुति करेगा, हामाथ के बचे हुए लोग तेरे पर्व मनायेंगे। मन्नतें मानो; उन्हें अपने प्रभु ईश्वर के लिये पूरा करो। निकटवर्ती राष्ट्र तेजस्वी प्रभु को भेंट चढ़ाने आयें; क्योंकि वह शासकों का घमण्ड तोड़ता और पृथ्वी के राजाओं को आतंकित करता है।" एदोम और हामाथ ने विद्रोह करने के बावजूद प्रभु ईश्वर का सामर्थ्य प्रकट होते देखा था इसीलिये भजनकार कहता है, "विद्रोही एदोम तेरी स्तुति करेगा, हामाथ के बचे हुए लोग तेरे पर्व मनायेंगे" और फिर हमसे कहता है "मन्नतें मानो; उन्हें अपने प्रभु ईश्वर के लिये पूरा करो", क्योंकि प्रभु ने हम सबके लिये महान कार्य किये हैं।

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ के 76 वें भजन का रचयिता हमें याद दिलाता है कि हमारा जीवन हमारी अपनी बपौती अथवा हमारी अपनी सम्पत्ति नहीं है। जीवन ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान है जिसे हम उन्हीं के आदेशानुकूल व्यतीत करें। उसका किसी प्रकार से दुरुपयोग न करें क्योंकि मानव जीवन ही वह स्थल है जहाँ ईश्वर के प्रेममय कार्य सम्पादित हुआ करते हैं, यही वह स्थल है जहाँ उनके उद्धारकारी कार्यों की प्रकाशना होती है। 76 वें भजन के अन्तिम पद में भजनकार निर्देश देते हुए कहता है, "निकटवर्ती राष्ट्र तेजस्वी प्रभु को भेंट चढ़ाने आयें; क्योंकि वह शासकों का घमण्ड तोड़ता और पृथ्वी के राजाओं को आतंकित करता है।" प्रायः राजा, शासक, तानाशाह और राष्ट्राध्यक्ष यही मान लेते हैं कि उन्हीं पर सबकुछ निर्भर है, वे ही अपने राष्ट्रों और देशों के कर्त्ता धर्ता है किन्तु 76 वें भजन का रचयिता स्मरण दिलाता है कि यदि शासक और राजा केवल लौहदण्ड से लोगों का दमन करते हैं तो कभी भी ईश्वर के कोप और उनके न्याय से बच नहीं सकते। ईश्वर दीन-दुखियों की सुधि लेते हैं, कहता हैः "ईश्वर शासकों का घमण्ड तोड़ता और पृथ्वी के राजाओं को आतंकित करता है।"








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