2016-09-21 10:28:00

शांति के निर्माता बनें जिसके लिए मानव-जाति प्यासी है


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 20 सितम्बर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने असीसी के संत फ्राँसिस महागिरजाघर के प्राँगण में, 20 सितम्बर को शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस के अवसर पर उपस्थित, विभिन्न कलीसियाओं एवं धर्मों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर कहा।

मैं सम्मान एवं स्नेह के साथ आप सभी का अभिवादन करता हूँ और आपकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद देता हूँ। हम शांति की खोज हेतु तीर्थयात्री के रूप में असीसी आये हैं। हम अपने आप में बहुतों की आशा एवं दुःख को धारण किये हुए हैं जिसे प्रभु के सम्मुख प्रस्तुत करें और सबसे बढ़कर, हम शांति हेतु प्रार्थना करें क्योंकि शांति ईश्वर का वरदान है जिसके लिए हमें निवेदन करना है, स्वीकारना है एवं ईश्वर की कृपा से प्रत्येक दिन उसका निर्माण करना है।  

″धन्य हैं वे जो मेल कराते हैं।″ (मती. 5:9) संत पापा ने कहा, ″आप में से कई बहुत अधिक दूरी तय कर इस पवित्र भूमि तक पहुँचे हैं। आप यहाँ आये हैं ताकि शांति हेतु एक साथ कार्य कर सकें जो न केवल शारीरिक कार्य है किन्तु खास तौर पर आत्मा का कार्य है। जो बंद है उससे बाहर आने हेतु ठोस आध्यात्मिक कार्य का प्रत्युत्तर है तथा ईश्वर एवं भाई-बहनों के प्रति खुलापन है। ईश्वर हम से इसी की मांग करते हैं तथा बुलाते हैं कि हम इस समय की बड़ी बीमारी उदासीनता का सामना कर सकें। यह एक विषाणु है जो हमें पंगु कर देता एवं सुस्त और असंवेदनशील बना देता है। एक ऐसी बीमारी जो धार्मिकता की मूल भावना को ही नष्ट कर देता है और एक बड़े खेदजनक नये प्रकार की उदासीनता पूर्ण मूर्तिपूजा को जन्म देता है किन्तु हम उदासीन नहीं रह सकते। आज दुनिया को शांति की अति आवश्यकता है। कई देशों में लोग युद्ध के कारण परेशान हैं जिन्हें याद नहीं किया जाता है और यही दुःख एवं गरीबी का कारण बनता है।

संत पापा ने लेसबोस द्वीप की यात्रा का स्मरण कर कहा, ″लेसबोस में मेरे प्रिय भाई प्राधिधर्माध्यक्ष बार्थोलोमियो प्रथम तथा मैंने, शरणार्थियों की आँखों में युद्ध की पीड़ा एवं शांति की प्यास देखी थी। मैं उन परिवारों की याद करता हूँ जो बिखर गयी हैं बच्चें जो अपने जीवन में सिर्फ युद्ध से परिचित हैं तथा बुजुर्ग जो अपना शहर छोड़ने के लिए मजबूर हैं। उन सभी को शांति की बड़ी प्यास है। हम इन संकटों को भूलना नहीं चाहते हैं बल्कि एक साथ उन सभी के दुखों के लिए आवाज उठाना चाहते हैं जिनकी आवाज नहीं है और जिनकी आवाज नहीं सुनी जाती। वे अच्छी तरह जानते हैं और बहुधा शक्तिशाली से भी बेहतर कि युद्ध का कोई भविष्य नहीं है तथा हथियारों की हिंसा जीवन के आनन्द को नष्ट कर देता है।

हमारे पास हथियार नहीं है किन्तु हम नम्र और विनीत प्रार्थना की शक्ति पर विश्वास करते हैं। आज शांति की प्यास ने ईश्वर से प्रार्थना का रूप ले लिया है ताकि युद्ध, आतंकवाद तथा हिंसा का अंत हो सके। ″शांति जिसका आह्वान हम असीसी से कर रहे हैं वह युद्ध के विरूद्ध धरना नहीं है और न ही समझौतों, राजनीतिक सुलह और आर्थिक तोल-मोल का परिणाम। यह प्रार्थना का फल है। (संत पापा जॉन पौल द्वितीय 27 अक्तूबर 1986)

हम ईश्वर की खोज करते हैं जो वार्ता के स्रोत हैं, शांति के विशुद्ध जल जिसके लिए मानव प्यासी है। ये जल अभिमान और निजी स्वार्थ के मरुस्थल से नहीं बहता और न ही लाभ की किसी भी कीमत एवं हथियारों के व्यापार से प्राप्त होता है।

हमारी धार्मिक परम्पराएं अलग-अलग हैं किन्तु हमारी विविधताएं संघर्ष, उत्तेजना एवं आपसी दूरी  के कारण नहीं हैं। हम आज एक-दूसरे विरूद्ध प्रार्थना नहीं कर रहे हैं जैसा कि दुर्भाग्य से इतिहास में कभी हुआ था बिना समन्वयता या सापेक्षवाद के बल्कि हमने एक-दूसरे के लिए प्रार्थना की है। इसी स्थान पर संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने कहा था, ″पहले की तुलना में अभी, सच्ची धार्मिक भावना तथा शांति की महान अच्छाई के बीच आंतरिक कड़ी सभी के लिए प्रत्यक्ष हो गयी है।″ (संत पापा जॉन पौल द्वितीय 27 अक्तूबर 1986)

संत पापा ने कहा कि उस यात्रा को 30 सालों तक असीसी में जारी रखते हुए जहाँ ईश्वर और शांति के व्यक्ति संत फ्राँसिस असीसी की स्मृति जीवित है, ″पुनः एक साथ जमा होकर हम घोषित करते हैं कि जो कोई भी धर्म का प्रयोग हिंसा भड़काने के लिए करता है वह धर्म की सच्ची और गहरी प्रेरणा के विपरीत है।″ (असीसी में विश्व धर्मों के प्रतिनिधियों को अभिभाषण, 24 जनवरी 2002) हम आगे घोषणा करते हैं कि हिंसा अपने किसी भी प्रकार से धर्म की सच्ची प्रकृति को प्रकट नहीं करता है। यह धर्म का विलोम है, उसका विनाश करता। (संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें, असीसी शांति प्रार्थना दिवस असीसी, 2011) हम यह दुहराते हुए कभी नहीं थकते कि हिंसा को न्याय संगत ठहराने के लिए ईश्वर का नाम कभी नहीं लिया जा सकता है। युद्ध नहीं किन्तु शांति ही पवित्र है।

आज हमने शांति के विशुद्ध वरदान के लिए प्रार्थना की है। हमने अर्जी की है कि अंतःकरण मानव जीवन की पवित्रता की रक्षा, लोगों के बीच शांति को प्रोत्साहन तथा हमारे सार्वजनिक घर सृष्टि की रक्षा हेतु प्रेरित हो।   

प्रार्थना तथा सहयोग के ठोस कार्य संघर्ष के तर्क को तोड़ने में मदद करे तथा उन लोगों की विरोधी भावना का बहिष्कार करे जो केवल प्रदर्शन एवं गुस्सा करना जानते हैं। प्रार्थना एवं एक साथ काम करने की भावना सच्ची शांति की ओर ले चलती हैं जो कोरी कल्पना नहीं है। यह उस व्यक्ति का मौन नहीं है जो समस्याओं से बचना चाहता है अथवा उससे दूर भागता है यदि उसकी व्यक्तिगत रुचि जोखिम में पड़ जाती है। यह कोई उदासी भी नहीं है जो समस्या से अपना हाथ धो लेता है। उस व्यक्ति की धार्मिक पहुँच नहीं है जो सभी का न्याय करता है तथा अपने भाई की आवश्यकता पर नजर डाले बिना कम्प्यूटर खोलता है। हमारा मार्ग हमें परिस्थिति में सम्मिलित कर देता है तथा कष्ट सहने वालों को पहला स्थान देता है ताकि उन्हें संघर्ष से बाहर निकाल सके एवं आंतरिक चंगाई प्राप्त करने में मदद कर सके। अच्छाई के रास्ते पर लगातार चलते रहने, बुराई द्वारा प्रस्तुत लघु मार्ग (शॉर्टकट) का बहिष्कार करने, धीरज पूर्वक शांति निर्माण में संलग्न रहने एवं भली इच्छा एवं ईश्वर की सहायता को प्राप्त करने में मदद पहुँचा सके।

शांति एक धागे के समान है जो पृथ्वी को स्वर्ग से जोड़ता है, एक साधारण शब्द है किन्तु कठिन भी। शांति का अर्थ क्षमाशीलता है, परिवर्तन एवं प्रार्थना का फल जो अंदर से उत्पन्न होता है। ईश्वर का नाम ही पुराने से पुराने घाव को चंगाई प्रदान करता है। शांति का अर्थ है स्वागत, वार्ता के लिए खुलापन, बंद मानसिकता से बाहर निकलना जो सुरक्षा की रणनीति नहीं है बल्कि खाली स्थान के ऊपर एक सेतु है। शांति का अर्थ सहयोग है, ठोस एवं एक-दूसरे के साथ सक्रिय आदान प्रदान, जो एक उपहार है न कि समस्या। एक भाई अथवा बहन है जिसके साथ हम बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। शांति शिक्षा प्रदान करती है, हर दिन संवाद के चुनौतीपूर्ण कला को  सीखने के लिए, मुलाकात की संस्कृति प्राप्त करने के लिए तथा प्रत्येक दिन हिंसा एवं कठोरता के प्रलोभन में पड़े अंतःकरण को शुद्ध करने के लिए जो ईश्वर के नाम एवं मानव प्रतिष्ठा से भिन्न है।

संत पापा ने असीसी में सभी प्रतिभागियों से कहा कि हम जो यहाँ एक साथ जमा हुए हैं तथा शांति पर विश्वास करते हैं एवं भ्रातृत्व पूर्ण दुनिया की आशा करते हैं। हम चाहते हैं कि विभिन्न धर्मों के स्त्री एवं पुरुष सभी जगह एक साथ जमा हों तथा सौहार्द की भावना को बढ़ावा दें विशेषकर, जहाँ संघर्ष है। हमारा भविष्य एक साथ जीने में निहित है। यही कारण है कि हम अपने आप को अविश्वास के भारी बोझ, चरमपंथ तथा घृणा से मुक्त किये जाने के लिए बुलाये गये हैं। विश्वासी ईश्वर से प्रार्थना एवं मानव के प्रति अपने कार्यों में शांति के निर्माता बनें। धार्मिक नेता के रूप में हमारा कर्तव्य है कि हम वार्ता के एक मजबूत सेतु का निर्माण करें तथा शांति के रचनात्मक मध्यस्थ बनें।

संत पापा ने राष्ट्रों के नेताओं की ओर ध्यान खींचते हुए कहा, ″हम उन लोगों की ओर मुड़ते हैं जिन्हें लोगों की सेवा एवं देश का नेतृत्व करने हेतु बड़ा उत्तरदायित्व मिला है कि वे शांति को प्रोत्साहन देने एवं उसके निर्माण हेतु रास्ता खोजने से कभी न थकें। क्षणिक एवं अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठें, अपने हृदय में ईश्वर की आवाज को सुनने में बहरे न बनें, ग़रीबों द्वारा शांति की पुकार को सुनें तथा युवा पीढ़ी के लिए स्वस्थ अपेक्षाओं को प्रस्तुत करें।

तीस सालों पहले इसी स्थान पर संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने कहा था, ″शांति एक पूजा है जो सभी के लिए खुला है न कि विशेषज्ञों, पंडित और रणनीतिकारों के लिए ही। शांति एक सार्वभौमिक जिम्मेदारी है।″ (संत पापा जॉन पौल द्वितीय, संत फ्राँसिस महागिरजाघर, 27 अक्तूबर 1986)

संत पापा ने सभी लोगों का आह्वान करते हुए कहा, ″आइये हम इस जिम्मेदारी को ग्रहण करें, एकजुट होने के हमारे ‘हाँ’ को सुदृढ़ करें। शांति के निर्माता बनें जिसकी मांग ईश्वर हमसे करते हैं तथा जिसके लिए मानव-जाति प्यासी है।

 








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