2016-09-20 12:07:00

शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस के लिये सन्त पापा फ्राँसिस असीसी में


असीसी नगर, मंगलवार, 20 सितम्बर 2016 (सेदोक): रोम स्थित सन्त इजिदियो काथलिक लोकधर्मी समुदाय द्वारा आयोजित शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस के लिये सन्त पापा फ्राँसिस मंगलवार को असीसी रवाना हुए।

मंगलवार 20 सितम्बर के लिये आयोजित शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस की यह 30 वीं वर्षगाँठ है। सन् 1986 में पहली बार सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने असीसी नगर में शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस का सूत्रपात किया था। उस ऐतिहासिक घटना की 30 वीं वर्षगाँठ हेतु सन्त पापा फ्राँसिस मंगलवार प्रातः रोम से असीसी के लिये रवाना हुए तथा इसी दिन सन्ध्या साढ़े सात बजे रोम लौट रहे हैं।

सन्त फ्राँसिस की जन्म भूमि असीसी नगर में आयोजित शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस की 30 वर्षगाँठ का विषय हैः "शांति की तृष्णाः समस्त धर्मों एवं संस्कृतियों की बीच सम्वाद"।

बारसेलोना के सेवानिवृत्त कार्डिनल लूईस मार्तीनेस सिस्ताख ने वाटिकन रेडियो से कहा, "असीसी की भावना सजीव है तथा उसपर दिव्यदृष्टा सन्त जॉन पौल द्वितीय छाप स्पष्टतः अंकित है जिन्होंने इसका शुभारम्भ किया था।"

सन् 1986 में शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस का सूत्रपात करने के साथ-साथ सन् 1993 एवं 2002 में भी सन्त जॉन पौल द्वितीय असीसी में आयोजित प्रार्थना दिवसों में शरीक हुए थे। 2002 में उन्होंने विभिन्न धर्मों के लगभग 200 प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए कहा था, "शांति ईश्वर द्वारा दिया गया वरदान है जिसके लिये हम सबको सतत् प्रार्थना करते रहना चाहिये।" इस अवसर पर उन्होंने कहा था, "विश्व की नियति के प्रति चिन्ता के इस क्षण में यह स्पष्ट समझ में आता है कि आधारभूत भलाई अर्थात् शांति की रक्षा करना एवं उसे प्रोत्साहन देना हम सबका दायित्व है।"

2002 में सन्त जॉन पौल द्वितीय द्वारा उच्चरित शब्द आज भी समसामयिक हैं। आज भी विश्व शांति के लिये तड़प रहा है और इसीलिये असीसी में आयोजित सर्वधर्म प्रार्थना सम्मेलन एक महान एवं महत्वपूर्ण घटना है।

20 सितम्बर की सन्ध्या असीसी में आयोजित शांति हेतु विश्व प्रार्थना दिवस का तीन दिवसीय सम्मेलन कुस्तुनतुनिया के प्राधिधर्माध्यक्ष बारथोलोम प्रथम सहित इस्लाम, यहूदी एवं बौद्ध धर्मों के नेताओं के साक्ष्य तथा सन्त पापा फ्राँसिस के प्रवचन से समाप्त हो रहा है। इस अवसर पर युद्धग्रस्त क्षेत्रों में जीवन यापन करनेवालों के लिये विशेष प्रार्थनाएँ अर्पित की जायेंगी तथा युद्ध में मारे गये लोगों के लिये मौन धारण किया जायेगा। इसके अतिरिक्त, शांति की अपील पर हस्ताक्षर किये जायेंगे।








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