2016-09-15 16:01:00

संत पापा ने झूठे देवता को अपनाने के प्रलोभन में नहीं पड़ने हेतु चेतावनी दी


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 15 सितम्बर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 15 सितम्बर को वाटिकन स्थित क्लेमेंटीन सभागार में इतालवी बाइबिल द्वारा आयोजित राष्ट्रीय बाईबिल सप्ताह के 150 प्रतिभागियों से मुलाकात मानव प्रतिष्ठा पर चिंतन करने का परामर्श दिया।

44वां राष्ट्रीय बाईबिल सप्ताह रोम में 12 से 16 सितम्बर तक आयोजित किया गया है जिसकी विषयवस्तु है ″हम मनुष्य को अपने प्रतिरूप बनायें ...उसने नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की।″ प्रतिभागियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, ″ईताली बाईबिल द्वारा आयोजित राष्ट्रीय बाईबिल सप्ताह में आप सभी से मुलाकात कर मैं प्रसन्न हूँ।″

संत पापा ने बाईबिल सप्ताह की विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे बाईबिल पर आधारित नर और नारी के बीच संबंध के आयाम पर चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम किस तरह ईश्वर के प्रतिरूप में सृष्ट किये गये हैं उस पर चिंतन करें, अन्य सृष्ट जीवों से अलग तथा समस्त सृष्टि में महत्वपूर्ण। यह हमें उस प्रतिष्ठा को समझने में मदद देता है जिसका मूल, नर और नारी के रूप में ईश्वर के प्रतिरूप में सृष्ट किये जाने में हैं।

संत पापा ने कहा, ″मैं हमेशा इस बात से प्रभावित होता हूँ कि हमारी प्रतिष्ठा खास है क्योंकि हम ईश्वर की संतान हैं...वे उसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते हैं जिस तरह एक पिता अपने पुत्र-पुत्रियों के लिए करता है।″

सृष्टि की दूसरी कहानी पर चर्चा करते हुए संत पापा ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर ने एक शिल्पकार बनकर हमारी रचना की। पृथ्वी की मिट्टी से अपने ही हाथों द्वारा उसे गढ़ा और उसे जीवन प्रदान किया। उन्होंने हमारी सृष्टि न केवल अपने शब्दों से की किन्तु अपने हाथ और स्वास का भी प्रयोग किया। जिसके कारण कहा जा सकता है कि मानव को जीवन देने में ईश्वर का पूरा अस्तित्व ही अंतर्निहित था।

इन सब के बावजूद संत पापा ने मानव के दूसरे पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ईश्वर प्रदत्त मानव प्रतिष्ठा पर प्रहार हो सकता है यदि व्यक्ति अपने ही लक्ष्य की प्राप्ति में लग जाए। यह तब होता है जब हम प्रतिष्ठा पर तर्क-वितर्क करने लगते हैं, मूर्ति पूजा करते तथा हमारे हृदय में धन को रखते हैं। संत पापा ने कहा कि मानव अपनी प्रतिष्ठा खो देता है जब ईश्वर का स्थान धन ले लेता है। ईश्वर ने हमें अपनी संतान होने का सम्मान प्रदान किया है। यहाँ एक सवाल उठता है मैं इस प्रतिष्ठा को किस तरह बाँटू ताकि आपसी आदान-प्रदान द्वारा यह सकारात्मक रूप में विकसित हो सके? मैं किस तरह दूसरों को सम्मानित महसूस करा सकता हूँ? मैं किस तरह प्रतिष्ठा को दूषित कर देता हूँ। मैं अपनी प्रतिष्ठा को किस तरह देखता हूँ। संत पापा ने इसके लिए आत्म जाँच करने की सलाह दी। 








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