2016-08-29 15:52:00

देवदूत प्रार्थना के पूर्व संत पापा का नम्रता और उदारता पर संदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 28 आगस्त 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में रविवारीय देवदूत प्रार्थना हेतु जमा सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह में वार्षिक काल चक्र के 22वें सामान्य रविवार हेतु निर्धारित संत लुकस रचित सुसमाचार पर आधारित विषयवस्तु घमंड और ईश्वर के राज्य पर अपना संदेश दिया। संत पापा ने कहा,

प्रिय भाइयो और बहनो, सुप्रभात

सुसमाचार का यह दृश्य आज हमें येसु का एक प्रमुख फरीसी के घर में भोज हेतु निमंत्रण की चर्चा करता है जहाँ येसु लोगों को अपने लिए प्रथम स्थानों का चुनाव करते हुए भाग-दौड़ करते हुए देखते हैं। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि ऐसे नज़रों को हमने स्वयं अपनी आंखों से अपने जीवन में कई बार देखा है। इस दृश्य को देखते हुए येसु लोगों के सामने दो छोटे दृष्टांतों का जिक्र करते हैं जो हमारा ध्यान दो चीजों की ओर इंगित करता है पहला स्थान और दूसरा उपहार।

पहली चीज विवाह भोज से संबंधित है। येसु कहते हैं कि जब तुम्हें किसी के द्वारा विवाह भोज में निमंत्रण मिले तो अपने बैठने हेतु प्रथम स्थान का चुनाव न करो, क्योंकि विवाह भोज में तुम से और अधिक सम्मानित व्यक्ति को निमंत्रण दिया गया हो और निमंत्रण देने वाला तुम्हें आकर कहे कि अपना स्थान इन्हें दे दो। अपितु जब तुम्हें निमंत्रण मिले तो अपने लिए आखिरी स्थान का चुनाव करो। (लुक. 14.8-9) अपने इस सुझाव के द्वारा येसु हमें सामाजिक जीवन में व्यवहार हेतु नियमों को निर्देशित नहीं करते लेकिन वे हमें नम्रता की शिक्षा देते हैं। इतिहास हमें बतलाता है कि  घमंड, पद, दिखावा और शेखी बहुत सी बुराइयों का कारण रही है। येसु हमें अपने लिए सबसे पिछले स्थान चुनाव करने के मर्म को समझाते हुए कहते हैं कि हमें अपने जीवन में नम्रता और दीनता का चुनाव करने की जरूरत है। जब हम नम्रता में अपने को ईश्वर के समक्ष लाते हैं तो ईश्वर हमें ऊपर उठाते हैं। वे हमारी ओर झुककर हमें अपने स्तर तक उठाते हैं, “क्योंकि जो अपने को छोटा मानता हैं वह बड़ा बनाया जायेगा और जो अपने को बड़ा मानता है वह छोटा बनाया जायेगा।”

येसु के शब्द अलग-अलग मनोभाव को हमारे समक्ष दृढ़तापूर्वक प्रस्तुत करता है, पहला लोगों के व्यवहार को जहाँ वे स्वयं अपने लिए स्थान का चुनाव करते हैं और दूसरा अपने को ईश्वर के हाथों में छोड़ना जो हमारे लिए चीजों को निर्धारित करता और हमें पुरस्कार प्रदान करता है। संत पापा ने कहा, “आप यह न भूलें कि ईश्वर हमें मनुष्यों की तुलना में अधिक प्रदान करते हैं। वे हमें मनुष्यों की अपेक्षा उत्तम स्थान प्रदान करते हैं। ईश्वर हमें अपने हृदय के निकट रहने हेतु स्थान प्रदान करते और हमें अनंत जीवन की सौगात देते हैं। येसु कहते हैं, “तुम्हें आनन्द प्राप्त होगा, धर्मियों के पुनरुत्थान के समय तुम्हें इसका उपहार मिलेगा।”

इसका जिक्र येसु अपने दूसरे दृष्टान्त में करते हुए कहते हैं कि जब तुम भोज दो तो कंगालों, लूलों, लंगड़ों, और अन्धों को बुलाओ और तुम पुरस्कार के भागीदार होगे क्योंकि वे तुम्हें भोज के बदले भोज नहीं दे सकते। यहाँ येसु हमें अपने जीवन में वापस पाने के मनोभावना से ऊपर उठने का निमंत्रण देते जो हमारे स्वार्थ को दिखलाता और वापस पाने के द्वारा हमें धनी बनाता है, लेकिन वे हमें मुफ्त में देने को कहते हैं। वास्तव में गरीब, साधारण और जिनका अपना कुछ नहीं हैं वे हमारे भोज का चुकता नहीं कर सकते हैं। अतः येसु अपना विकल्प ग़रीबों और परित्यक्त लोगों हेतु दिखलाते हैं जो स्वर्ग राज्य के उत्तराधिकारी हैं और इस तरह वे हमें सुसमाचार के महत्वपूर्ण संदेश को हमारे बीच रखते हुए कहते हैं कि हमें ईश्वरीय प्रेम हेतु दूसरों की सेवा करनी है। आज येसु हमें अपनी आवाज शब्दहीन लोगों हेतु करने और अपने हृदयों को उनके लिए खोलने को कहते हैं जो गरीब, दीन-दुःखी, भूखे-प्यासे, प्रवासी, जीवन के दुःखों से चिंतित और अपने जीवन से हार मान बैठें हैं, वे जिन्हें समाज ने अपने तीक्ष्ण घमंड के कारण त्याग दिया है। आज वास्तव में समाज में उनकी वृद्धि होती जा रही है।

संत पापा ने कहा कि मैं कृतज्ञता से उन भोजनालयों के बारे में सोचता हूँ जहाँ कितने ही स्वयंसेवी अपनी सेवा ग़रीबों, जरुरतमंदों, बेरोज़गारों और गृह विहीनों को दे रहें हैं। ये भोजनालय और दूसरे करुणा के कार्य जैसे बीमारों और कैदी की भेंट हमारे जीवन के द्वारा प्रेम और उदारता की संस्कृति को प्रसारित करती है क्योंकि जो इन कार्य में संलग्न हैं वे ईश्वर के प्रेम और सुसमाचार से प्रेरित हैं। इस तरह दूसरों की सेवा हमारे समक्ष ईश्वरीय प्रेम का साक्ष्य प्रस्तुत करती है जो ख्रीस्त के प्रेम को परिलक्षित करता है।

संत पापा ने कहा कि हम माता मरियम से विनय करें कि वे हमें रोज दिन नम्रता की राह में ले चले क्योंकि वह अपने जीवन में सदा नम्र बनी रही जिससे हम अपने जीवन में जरुरतमंदों की निःस्वार्थ सेवा करते हुए ईश्वरीय राज्य के अधिकारी बन सकें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के संग देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। देवदूत प्रार्थना का उपरान्त संत पापा इटली और विभिन्न देशों से आये तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और अपने लिए प्रार्थना का विनयपूर्ण निवेदन करते हुए सबों को रविवारीय मंगलकामनाएँ अर्पित की।








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