भारत, शुक्रवार, 26 अगस्त 2016 (ऊकान न्युज) अब भारतीय महिला के कोख को व्यावसायिक दृष्टिकोण से दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है। भारत की सरकार ने यह निर्णय विगत दिनों में किराये की कोख लेने के विरुद्ध में एक नये विधायक पारित करते हुए किया है।
जीवन हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के एक सद्स्य डा. पास्कोवल कारभेलो ने एशिया समाचार को बतलाया, “यह नियम पारंपरिक परिवार मूल्य हेतु लिया गया एक कदम है। प्रस्थापन भ्रूण का हेरफेर है।”
विदित हो की विगत सालों में भारत चिकित्सा का विशेष कर भ्रूण प्रस्थापन के मामले में विश्व पर्यटन स्थल बन गया है। हर साल देश में करीब 500 चिकित्सा केन्द्रों में निषेचन की प्रक्रिया द्वारा करीब 5 विलयन यूरो का उद्योग होता है। प्रजनन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे दम्पति विशेष कर धनी देशों के विदेशी किराये की कोख खरीदने हेतु गरीब समुदाय के लोगों के पास आते हैं जो पैसे के बदले में उन्हें अपनी कोख किराये पर देते और शोषण का शिकार होते हैं।
महिला शरीर के वस्तुवीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है जहाँ पश्चिमी देशों की अपेक्षा भारत में गर्भ सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाते हैं। पश्चिमी देशों में कोख के दाम करीब 18 से 30 हजार डालर है वही भारत में इसके लिए मात्र 8 हजार रुपये दिये जाते हैं।
बुधवार को किराये की कोख नियम 2016 को पारित करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक नई नीतियों को परिभाषित किया, कि इस नियम के तहत केवल बांझ दम्पति अपने विवाह के पाँच वर्ष बाद अपने निकटतम संबंधी की कोख को किराये में ले सकते हैं।
उन्होंने कहा, “यह एक व्यापक विधेयक पूरी तरह से व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने के लिए है।” संतानहीन दम्पति जो किसी भी चिकित्सा कारण से प्रजनन हेतु समक्ष नहीं हैं अपने निकटतम संबंधी से सहायता ले सकते हैं जो कि परोपकारी सरोगेसी कहलाता है।”
गर्माशय प्रदान करने वालों को परोपकार हेतु कोई क्षतिपूर्ति व्यवस्था नहीं है यद्यपि चिकित्सा केन्द्र जहाँ ये कार्य संपादित किये जायेंगे पंजीकरण करना जरूरी है। इस नये नियम का उल्लंघन करने वालों और अवैध तरीके से माताओं का लाभ लेने या भ्रूण से छेड़छाड़ करने वालों को 10 साल की सज़ा और 1 लाख रुपये जुर्माना का प्रवधान है।
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