2016-08-11 12:24:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 74


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"ईश्वर! तू आदिकाल से मेरा राजा है और पृथ्वी पर लोगों का उद्धार करता आ रहा है। तूने अपने सामर्थ्य से समुद्र को विभाजित किया और जल में मगर-मच्छों के सिर टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तूने लिव्यातन के सिर तोड़ डाले और उसे समुद्र के जन्तुओं को खिलाया। तूने झरनें और जलधाराएँ बहायीं और सदा बहनेवाली नदियों को सुखाया। दिन तेरा है, रात भी तेरी है। तूने चन्द्रमा और सूर्य को स्थापित किया। तूने पृथ्वी के सीमान्तों को निर्धारित किया। तूने ग्रीष्म और शीतकाल बनाया।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के 12 से लेकर 17 तक के पदों के शब्द जिनकी व्याख्या हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत आरम्भ की थी। 74 वें भजन का रचयिता जैरूसालेम के मन्दिर तथा जैरूसालेम के निकटवर्ती गाँवों के आराधनालयों के विनाश पर विलाप करता है। ईश विरोधियों ने प्रार्थना गृहों में कोलाहल मचाया था, उन्होंने वहाँ अपने विजय झण्डे फहराये तथा ईश भक्तों की आराधना को पूर्णतया समाप्त करने का दुस्साहस किया था। इसीलिये 74 वें भजन का रचयिता मन से चाहता है कि प्रभु ईश्वर विध्वंसकारियों को रोकें तथा उन्हें उनके कुकर्मों के लिये दण्डित करें।

श्रोताओ, भजनकार एक धर्मपरायण व्यक्ति है, वह अपने दायित्वों का निर्वाह करनेवाला व्यक्ति है तथा इस तथ्य से परिचित है कि उसके पास जो कुछ है अथवा जो कुछ वह करने में सक्षम है वह सब ईश कृपा का परिणाम है। इसीलिये 12 से लेकर 17 तक के पदों में ईश्वर के अभूतपूर्व कार्यों का स्मरण करता है। वह पीछे मुड़कर इतिहास पर दृष्टि डालता और याद करता है कि बुराई की शक्तियों को ईश्वर ने सदैव पराजित किया है। इस्राएली जाति का मिस्र की दासता से मुक्त होना, प्रतिज्ञात देश तक पहुँचना, लाल सागर का विभाजित होना, ईश प्रजा का समुद्र पार करना और फिर आततायियों के आने पर समुद्र का फिर से भर जाना तथा उसमें उनके घोड़ों सहित मिस्र के अहंकारियों का जलमग्न हो जाना, यह सबकुछ ईश्वर के ही सामर्थ्य से हुआ था। प्रभु ईश्वर ने उस समय ईशभक्तों की सुधि ली थी और आज भी वे उनकी सुधि लेते हैं।

सृष्टि की रचना के आरम्भिक बिन्दु से लेकर आज तक प्रभु ईश्वर क्रियाशील हैं। उनके सामर्थ्य से ही शैतान को परास्त किया जा सका। ईश्वर ने ही बुराई पर भलाई को विजयी होने दिया और अब भी यह सिलसिला जारी है। ईश्वर के सामर्थ्य से ही प्रकाश हुआ और उसे अन्धकार से अलग किया जा सका। अथाह गर्त से ईश्वर मनुष्यों के लिये भलाई को सींचकर ले आये थे ताकि मनुष्य सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर सके तथा प्राप्त कृपाओं के प्रभु का गुणगान किया करे।

श्रोताओ, जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि दुष्ट राजा नबूखेदनज़र ने लगभग 587 ईसा पूर्व जैरूसालेम तथा उसके आस-पास विनाश का ताण्डव रचा था। उसका लक्ष्य प्रभु याह्वे की भक्ति को पूर्णतया समाप्त कर देना था ताकि लोग ईश्वर का परित्याग कर उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करें तथा उसी को अपना राजा और प्रभु मान लें। अपने इस कुषड़यंत्र में नबूखेदनज़र सफल नहीं हुआ, प्रभु ईश्वर के कार्यों एवं उनके रचनात्मक प्रयोजनों को वह परास्त नहीं कर सका इसलिये कि प्रभु ईश्वर अनन्त, अनादि एवं चिरकालिक सृष्टिकर्त्ता हैं। दुष्ट को भलाई की ओर अभिमुख कर वे बुराई पर भलाई को विजयी होने देते हैं। जैसा कि प्रकाशना ग्रन्थ के 20 वें अध्याय में हम पढ़ते हैं। लिखा हैः "इसके बाद मैंने एक स्वर्गदूत को स्वर्ग से उतरते देखा। उसके हाथ में अगाध गर्त्त की चाबी और एक बड़ी जंजीर थी। उसने पंखदार सर्प यानि शैतान को पकड़ कर एक हज़ार वर्ष के लिये बाँधा और अगाध गर्त्त में डाल दिया। उसने अगाध गर्त बन्द कर उस पर मोहर लगायी, जिससे वह सर्प एक हज़ार वर्ष पूरे हो जाने तक राष्ट्रों को नहीं बहकाये। इसके बाद उसे थोड़े समय के लिये छोड़ दिया जाना आवश्यक है।"

यहाँ श्रोताओ, अगाध गर्त्त से तात्पर्य उस स्थान से है जो कुछ स्वर्गदूतों द्वारा ईश्वर के हुक्म को तोड़ने तथा ईश्वर का विरोध करने के उपरान्त अस्तित्व में आया था। अस्तु, अगाध गर्त्त वह स्थल है जहाँ इबलिस यानि शैतान का बोलबाला है तथा जहाँ पतित स्वर्गदूत अन्तिम समय के दण्ड तक क़ैदी बने रहेंगे। इसी प्रकार प्रकाशना ग्रन्थ की यह पंक्ति कि "थोडे समय के लिये" शैतान को छोड़ दिया जाना आवश्यक का अर्थ है कि शैतान के क्रिया कलापों की अवधि बहुत छोटी होती है तथा उसका विनाश अवश्यंभावी है। जैसा कि प्रकाशना ग्रन्थ के 11 वें अध्याय के दूसरे पद में इसे सिर्फ 42 महीने बताया गया है। अस्तु, श्रोताओ, 74 वें भजन का रचयिता यह कह रहा था कि प्रभु ईश्वर ने सदैव और सर्वत्र कृपामय कार्य किये हैं, हालांकि सब समय मनुष्य इन्हें परख  नहीं पाता है।

आगे, 74 वें भजन के 18 वें और 19 वें पदों में भजनकार कहता हैः "प्रभु! याद कर कि शत्रु ने तेरी निन्दा की है और एक नासमझ राष्ट्र ने तेरे नाम का उपहास किया है। अपने भक्तों के प्राण जंगली पशुओं के हवाले मत कर, अपने दरिद्रों का जीवन कभी मत भुला।" भजनकार प्रभु ईश्वर से विनती करता है कि वे इस बात को याद करें कि उन्हीं ने इस्राएल को अपनी विशेष प्रजा चुना है, उन्हीं ने उन्हें विश्व में भलाई का अस्त्र बनाया, उन्हीं ने ईशप्रजा इस्राएल के माध्यम से प्रेमपूर्ण मानव समाज की रचना करने की योजना बनाई। कहता है: हम दीन-हीन मनुष्य हैं, तेरे विनीत सेवक हैं जिन्हें तूने, इब्रानियों को प्रेषित पत्र के अनुसार, कपोत अर्थात् शांति के प्रतीक की संज्ञा प्रदान है क्योंकि तेरी इच्छा थी कि हम सम्पूर्ण निनिवेह को सुसमाचार सुनायें। निनिवेह जो पशुओं का, खूँखार पशुओं का गढ़ है। अब ये पशु तेरी निन्दा कर रहे हैं फिर तू क्यों मौनधारण किये हुए हैं?

श्रोताओ, प्रायः ऐसे क्षण हमारे जीवन में भी आते हैं। अपनी आँखों के समक्ष हम धूर्त, दुष्ट एवं कुकर्मी को सफल होते देखते हैं, उन्हें हम धर्मपरायण, सीधे सरल लोगों को प्रताड़ित करते देखते हैं और हमारे मन में यही प्रश्न बारम्बार उठता रहता है कि ईश्वर कहाँ है? ईश्वर क्यों चुप बैठा है? स्तोत्र ग्रन्थ का 74 वाँ भजन एक प्रकार समस्त दुःख उठाने वाले लोगों को आश्वासन प्रदान करता है और उन्हें याद दिलाता है कि शैतान अर्थात् दुष्ट की अवधि बहुत छोटी होती है, अन्त में विजय भलाई की ही होती है।








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