2016-08-11 16:12:00

दलितों के खिलाफ भेदभाव के कारण भारतीय कलीसिया ने मनाया "काला दिवस"


″ख्रीस्तीय समुदाय किसी विशेष एहसान की नहीं किन्तु देश के संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय, समानता और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी की मांग करती है। दूसरे दलित लोगों की तरह ही ख्रीस्तीय दलितों को भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है तथा आधिकारिक रूप से अनुसूचित जाति में नहीं आने के कारण उनपर हो रहे हिंसक आक्रमणों से भी उनकी रक्षा नहीं की जाती है।″ यह बात मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल ऑस्वल्ड ग्रेसियस ने 10 अगस्त को, ख्रीस्तीय दलितों के साथ भेदभाव के कारण ″काला दिवस″ घोषित कर, किये गये एक प्रदर्शन के दौरान कही।

10 अगस्त 1950 को भारत के राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान धारा 341 (1) के तहत ″संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950″ पर हस्ताक्षर किया था जिसके अनुच्छेद 3 अनुसार ‘कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू धर्म के अलावा दूसरा धर्म मानता हो, अनुसूचित जाति के अंतर्गत नहीं समझा जाएगा।

सन् 1956 और 1990 में किये गये संशोधन अनुसार बौद्ध एवं सिक्ख को अनुसूचित जाति में रखा गया जबकि ख्रीस्तीयों एवं मुसलमानों को छोड़ दिया गया। इस कानून के कारण हिन्दू दलितों को आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक लाभ के साथ नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है जबकि ख्रीस्तीय एवं मुसलमान दलितों को इसके लिए लम्बे समय से संघर्ष करना पड़ रहा है क्योंकि यह संविधान में समानता, धर्मनिरपेक्षता तथा धर्म मानने की स्वतंत्रता के खिलाफ है।

भारत के ख्रीस्तीय समुदाय में दो तिहाई संख्या दलितों की है जो देश की कुल आबादी के 2.3 प्रतिशत हैं।

66वें वर्षगाँठ पर भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने काथलिकों से अपील की थी कि पीड़ित ख्रीस्तीयों के प्रति एकात्मता प्रदर्शित करने हेतु इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया जाए तथा अपने धर्मप्रांतों में सभा बुलाई जाए, प्रदर्शन, भूख हड़ताल तथा मोमबती जूलूस आदि का आयोजन किया जाए। साथ ही संचार माध्यमों द्वारा उन घटनाओं को प्रकाश में लाया जाए।

कार्डिनल ने कहा कि दलित ईसाइयों के मानव विकास संकेतक दिखलाते हैं कि उन्हें सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है जो उन्हें समान संसाधनों एवं अवसरों को प्राप्त करने वंचित कर देता है अतः सरकार को चाहिए कि वह दलित ख्रीस्तीयों के प्रति भेदभाव को समाप्त करने हेतु कदम उठाये।

मुम्बई के महाधर्माध्यक्ष ने इस बात पर भी गौर किया कि गिरजाघरों में भी दलितों के साथ जाति के नाम पर भेदभाव किया जाता है। कलीसिया हाल की एक घटना से आहत हो गयी थी जब एक दलित धर्माध्यक्ष पर हिंसक आक्रमण किया गया था।

 








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