2016-08-09 14:11:00

भारत की नई शिक्षा योजना से कलीसिया के अधिकारी चिंतित


 नई दिल्ली, मंगलवार, 9 अगस्त 2016 (ऊकान): भारतीय काथलिक कलीसिया के अधिकारियों का कहना है कि भारत की हिंदू समर्थक सरकार द्वारा प्रस्तावित नई शिक्षा नीति प्राचीन हिंदू प्रणाली पर बल देती और शिक्षाविदों द्वारा सदियों से प्राप्त उपलब्धि को नकारती एवं उसकी उपेक्षा करती है।

भारतीय धर्माध्यक्षीय शिक्षा कार्यालय के सचिव फादर जोसेफ मानिपादम ने कहा, "शिक्षा को सरकारों और नेताओं की सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक विचारधाराओं से मुक्त होना चाहिए।"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पिछले महीने अपनी वेबसाइट पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रारुप को आम जनता की प्रतिक्रिया जानने के लिए प्रकाशित किया जिससे कि सार्वजनिक टिप्पणी को देखते हुए आने वाले महीनों में इसका अंतिम रुप दिया जा सके।

मंत्रालय ने शिक्षा नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा, "राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारुप 1986 में तैयार किया गया था और 1992 में इसे संशोधित किया गया था परंतु वर्तमान "शिक्षा की गुणवत्ता, नवीनता और अनुसंधान" की जरूरत को देखते हुए इसमें संशोधन की जरूरत है।"

शिक्षा नीति में संशोधन का उद्देश्य है "छात्रों में आवश्यक कौशल और ज्ञान को विकसित करना" और "विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षाविदों और उद्योग में मानव शक्ति की कमी का दूर करना।"

फादर मानिपादम ने उका समाचार से कहा कि कलीसिया के अधिकारियों ने नई शिक्षा नीति पर अपना एक दस्तावेज मंत्रालय को भेज दिया है और उनकी आशा है कि सरकार काथलिक कलीसिया के दस्तावेज को गंभीरता से लेगी जो देश में 6,000 से अधिक शैक्षिक संस्थानों का सबसे बड़ा निजी नेटवर्क चलाती है।

उन्होंने कहा कि वे आधुनिक राष्ट्र में उचित शिक्षा देने के लिए नीति में संशोधन हेतु सरकार के प्रयास का स्वागत करते हैं लेकिन "नीति के तहत वैदिक और प्राचीन हिंदू विरासत की शिक्षा पर अत्यधिक जोर दिया गया है इसकी हम आलोचना करते हैं।"

फादर मानिपादम ने कहा, "एक आधुनिक और वैश्विक शिक्षा प्रणाली प्रदान कर" भारतीयों को एक वैश्विक बाजार में प्रवेश करने हेतु मदद करने के बजाय वैदिक गणित, योगा और अन्य प्राचीन ज्ञान, वर्तमान शिक्षा प्रणाली को पीछे खींच लेगी।

नीति में ख्रीस्तीय मिशनरियों के बारे कुछ भी नहीं कहा गया है जिन्होने देश में आधुनिक स्कूली शिक्षा की शुरुआत की और उसे विकसित किया। मिशनरियों के बारे चुप्पी साधना हमें कष्ट देता है। हम चाहते हैं कि मंत्रालय इसपर विचार करे।

फादर ने कहा कि नई नीति ने भी सरकारी स्कूलों में प्री-स्कूल शिक्षा शुरू करने का सुझाव दिया है जो अब तक केवल 6 साल की उम्र में विद्यार्थियों को स्कूलों में भर्ती करता है। "हमें खुशी है कि सरकार ने 3 से 5 वर्ष के बच्चों के स्कूली शिक्षा की आवश्यकता को स्वीकार किया गया है।"








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