2016-07-11 16:07:00

देवदूत प्रार्थना के पूर्व भले समारी पर संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 11 जूलाई 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में 11 जुलाई, रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ भले समारी के दृष्टान्त पर मनन चिंता करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एव बहनो, सुप्रभात।

यह एक साधारण दृष्टान्त है लेकिन बड़े ही प्रेरणात्मक रूप में हमें जीवन जीने के तरीके को दिखलाता है जहाँ हम अपने जीवन का केन्द्र नहीं लेकिन दूसरे हमारे जीवन का केन्द्र बनते हैं जो अपने जीवन में कठिनाइयों का समान करते, जिन्हें हम अपने जीवन की राह में देखते जो हमारे लिए प्रेरणा का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि यदि दूसरे हमारे लिए चुनौती या प्रेरणा के स्रोत नहीं बनते तो हृदय में कुछ तो गड़बड़ी है, वह व्यक्ति सच्चा ख्रीस्तीय नहीं हो सकता। आज के सुसमाचार में येसु संहिता के ज्ञाता एक शास्त्री से एक नियम के दो पहलुओं की चर्चा करते हैं, अपने ईश्वर को अपने सारे हृदय और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना, जो हमें अनंत जीवन में प्रवेश करने हेतु मदद करता है। शास्त्री येसु से पूछता है कि मेरी पड़ोसी कौन है। उसकी भाँति हम भी अपने आप से यह सवाल पूछ सकते हैं, “कौन है मेरा पड़ोसी? अपने समान मैं किसे प्यार करता हूँ? क्या वे मेरे मित्र हैं, क्या वे मेरे माता-पिता हैं, क्या वे मेरे मुल्क के लोग हैं, क्या वे मेरे मजहब के लोग हैं? मेरा पड़ोसी कौन है?”  

येसु इस प्रश्न का जवाब सीधे तौर से नहीं देते लेकिन वे भले समारी का दृष्टान्त प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि एक व्यक्ति येरुसलेम की राह से येरीखो को जा रहा था और डाकूओं के हाथों में पड़ गया। वे उससे लूटते और अधमरा छोड़ देते हैं। उस मार्ग से एक पुरोहित और उसके बाद एक लेवी गुजरते हैं वे उस घायल व्यक्ति को देखते लेकिन वे वहाँ नहीं रुकते लेकिन उसे अनदेखा कर कतर जाते हैं। इसके बाद समारिया निवासी, एक समारी वहां से होकर गुजरता है, जिसे यहूदी घृणा की नजरों से देखते हैं क्योंकि वे धर्म की सच्ची बातों पर विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन वह उस घायल बेचारे व्यक्ति को देखकर दया से द्रवित हो उठता है। अपनी करुणा में वह उसके पास जाता और उसके घावों की मरहम पट्टी करता, उसे एक सराय में ले जाता और उसकी सेवा शुश्रुषा करता है। वह उसकी सेवा के सारे खर्च वहन करते हुए दूसरे दिन उसे सराय मालिक की देख-रेख में यह कहते हुए छोड़ता है कि और जो कुछ खर्च होगा वह उसे चुका देगा।

येसु शास्त्री से पूछते हैं कि इन तीनों पुरोहित, लेवी और समारी में तुम क्या सोचते हो कि कौन डाकूओं के हाथों में पड़े व्यक्ति का पड़ोसी निकला? संत पापा ने कहा कि निश्चय ही वह व्यक्ति ज्ञानी था अतः अपने ज्ञान के कारण उसने उत्तर दिया, “वह, जिसने उसपर दया दिखलाई।” शास्त्री के इस जवाब पर येसु उसके विचारों को पूरी तरह बदल देते हैं। वे हमारे विचारों को भी बदले हैं क्योंकि मेरा पड़ोसी कौन है और कौन नहीं इसका निर्णय करने हेतु हम लोगों को वर्गीकृत नहीं कर सकते। संत पापा ने कहा, “यह हमारे ऊपर, हमारे निर्णय पर निर्भर करता है कि मेरा पड़ोसी कौन है और कौन नहीं।” यह मेरे ऊपर निर्भर करता है कि कोई मेरा पड़ोसी बनें या न बनें विशेषकर जिसे मेरी सहायता की जरूर है यद्यपि मैं उसे नहीं जानता अथवा मेरा उसके साथ व्यक्तिगत संबंध ठीक नहीं है। “जाओ और तुम भी वैसा ही करो।” संत पापा ने कहा, “यह एक अच्छी शिक्षा है।” येसु हमसे भी यही कहते हैं जो भाई या बहन मुश्किल और कठिनाई में है तुम उसके पास “जाओ और वैसी ही करो।”

धर्मग्रंथ से प्रेरित संत जेम्स के प्रेरितिक वचनों को उद्धृत करते हुए संत पापा ने कहा, “कार्य के बिना हमारा विश्वास मृतप्राय है।” मैं उस गाने के बोल की याद करता हूँ जो केवल, “शब्द... शब्द... शब्द...” कहते हैं। “हमें अच्छे कार्य करने की जरूरत है।” हमारे अच्छे कार्य, जिसे हम प्रेम और खुशी से दूसरों के लिए करते हैं विश्वास में अच्छे फल उत्पन्न करता है। “हम अपने आप से पूछें क्या हमारा विश्वास फलप्रद है। क्या यह अच्छा फल उत्पन्न करता है? कहीं यह बंजर तो नहीं जो जीवित रहने के बजाय मरे हुए के समान है।” मेरे सामने जो है, मैं उसे पूरा करता हूँ यह उसे छोड़कर दूसरी चीजों को करने जाता हूँ, यदि हम ऐसा करते हैं तो हम अपनी खुशी के अनुरूप लोगों का चुनाव करते हैं। इन सवालों को हमें अपने आप से निरन्तर पूछने की आवश्यकता है क्योंकि अपने करुणामय कार्यो के द्वारा ही हम न्याय किये जायेंगे। ईश्वर हम से कहेंगे, “क्या तुम येरुसलेम से येरीखो की यात्रा को याद करते हो? वह अधमरा व्यक्ति, वह मैं ही था। क्या तुम याद करते हो? वह भूखा बालक, वह मैं था। क्या तुम याद करते हो? वह प्रवासी जिसे सब खदेड़ना चाहते थे, वह मैं था। वे माता-पिता जो वृद्ध आश्रम में छोड़ दिये गये थे, वह मैं था। अस्पतालों में वे बीमार जिन्हें देखने और पूछने कोई नहीं आया, वह मैं ही था।”  

अपने इस चुनौती पूर्ण चिंतन के अंत में साथ संत पापा ने माता मरियम की मध्यस्थता में विनय पूर्ण प्रार्थना अर्पित करते हुए कहा कि माता मरियम हमें उदारतापूर्ण प्रेम के मार्ग में चलने हेतु मदद करे जिससे हम धर्मग्रंथ के मुख्य आज्ञा में खरा उतरते हुए अनंत जीवन में प्रवेश कर सकें।

और इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया और सब को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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