2016-06-27 16:29:00

विमान पर संत पापा की पत्रकारों से बातचीत


विमान, सोमवार, 27 जून 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने आर्मीनिया में अपनी तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर 26 जून को, अलइतालिया विमान से सकुशल रोम लौटे। उन्होंने विमान में पत्रकारों के कई सवालों का उत्तर दिया तथा उनके कार्यों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, इस यात्रा हेतु आप सबों की मदद के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। सही तरीके से प्रस्तुत किये गये समाचार लोगों के लिए अच्छे समाचार होते हैं।  

संत पापा को पूछे गये सवालों में से पहला सवाल आर्मीनियाई रिपब्लिक टेलेविजन के पत्रकार अर्थर ग्रेगोरियन का था जिसमें उन्होंने पूछा कि तीन दिनों में उन्होंने आर्मीनिया के लोगों की भावनाओं को छूआ है, किन्तु वे खुद कैसा अनुभव कर रहे हैं, क्या छाप लेकर जा रहे हैं तथा आर्मीनिया के लोगों के भविष्य के लिए उनका क्या संदेश और शुभकामना है? 

संत पापा ने आर्मीनिया में अपने अनुभव एवं लोगों के प्रति अपनी उम्मीद को प्रकट करते हुए कहा, मैं यहां के लोगों के लिए न्याय एवं शांति की आशा करता हूँ तथा मैं इसी के लिए प्रार्थना भी करता हूँ क्योंकि यह एक साहसी जनता है। मैं प्रार्थना करता हूँ कि आपको न्याय और शांति मिले। मैं जानता हूँ कि इसके लिए बहुत से लोग कार्य कर रहे हैं। इस मामले में संत पापा ने आर्मीनिया के राष्ट्रपति की सराहना करते हुए उदाहरण दिया कि उन्होंने अपने स्वागत भाषण में तुर्की के साथ सहमत होने, एक-दूसरे को क्षमा करने तथा भविष्य की ओर देखने हेतु आह्वान किया। संत पापा ने कहा कि निश्चय ही यह महान साहस है। वह जनता जिसने बहुत दुःख उठाया है किन्तु अपनी कोमलता नहीं खोयी और कला एवं संगीत को संजोकर रखा है। यद्यपि उन्होंने इतिहास में बहुत अधिक कष्ट झेला है किन्तु विश्वास ने ही उन्हें खड़ा किया है।

दूसरा प्रश्न भी आर्मीनियाई पत्रकार श्रीमती जेनीने पालौलियन का था जिन्होंने संत पापा से पूछा था कि युवा किस तरह तुर्की और अज़रबैजान के साथ मेल-मिलाप के शिल्पकार अथवा ठोस चिन्ह बन सकते हैं तथा संत पापा अज़हरबैजान के साथ मेल-मिलाप करने में उन्हें किस तरह मदद करेंगे।

संत पापा ने कहा कि वे अज़हरबैजान के साथ आर्मीनिया की उन सभी सच्चाईयों को साझा करेंगे जिनको उन्होंने देखा और अनुभव किया है तथा उन्हें मेल मिलाप हेतु प्रोत्साहन देंगे। उन्होंने बताया कि अजहरबैजान के राष्ट्रपति से मुलाकात में उन्होंने सलाह दी थी कि वे शांति स्थापित भूमि के एक छोटे हिस्से को पाने के लिए न करें किन्तु आर्मीनिया एवं अज़हरबैजान दोनों की सहमति से शांति हेतु विचार करें जिसके लिए उन्हें काम करने की आवश्यकता है।

संत पापा से पूछे जाने पर कि उन्होंने राष्ट्रपति भवन में खुले तौर से ‘नरसंहार’ शब्द का प्रयोग क्यों किया जो कि एक संवेदनशील शब्द है।

इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्वीकार किया कि वे नरसंहार शब्द के अलावे कोई दूसरे शब्द से परिचित नहीं थे। उन्होंने कहा कि जब वे आर्जेंटीना में थे, आर्मीनियाई तबाही के बारे बात-चीत में उन्होंने हमेशा ही नरसंहार शब्द का प्रयोग पाया था। उन्होंने कहा कि उसके लिए वे कोई दूसरा शब्द नहीं जानते थे। बोयनोस आइरेस के महागिरजाघर में तीसरी वेदी को आर्मीनिया के शहीदों के लिए अर्पित किया गया है तथा उनकी स्मृति में पत्थर का एक क्रूस भी स्थापित किया गया है एवं एक अन्य वेदी भी संत बारथोलोमियो के सम्मान में स्थापित है किन्तु इस सब के बावजूद उन्हें नरसंहार के अलावे कोई दूसरे शब्द की जानकारी नहीं थी। यही कारण है कि उन्होंने इस शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने बतलाया कि जब वे रोम आये तभी उन्हें मालूम हुआ कि आर्मीनिया की तबाही ‘महाबुराई’ के नाम से जानी जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नरसंहार शब्द का प्रयोग उन्होंने किसी आक्रामक विचार से नहीं किया था।  

यूरोपीय संघ के समर्थन एवं उससे विच्छेद में युद्ध के खतरे जैसे मामलों पर टिप्पणी करते हुए संत पापा ने कहा कि यूरोप में भी युद्ध की स्थिति है, लोगों के बीच विभाजन है न केवल यूरोप में किन्तु अन्य देशों में भी। विच्छेद को युद्ध हेतु बढ़ावा देने वाली बात मानने के बारे में संत पापा ने कहा कि उसे खतरनाक नहीं समझा जाना चाहिए किन्तु उस पर सावधानी पूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि एकता हमेशा ही संघर्ष से बढ़कर है और एकता के अनेक रास्ते हैं। इस प्रकार यूरोपीय संघ शत्रुता एवं दूरी से बढ़कर है। अलगाव की अपेक्षा भ्रातृत्व बेहतर विकल्प है। दीवार की अपेक्षा सेतु उत्तम है। संत पापा ने यूरोपीय संघ को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए दो शब्दों पर जोर दिया रचनात्मकता और उत्पादकता की क्षमता।

काथलिक कलीसिया को समलैंगिकों एवं हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोगों से माफी मांगनी चाहिए के सवाल पर संत पापा ने अपनी पूर्ण सहमति जताते हुए कहा कि उनके साथ भेदभाव नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि उनका सम्मान किया जाना तथा प्रेरितिक रूप से उनका साथ दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके विचारधारा के लिए उन्हें दण्ड नहीं दिया जा सकता किन्तु राजनैतिक अथवा दूसरों के प्रति आक्रामक व्यवहार के लिए उन्हें अवश्य दण्ड दिया जा सकता है। संत पापा ने समलैंगिकों के लिए प्रयुक्त अपने शब्दों को दुहराते हुए कहा कि यदि व्यक्ति समलैंगिक हो किन्तु भली इच्छा रखता और ईश्वर की खोज करता हो तो मैं कौन हूँ जो उसका न्याय करूँ। संत पापा ने कहा कि हमें समलैंगिक व्यक्तियों से क्षमा मांगनी चाहिए। उन्होंने ग़रीबों के प्रति सम्मान की भावना का ख्याल रखने की सलाह देते हुए कहा, न केवल समलैंगिक व्यक्ति से माफी मांगनी चाहिए किन्तु हाशिये पर जीवन यापन कर रहे गरीब, महिलाओं तथा शोषण के शिकार लोगों से भी माफी मांग लेनी चाहिए।  








All the contents on this site are copyrighted ©.