2016-06-25 12:07:00

1915 ई. के शहीद स्थल सन्त पापा फ्राँसिस ने किया श्रद्धार्पण


येरेवन, आरमेनिया, शनिवार, 25 जून सन् 2016 (सेदोक): आरमेनिया की राजधानी येरेवन से लगभग 21 किलो मीटर की दूरी पर स्थित तिट्सज़ेरनाकाबेर्द में श्रद्धार्पण शनिवार 25 जून को सन्त पापा फ्राँसिस की आरमेनियाई यात्रा का सर्वाधिक संवेदनशील पड़ाव रहा। "चिड़ियों की पहाड़ी"  नाम से विख्यात तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल उन लाखों आरमेनियाई नागरिकों का स्मारक स्थल है जो, सन् 1915 ई. में, ऑटोमन साम्राज्य के शासन काल में नरसंहार के शिकार बने थे।

इस स्मारक पर सन्त पापा ने पुष्पांजलि अर्पित की और कुछ समय मौन रहकर प्रार्थना की। तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल पर उस क्षण कई बच्चे सन् 1915 ई. के शहीदों की विशाल तस्वीरें लिये खड़े थे। स्मारक स्थल के भीतर सन्त पापा ने प्राधिधर्माध्यक्ष कारेकिन द्वितीय के साथ मिलकर "हे पिता हमारे" प्रार्थना का पाठ किया तथा धूप चढ़ाई। इस अवसर पर आरमेनियाई भाषा में इब्रानियों को लिखे सन्त पौल के पत्र से पाठ किया गया जिसमें प्रेरितवर सन्त पौल लिखते हैं, "आप लोग उन बीतें दिनों की याद करें जब आप ज्योति मिलने के तुरन्त बाद दुखों के घोर संघर्ष का सामना करते हुए दृढ़ बने रहे।"   

इस अवसर पर सन्त पापा ने स्मारक स्थल के प्रतिष्ठा ग्रन्थ पर हस्ताक्षर करने से पूर्व लिखा, "इस स्थल पर मैं अपने हृदय में गहन पीड़ा लिये प्रार्थना करता हूँ ताकि इस प्रकार की त्रासदियाँ फिर कभी न हों, मानव जाति अतीत में घटी इस त्रासदी को कदापि न भूले तथा भलाई से बुराई पर विजय़ पाना सीखे।" आरमेनिया को लोगों पर दैवीय आशीष का आह्वान कर उन्होंने लिखाः "प्रभु ईश्वर आरमेनिया के प्रिय लोगों एवं सम्पूर्ण विश्व के लोगों को शांति एवं सान्तवना प्रदान करें। स्मृति को कभी धूमिल न होने दिया जाये ना ही उसे भुलाया जाये। स्मृति ही शांति एवं भविष्य का स्रोत है।" 

शुक्रवार को सन्त पापा ने राष्ट्रपतिभवन में आरमेनिया के राष्ट्रपति तथा यहाँ के वरिष्ठ अधिकारियों एवं राजनयिकों को सम्बोधित शब्दों में पहले से तैयार अपने सम्बोधन से हटकर 1915 ई. की त्रासदी को "नरसंहार" का नाम दे ही दिया। उन्होंने इसे "मेट्ज़ येघहेर्न" अर्थात् "महाबुराई" निरूपित कर विगत शताब्दी की त्रासदियों में गिनाते हुए "नरसंहार" शब्द भी प्रयुक्त किया।

वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी से इस विषय में पूछे जाने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा "इस प्रकरण में इस शब्द का उपयोग न किये जाने का कोई कारण नहीं होना चाहिये। वास्तविकता स्पष्ट है और हम वास्तविकता से कभी इनकार नहीं करते।" फादर लोमबारदी ने कहा, "सन्त पापा को लगा कि जो कुछ अतीत में हुआ उससे लोगों को सीख लेना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आज देखने को यही मिलता है कि अतीत से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की गई।"         

तुर्की यह स्वीकार करता है कि ऑटोमन साम्राज्य काल के दौरान अनेक आरमेनियाई ख्रीस्तीय धर्मानुयायी ऑटोमन सैनिकों के साथ लड़ते हुए मर गये थे किन्तु इस कत्ले आम को वह नरसंहार नहीं मानता है इसीलिये विगत वर्ष सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा इसे "20 वीं शताब्दी का प्रथम नरसंहार" निरूपित किये जाने का विरोध कर तुर्की ने वाटिकन से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था। तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल पर सन्त पापा फ्राँसिस की भेंट के विषय में तुर्की ने आधिकारिक तौर पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दर्शाई थी।

स्मारक स्थल की छत पर सन् 1915 ई, के नरसंहार के शिकार बने उन लोगों के रिश्तेदारों ने सन्त पापा का आशीर्वाद प्राप्त किया जिन्हें ऑटोमन शासनकाल के दमन चक्र के दौरान सन्त पापा पियो 11वें वें ने रोम परिसर स्थित कास्टेल गोन्दोल्फो में शरण प्रदान की थी।

तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल की भेंट के उपरान्त सन्त पापा फ्राँसिस ने तुर्की की सीमा से लगे गूमरी नगर की ओर प्रस्थान किया जहाँ से अरारात पहाड़ी के दर्शन किये जा सकते हैं। बाईबिल धर्मग्रन्थ के अनुसार महाप्रलय के बाद नोआ की नाव इसी पहाड़ी के पायदान पर आकर रुकी थी।








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