2016-06-23 12:22:00

24 से 26 जून तक सन्त पापा फ्राँसिस आरमेनिया में, पृष्ठभूमि


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 24 जून सन् 2016 (सेदोक): विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा फ्राँसिस शुक्रवार 24 जून को रोम के फ्यूमीचीनो अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से, स्थानीय समयानुसार प्रातः नौ बजे आरमेनिया में अपनी दो दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के लिये रवाना हुए। चार घण्टों की विमान यात्रा के उपरान्त आलइतालिया का ए-321 विमान आरमेनिया  की राजधानी येरेवान पहुँचा। रविवार सन्ध्या को समाप्त होनेवाली आरमेनिया की प्रेरितिक यात्रा इस देश में सन्त पापा फ्राँसिस की यह पहली तथा इटली से बाहर उनकी 14 वीं प्रेरितिक यात्रा है।  

आरमेनिया पश्चिम एशिया और यूरोप के काओकासुस क्षेत्र स्थित एक पहाड़ी पर बसा देश है जिसका सीमाएँ तुर्की, जॉर्जिया, अजरबैजान और ईरान से लगी हुई हैं। सन् 301 ई. में ख्रीस्तीय धर्म को राज्य धर्म घोषित करनेवाला आरमेनिया पश्चिम एशिया का पहला देश हुआ। वैसे पहली शताब्दी में ही ख्रीस्तीय धर्म की जड़े आरमेनिया में प्रभु येसु मसीह के दो शिष्यों, थदेयुस एवं बारथोलोमियो, द्वारा आरेपित कर दी गई थी जिन्होंने ई. सन् 40 से लेकर ई. सन् 60 तक  आरमेनिया एवं आस पड़ोस के क्षेत्रों में ख्रीस्तीय धर्म का प्रचार प्रसार किया था। इन्हीं दो प्रेरितों के धर्म प्राचर कार्यों के फलस्वरूप आरमेनिया की कलीसिया Armenian Apostolic Church अथवा आरमेनियाई प्रेरितिक कलीसिया के नाम से विख्यात हुई। सन् 2008 की जनगणना के अनुसार आरमेनिया की कुल आबादी 32 लाख 38 हज़ार है जिनमें 97.9%  आरमेनियाई,  1.3% येज़ीदिस तथा 0.5% रूसी मूल के लोग सम्मिलित हैं। यहाँ की अधिकांश जनता ख्रीस्तीय धर्मानुयायी हैं।  

आरमेनियाई प्रेरितिक यात्रा का प्रथम दिन सन्त पापा फ्राँसिस राजधानी येरेवन तथा इससे 18 किलो मीटर दूर स्थित एख्टमियादज़ीन नगर में व्यतीत कर रहे हैं। शुक्रवार 28 जून के लिये  निर्धारित कार्यक्रमों में प्रमुख हैं येरेवान के हवाई अड्डे पर स्वागत समारोह, एख्टमियादज़ीन के महागिरजाघर में प्रार्थना तथा येरेवन राष्ट्रपतिभवन में आरमेनिया के राष्ट्रपति सेर्रज़ सारगास्यान से औपचारिक मुलाकात। आरमेनिया के वरिष्ठ अधिकारियों, राजनयिकों तथा नागर समाज के गणमान्य लोगों को सम्बोधन तथा आरमेनियाई प्रेरितिक कलीसिया के शीर्ष काथोलिकोज़ द्वितीय से मुलाकात के साथ सन्त पापा फ्राँसिस शुक्रवार का दिन सम्पन्न करेंगे।

शनिवार 25 जून के लिये निर्धारित कार्यक्रमों में प्रमुख हैं, तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल पर श्रद्धार्पण तथा येरेवन से लगभग 80 किलो मीटर की दूरी पर स्थित कारीगरों एवं कलाकारों के नगर जियुम्री का दौरा। और रविवार 26 जून का दिन आरमेनियाई प्रेरितिक कलीसिया के वरिष्ठ धर्माधाकरियों एवं धर्माध्यक्षों से मुलाकत तथा संयुक्त प्रार्थना समारोह को समर्पित रखा गया है।

"चिड़ियों की पहाड़ी"  नाम से विख्यात तिट्सज़ेरनाकाबेर्द स्मारक स्थल उन लाखों आरमेनियाई नागरिकों का स्मारक स्थल है जो, सन् 1915 ई. में, ऑटोमन साम्राज्य के शासन काल में नरसंहार के शिकार बने थे। ग़ौरतलब है कि विगत वर्ष 12 अप्रैल को सन्त पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में 1915 के नरसंहार की पहली शताब्दी की स्मृति में  ख्रीस्तयाग कर इस घटना को "20 वीं शताब्दी का प्रथम नरसंहार" निरूपित किया था। ऑटोमन साम्राज्य काल के दौरान हुए इस कत्ले आम को तुर्की नरसंहार नहीं मानता है उसका कहना है कि यह गृहयुद्ध था जिसमें कई मारे गये थे। सन्त पापा फ्राँसिस द्वारा इसे "20 वीं शताब्दी का प्रथम नरसंहार" निरूपित किये जाने के बाद विरोधवश तुर्की ने वाटिकन से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था 2016 के आरम्भिक माहों में ही तुर्की ने अपने राजदूत को वापस रोम भेजा। विशेषज्ञों  के अनुसार ऑटोमन साम्राज्य काल के दौरान सन् 1915 ई. में दस लाख से लेकर 15 लाख तक आरमेनियाई लोग मारे गये थे जो 20 वीं शताब्दी में हुई नाज़ी क्रूरता एवं कम्बोडिया के ख्मेर रूझ़ बर्बरता का पूर्वारंग था।      

प्रथम विश्व युद्ध के अन्तिम वर्षों में, तुर्की में हुए आरमेनियाई लोगों के कत्ले आम को विश्व के 22 राष्ट्र "नरसंहार" मानते हैं जिनमें ऊरुगुए, साईप्रस, रूस, जर्मनी, फ्राँस, इटली तथा वेनेजुएला शामिल हैं।  

सन्त पापा फ्राँसिस के लिये आरमेनिया की प्रेरितिक यात्रा सौ वर्ष पहले जो हुआ उसके लिये प्रयुक्त "नरसंहार" शब्द से कहीं अधिक अर्थपूर्ण है। 12 अप्रैल 2015 को नरसंहार की स्मृति में ख्रीस्तयाग अर्पण से पूर्व उन्होंने आरमेनियाई धर्माध्यक्षों से मुलाकात के अवसर पर कहा था, "बड़े दुःख के साथ मैं सिरिया के आल्लेप्पो जैसे क्षेत्रों की याद कर रहा हूँ जो सौ वर्ष पूर्व सुरक्षित क्षेत्र थे। हाल में इन क्षेत्रों के ख्रीस्तीयों ने अपने धैर्य की परीक्षा का दीदार किया है जिसमें केवल आरमेनिया के लोग ही ख़तरे में नहीं पड़े।" उस क्षण सन्त पापा फ्राँसिस ने इस तथ्य को रेखंकित करना चाहा कि हालांकि, सौ वर्ष पूर्व आरमेनियाई लोगों के विरुद्ध आक्रमण का कारण धर्म पर आधारित नहीं था किन्तु सच तो यह है कि इस दौरान मारे गये अधिकांश लोग ख्रीस्तीय धर्म के अनुयायी थे।

सन्त पापा के शब्दों में: "बलात निष्कासन के शिकार बनाये गये हमारे असंख्य भाइयों एवं बहनों ने अपना रक्त बहाते हुए अथवा भूख के कारण अपनी जान देते हुए प्रभु ख्रीस्त के नाम का उच्चार किया था।"

24 से 26 जून तक सन्त पापा फ्राँसिस की आरमेनियाई प्रेरितिक यात्रा के दौरान, निश्चित्त रूप से, यह संवेदनशील विषय भी प्रतिध्वनित होगा ताकि इस बर्बरता की स्मृति मानव इतिहास से कभी न मिटे तथा मानव को यह याद दिलाती रहे कि हिंसा इंसानियत की सारी दीवारें तोड़कर केवल हैवानियत और विनाश की ओर ले जाती है। 








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