2016-06-14 14:52:00

छत्तीसगढ़ के ख्रीस्तीय भय की स्थिति में


भोपाल, मंगलवार 14 जून 2016 (ऊकान) : मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के  एक दल ने 6 से 11 जून तक छत्तीसगढ़ का दौरा किया और उन्होंने ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के कई मामलों की सूचना दी है।

 दल द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार राज्य सरकार ने गांवों में हिंदू राष्ट्रवादियों के ज़ुल्मों से ख्रीस्तीयों को बचाने में असफल है।

तथ्य खोजने के दल में शामिल, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन की सचिव कविता कृष्णन ने 13 जून को ऊका समाचार से कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में ख्रीस्तीय भय की जिन्दगी जी रहे हैं। उनके कल्याण और संरक्षण के लिए बने स्थानीय कानूनों का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया जा रहा है। ख्रीस्तीयों को दबाव में डालकर धर्म बदलने के असंख्य उदाहरण हमारे सामने आए हैं जो संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।"

रिपोर्ट के अनुसार बस्तर जिले में कई गांवों के पूजा स्थलों और मंदिरों में गैर-हिंदुओं का प्रवेश निषेध है जो भारतीय संविधान की भावना के खिलाफ है। कई गांवों में ख्रीस्तीयों को कब्रस्थान का उपयोग करने से भी रोका गया है।

सिरिगुडा गांव में ख्रीस्तीयों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से सामान खरीदने की अनुमति नहीं है। धर्म परिवर्तन नहीं करने पर उन्हें  बुरी तरह से पीटा गया और घायल ख्रीस्तीयों को इलाज के लिए जिला अस्पताल ले जाने हेतु एम्बुलेंस को गांव में प्रवेश करने नहीं दिया गया था।

ख्रीस्तीयों को गांवों के सार्वजनिक कुओं से पानी लेने की अनुमति नहीं है और जिला अधिकारियों ने भी उन्हें हिंदू धर्म को स्वीकार करने या फिर गांव छोड़ने पर जोर डाला।

जगदलपुर के धर्माध्यक्ष जोसेफ कोल्लापाराम्पी ने किसी समूह का नाम लिए बिना ऊका समाचार से कहा, "हिंसा राजनीति से प्रेरित है।" अपने धर्मप्रांत के बस्तर क्षेत्र में हो रहे मानव अधिकारों के उल्लंघन की श्रृंखलाओं पर उन्होंने दुख व्यक्त किया है।

रायपुर महाधर्मप्रांत के प्रतिधर्माधयक्ष फादर सेबास्टियन पूमात्ताम ने ऊका समाचार से कहा,  "हम यहाँ एक खतरनाक स्थिति में जी रहे हैं, जैसा कि "हिन्दुस्तान सिर्फ हिन्दुओं के लिए" एजेंडे को आगे बढ़ाने में अनेक हिंदू संगठन सक्रीय हैं।"

 विदित हो कि हिंदू बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में कुल जनसंख्या का 1 प्रतिशत से भी कम ख्रीस्तीयों की संख्या है। 








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