2016-06-13 16:05:00

बीमार एवं विकलांग लोगों की जयन्ती पर संत पापा ने प्रवचन में कहा


वाटिकन सिटी, सोमवार, 13 जून 2016 (वीआर सेदोक): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार, 12 जून को संत पापा ने शारीरिक रूप से अस्वस्थ एवं विकलांग लोगों की जयन्ती के उपलक्ष्य में समारोही ख्रीस्तीय अर्पित किया तथा ख्रीस्तयाग के उपरांत देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

उन्होंने प्रवचन में कहा, ″मैं ख्रीस्त के साथ क्रूस पर मर गया हूँ। मैं अब जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित हैं।″(गला.2:19-20) इन शब्दों द्वारा प्रेरित संत पौलुस ख्रीस्तीय जीवन के रहस्य को गहराई से प्रकट करते हैं जिसे बपतिस्मा में प्राप्त पास्का रहस्य; मृत्यु एवं पुनरूत्थान से जोड़ा जा सकता है। वास्तव में, जल में डुबकी लगाने से, हम प्रत्येक मर कर ख्रीस्त के साथ दफनाये जाते हैं तथा पवित्र आत्मा में नया जीवन प्राप्त करते हैं। हमारा यह पुनःजन्म हमारे जीवन के हर पहलु को प्रभावित करता है। बीमारी, पीड़ा तथा मृत्यु को ख्रीस्त ने अपने ऊपर ले लिया है और हम उन्हीं में अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।

संत पापा ने कहा, ″आज, जब इस जयन्ती को बीमार तथा विकलांग लोगों के लिए समर्पित किया गया है, जीवन के इस वचन की एक विशेष गूंज पूरे समुदाय में व्याप्त हैं। हम में से प्रत्येक कभी न कभी पीड़ा, कमजोरी और बीमारी की घड़ी से अवश्य गुजरते हैं या तो खुद की बीमारी अथवा दूसरों की बीमारी के कारण। दुःख कई तरह के हो सकते हैं किन्तु इन्हें एक ही मानवीय अनुभव के तहत देखा जा सकता है। ये सभी सीधे तौर पर जीवन के अर्थ पर सवाल उठाते हैं।

हमारे हृदय में उदासी भर जाती है जब हम इन अनुभवों का कोई समाधान नहीं देखते और सिर्फ अपने आप पर भरोसा रखने लगते हैं अथवा हमारा पूरा भरोसा विज्ञान पर होता है कि दुनिया के किसी हिस्से में अवश्य कोई चिकित्सक होगा जो इस बीमारी को दूर कर सकता है। यह अत्यन्त दुःखद है क्योंकि यद्यपि बीमारी की औषधि उपलब्ध हो, बहुत कम लोग ही इसे प्राप्त कर सकते हैं।″  

संत पापा ने मानव जीवन के दुःखों का कारण बतलाते हुए कहा कि मानव स्वभाव पाप से घायल है तथा कमजोरियों से चिह्नित है। उन्होंने कहा कि हम आपत्तियों से परिचित हैं, विशेषकर, इन दिनों शारीरिक दुर्बलता को जीवन की गंभीरता के रूप में देखा जाता है। यह सोचा जाता है कि बीमार अथवा शारीरिक असमर्थता के कारण व्यक्ति खुश नहीं रह सकता है क्योंकि वह आनन्द एवं मनोरंजन की संस्कृति में पूरी तरह सहभागी नहीं हो सकता है। हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जब अपने शरीर की देखभाल एक जुनून एवं एक बड़ा पेशा बन गया है जिसके कारण हर अपूर्णता को छिपाने की कोशिश की जाती है क्योंकि यह उन थोड़े लोगों की खुशी और शांति के विशेषाधिकार को चुनौती देता है जो अपने को स्वस्थ रखने के लिए बीमार लोगों से दूर रहना चाहते हैं। संत पापा ने ऐसे लोगों से कहा कि उन्हें अलग होकर किसी बाड़े में बंद हो जाना चाहिए अथवा किसी टापू में चले जाना चाहिए जहाँ वे अपने को सुरक्षित रख सकें।

संत पापा ने अस्वस्थ लोगों के साथ सामाजिक दुर्व्यवहार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कई बार कहा जाता है कि बीमार लोगों को समाज से बाहर कर दिया जाना चाहिए क्योंकि वे संकट के समय, आर्थिक रूप से बोझ बन जाते हैं किन्तु यह अत्यन्त दुखद है जब बीमार और विकलांग व्यक्ति की ओर से लोग अपनी आँखें बंद कर लेते। वे जीवन के सही अर्थ को समझने में असफल हो जाते हैं जिसके अनुसार पीड़ा एवं दुर्बलता को भी स्वीकार किया जाना चाहिए। संसार कभी पूर्ण नहीं हो सकता किन्तु पूर्णता का एहसास अवश्य कर सकता है। संत पापा ने कहा कि दुनिया को तब पूर्ण कहा जा सकता है जब एकात्मता, आपसी स्वीकृति एवं सम्मान की मानवीय भावनाओं में वृद्धि हो। यहाँ प्रेरित के कथन बिलकुल सही साबित होते हैं जिन्होंने कहा था, ″ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं।″ (1कोर.1:27)

प्रवचन में संत पापा ने संत लूकस रचित सुसमाचार पाठ (लूक.7:36-8:3) पर चिंतन करते हुए कहा, ″इस रविवार का सुसमाचार पाठ कमजोरी की खास स्थिति को प्रस्तुत करता है। महिला जो पाप में पकड़ी गयी थी उसका न्याय कर उसका बहिष्कार किया गया था फिर भी, येसु उसका स्वागत करते एवं उसकी रक्षा करते हैं। येसु का निष्कर्ष था, ″इसने बहुत अधिक प्यार दिखाया है।″ (47) उन्होंने महिला की पीड़ा एवं उसकी प्रार्थना को समझा। यही ईश्वर की कोमलता है जिसे वे पीड़ित एवं उपेक्षित लोगों के प्रति व्यक्त करते हैं। पीड़ित न केवल शारीरिक कष्ट उठाता किन्तु आध्यात्मिक रूप से भी परेशान होता है। यह हृदय की पीड़ा है और प्रेम की कमी के कारण उदासी लाता है। जब हम निराश हो जाते अथवा अहम रिश्तों में विश्वासघात का अनुभव करते हैं, तब हम यह महसूस करते हैं कि हम कितने कमजोर और असुरक्षित हैं। हम आत्मकेंद्रित होने के प्रलोभन में बढ़ते लगते और जीवन के महत्वपूर्ण अवसर प्रेम करने के मौके को खो देने के खतरे में पड़ जाते हैं।

संत पापा ने जीवन में खुशी पाने का उपाय बतलाते हुए कहा कि खुशी जिसकी हर व्यक्ति कामना करता है, कई माध्यमों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और तभी प्राप्त किया जा सकता है जब हम प्रेम करने के योग्य हैं। प्रेम करने का यही एक तरीका है इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। वास्तविक चुनौती यह है कि कौन अधिक प्रेम करता है। कितने बीमार एवं विकलांग लोग जीवन में उस वक्त अपने हृदय को खोलते हैं जब उन्हें यह महसूस होता है कि वे प्यार किये जाने के योग्य हैं। मुस्कान एक अच्छा इलाज है क्योंकि केवल इसके द्वारा कितना अधिक प्रेम भरा जा सकता है। हमारी एकाकी में दुर्बलता ही सहानुभूति एवं समर्थन का स्रोत बन जाती है। येसु ने अपने दुःखभोग में अंत तक हमें प्रेम किया। उन्होंने क्रूस पर अपने असीम प्रेम को प्रकट किया। जब हम ईश पुत्र के दुःखभोग की याद करते हैं तो क्या हम अपनी पीड़ाओं एवं अस्वस्थ स्थिति के साथ ईश्वर के पास आ सकते हैं? शारीरिक पीड़ा के साथ येसु को अपमान, तिरस्कार एवं घृणा का भी सामना करना पड़ा था फिर भी उन्होंने दया के साथ प्रत्युत्तर देते हुए उन्हें स्वीकारा तथा क्षमा प्रदान की। उनके घावों द्वारा हम चंगा किये गये हैं। येसु एक ऐसे डॉक्टर हैं जो प्रेम की दवाई से चंगा करते हैं क्योंकि वे सभी की पीड़ा को अपने ऊपर ले लेते हैं तथा हमें मुक्त करते हैं। ईश्वर हमारी कमज़ोरियों को अच्छी तरह समझते हैं क्योंकि उन्होंने खुद इसका अनुभव किया है।

संत पापा ने दुःख सहने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम जिस तरह बीमारी एवं विकलांग स्थिति का सामना करते हैं एक संकेत है कि हम प्रेम हेतु त्याग करने के लिए तैयार हैं। हम जिस रीति से दुःख और बीमारी को स्वीकार करते हैं वह हमारी स्वतंत्रता की माप है जो जीवन के अनुभव को सार्थक बनाता है। संत पापा ने सभी बीमार एवं विकलांग लोगों से कहा कि वे अपने दारुण दुःख से परेशान न हों क्योंकि इस दुर्बलता द्वारा हम बलिष्ठ बनते हैं तथा ख्रीस्त के शरीर कलीसिया में कमी को पूरा करने की कृपा प्राप्त कर सकें। क्योंकि यह शरीर (कलीसिया) पुनर्जीवित प्रभु का प्रतीक है जो अपने घावों के साथ है, वह कठिन संघर्ष से गुजरती किन्तु ये दुःख प्रेम द्वारा बदल दिए जाते हैं।








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