2016-06-01 17:26:00

फरीसी और नाकेदार का दृष्टान्त


वाटिकन सिटी, बुधवार 01  मई 2016, (सेदोक, वी.आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को, धर्मग्रन्थ पर आधारित ईश्वर की करुणा विषय पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए इतालवी भाषा में कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

पिछले बुधवार को हमने न्यायकर्ता और विधवा के दृष्टान्त के बारे में सुना जो हमें प्रार्थना में अटल बने रहने को कहा है। आज एक दूसरे दृष्टान्त के द्वारा येसु हमें  शिक्षा देते हैं कि प्रार्थना के संदर्भ में पिता की करुणा के आह्वान हेतु हमारा सही मनोभाव क्या होना चाहिए। आइये हम फरीसी और नाकेदार के दृष्टान्त पर मनन करें। (लूका. 18.9-14) 

दो व्यक्ति ईश्वर के मन्दिर में प्रार्थना करने हेतु जाते हैं लेकिन उनके मनोभाव एक दूसरे से एकदम भिन्न हैं जो उनके लिए विपरीत परिणाम लेकर आते हैं। फरीसी खड़ा हो कर बहुत सारी शब्दों का प्रयोग करता है। हाँ उनकी प्रार्थना में ईश्वर के प्रति कृतज्ञता के शब्द उच्चरित होते हैं लेकिन वास्तव में वह अपने कार्यों का दिखावा करता हैं जिसमें बड़प्पन की भावना हैं जिसमें वह दूसरे को नगण्य समझते हुए इन शब्दों का उपयोग करता है कि यह नाकेदार चोर, अन्यायी और व्यभिचारी है। फरीसी ईश्वर से प्रार्थना तो करता है लेकिन यहाँ एक समस्या है, वह मन्दिर में उपस्थित है लेकिन वह सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने सिर झुकने की जरूरत नहीं समझता है। वह इस तरह तन कर खड़ा है मानो वह मन्दिर का मालिक हो। वह उन कार्यों की चर्चा करता हैं जो हमारी पहुँच के बाहर हैं, संहिता के नियमों का पालन, सप्ताह में दो दिन उपवास और अपनी आमदनी का दंशमश दान करना। संक्षेप में फरीसी प्रार्थना की अपेक्षा संहिता के नियमों का पालन करता है लेकिन उसके मनोभव ईश्वर के कार्य और मनोभावों से दूर हैं जो सबों को प्रेम करते और पापियों से घृणा नहीं करते हैं। थोड़े शब्दों में ईश्वर के महत्वपूर्ण नियम, ईश्वर और अपने पड़ोसी प्रेम की अवहेलना फरीसी के लिए उचित जान पड़ता है।

क्या यह हमारे लिए आवश्यक नहीं कि हम अपने आप से पूछे, हम जो इतना प्रार्थना करते हैं हमें कैसी प्रार्थना करनी चाहिए, हमारे हृदयों को कैसा होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने मनोभावों, विचारों की जाँच करें और अभिमान और ढ़ोगीपन को अपने से उखाड़ फेंके। हम अपने दैनिक जीवन में बहुधा करुणा के अनुभव, उलझन और घबराहट से ग्रसित रहते हैं। हमें अपने जीवन में हृदय के राह को खोजने सीखना है जहाँ शांति और घनिष्ठता में येसु हम से मिलते और हम से बातें करते हैं। केवल ऐसा करने से ही हम दूसरों से मिलकर उनसे बातें कर सकते हैं। फरीसी मन्दिर से बड़े विश्वास में निकला लेकिन उसने यह अनुभव नहीं किया कि उसने अपने हृदय का मार्ग खो दिया है।

लेकिन नाकेदार जो मन्दिर में प्रार्थना करने जाता है वह नम्र और पश्चातापी हृदयी है। वह दूर में खड़ा, स्वर्ग की ओर अपनी आँखें उठाने के योग्य भी नहीं, अपनी छाती पीटता है। उसकी प्रार्थना छोटी है, “हे ईश्वर मुझ पापी पर दया कर।” वास्तव में चुंगी जमा करने वाले “नाकेदार” अशुद्ध लोग थे, वे विदेशी वशवर्ती थे जिनसे लोग घृणा करते उनकी गिनती मुख्यतः “पापियों ” में होती थी। यह दृष्टान्त, न्यायी या पापी होना सामाजिक संबंध के कारण को नहीं बतलाता लेकिन हमें ईश्वर और अपने भाइयों से संबंध बनाने की बात का जिक्र करता है। नाकेदार का पश्चातापी हृदय और प्रार्थना इस बात का साक्ष्य देता है कि वह अपनी दयनीय दशा से वाकिफ है। उसकी प्रार्थना महत्वपूर्ण है। विश्वास में उसकी नम्र प्रार्थना यह दिखलाती है कि उसे दया की जरूरत है। फरीसी कुछ नहीं माँग क्योंकि उसके पास सबकुछ है। नाकेदार केवल ईश्वर की करुणा की भीख माँगता है। “खाली हाथ”, खाली हृदय अपने को यह स्वीकारना की वह पापी है। यह हमें इस स्थिति को दिखलाता है कि क्षमा प्राप्ति हेतु हमें किन चीजों की जरूरत हैं। वह घृणित नाकेदार हमारे लिए सच्चे विश्वासी का उदाहरण बनाता है।

एक वाक्य के द्वारा येसु दृष्टान्त समाप्त करते हैं, “मैं तुम से कहता हूँ, वह नहीं, वरन् नाकेदार पापमुक्त हो कर अपने घर गया।” क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा परन्तु जो अपने को छोटा मनाता है वह बड़ा बनाया जायेगा।” (14) उनमें से दोनों में कौन भष्ट है ? फरीसी। अतः जीवन में आप यह सोचते हैं कि आप सही हैं और दूसरों का न्याय करते हुए उन्हें घृणा की नजरों से देखते हैं तो आप भष्ट और ढ़ोगी हैं। घमंड सभी अच्छी चीजों को प्रभावित करती, प्रार्थना को व्यर्थ ईश्वर से और अन्यों से दूर ले जाती हैं। नम्रता ईश्वर को प्यारी है जो उनकी करुणा के एहसास हेतु हमें जरूरी है जो हमारे खालीपन को भरता है। घमंडी की प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुँचती लेकिन दीन की नम्रता उनके दिल को खोलती है। कुँवारी मरियम ने इसी दीनता द्वारा अपने ईश्वर की महिमा का गुणगान किया“ उसने अपने दीन दासी पर कृपा दृष्टि की है, उसकी कृपा अपने श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।(लूका. 1.48.50)

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थ यात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए कहा,

मैं अँग्रेज़ी बोलने वाले तीर्थयात्रियों का जो इस आमदर्शन समारोह में भाग लेने आये हैं, विशेषकर इंग्लैण्ड, आयलैण्ड, स्कोटलैण्ड, नार्व, स्वीडेन, वियतनाम, चीन, इन्डोनेशिया, फिलीपीन्स, नाइजीरिया, कनाडा, और संयुक्त राज्य अमरीका से आये आप सबों का अभिवादन करता हूँ। मेरी शुभकामना भरी प्रार्थनाएँ और वर्तमान करुणा की जयन्ती वर्ष आपके और आप के परिवारों हेतु आध्यात्मिक नवीकरण का समय हो। येसु ख्रीस्त की खुशी और शांति आप सभों के साथ बनी रहे। इतना कहने के बाद संत पापा ने सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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