2016-05-30 16:11:00

आप सेवा कराने नहीं, सेवा करने आये हैं, संत पापा


 

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 29 मई को उपयाजकों की जयन्ती के उपलक्ष्य में संत पापा फ्राँसिस ने पावन ख्रीस्तयाग अर्पित किया तथा देवदूत प्रार्थना का पाठ किया।

मिस्सा बलिदान के दौरान उन्होंने अपने प्रवचन में उपयाजकों के कर्तव्यों की याद दिलाई तथा कहा, “जो सेवा करता है वह समय को अपने लिए संचित नहीं करता, उसे इस भावना का परित्याग करना चाहिए कि आज का दिन मेरा है क्योंकि उसका समय, उसका अपना नहीं किन्तु ईश्वर का उपहार हैं जिसे केवल फलप्रद तरीके से ईश्वर को वापस देना हैं।”

ईश्वर का सेवक।″  (गलातियों.1.10)  संत पापा ने गलतियों के नाम लिखे संत पौलुस के पत्र पर अपना चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि संत पौलुस अपने को एक प्रेरित के रुप में प्रस्तुत करते हैं जो ईश्वर की योजना के मुताबिक चुने गये हैं। उन्होंने कहा कि प्रेरित और सेवक दो शब्द हैं जो एक साथ चलते हैं। इन्हें कभी अलग नहीं किया जा सकता। ये एक सिक्के के दो पहलू के सामान हैं। वे जो येसु का प्रचार करते हैं वे सेवा हेतु बुलाये गये हैं और जो सेवा करते हैं वे येसु को घोषित करते हैं।

येसु हमारे गुरु ने सबसे पहले इसका उदाहरण दिया। वे ईश्वर के शब्द हैं जो हमारे लिए सुसमाचार लेकर आते हैं। (इसा.61.1)  सचमुच वे हमारे लिए सुसमाचार हैं जो सेवक बने। (फिलि.2.7) “वे सेवा कराने नहीं अपितु सेवा करने आये।”(मार. 10.45) “वे हम सबों के लिए सेवक बन गये।” कलीसिया के प्रतिपालकों में से एक संत पोलिकार्प इसका जिक्र करते हैं कि हम जो उसे घोषित करते हैं हमें उनके समान बनने हेतु बुलावा मिला है, दयालु, उत्साही एवं  उनके अनुरूप सेवा के मार्ग पर चलने के लिए, जैसा कि उन्होंने हमारे लिए किया। येसु ख्रीस्त का शिष्य अपने स्वामी से मार्ग का चुनाव नहीं कर सकता। वह यदि उसे घोषित करना चाहता हैं तो उसे उनका अनुसरण करना होगा। संत पौलुस की भांति उसे सेवक बनने का प्रयत्न करना होगा। दूसरे शब्दों में, यदि सुसमाचार की घोषणा हमारा प्रेरितिक कार्य है जो हमें बपतिस्मा संस्कार में मिला है तो यह कार्य सेवा के माध्यम से पूरा होना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिसके द्वारा हम येसु के चेले बनते हैं। उनके साक्षी वे हैं जो उनकी तरह अपने भाई-बहनों की सेवा बिना थके नम्रता से करते हैं।

संत पापा ने सेवक बनने का रास्ता दिखलाते हुए कहा, ″हम कैसे अच्छे और निष्ठावान सेवक बनते हैं?″ (मति.25.21) सेवक बनने की पहली शर्त है तत्परता। एक सेवक अपने कामों को अपने लिए और अपने तरीके से नहीं करता। वह प्रतिदिन अपने को उदारता में जीने हेतु प्रशिक्षित करता है और यह अनुभव करता कि हरेक दिन दूसरों की ही सेवा के लिए है। एक जो सेवा करता है अपने लिए समय संचित नहीं करता। उसे इस भावना का परित्याग करना है कि यह दिन मेरे मेरे लिये है। उसे जानना चाहिए कि यह समय उसका नहीं है लेकिन ईश्वर की ओर से उपहार से रूप में मिला है जिसे उसे वापस करना है, केवल इस रुप में कि वह फलप्रद हो। वह जो सेवा करता है वह अपने समयसारणी का दास नहीं है लेकिन वह सभी अनिश्चितताओं का सामना करने, अपने भाई-बहनों और ईश्वर के निरन्तर आश्चर्य हेतु तैयार रहता है। वह जो सेवा करता है वह ईश्वर द्वारा प्राप्त विस्मय के प्रति खुला रहता है। वह अपना द्वार खोलने तथा अपने यहाँ दूसरों को स्थान देना जानता है, यहाँ तक की जो असमय दस्तक दिये जाने पर भी। जो सेवा करता है उसे अपने समयसारणी की चिंता नहीं होती।

संत पापा ने कहा,“ मैं इससे बहुत अधिक विचलित हो जाता हूँ जब मैं एक पुरोहित को समयसारणी का अनुसरण करते देखता हूँ।  जब द्वार खुला नहीं रहता, कोई पुरोहित, कोई उपयाजक और कोई लोकधर्मी लोगों के स्वागत हेतु नहीं रह जाते, यह अच्छी बात नहीं है। आप अपने समय की चिंता न करें। समयसारणी के पार देखने का साहस करें।″ इस तरह प्रिय उपयाजकों, यदि आप दूसरों के लिए उपलब्ध रहते हैं तो यह खुद की सेवा नहीं लेकिन आप प्रेरितिक रुप से फलप्रद होंगे।

आज का सुसमाचार भी सेवा की चर्चा करता हैं। यह दो सेवकों का जिक्र करता जिनसे हम बहुत कुछ सीखते हैं, शतपति का सेवक जिसे येसु चंगाई प्रदान करते और स्वयं शतपति जो सम्राट की सेवा करता था। शतपति के शब्द जो येसु को उनके घर आने से रोकते हैं अति विलक्षण हैं हमारे शब्दों से एकदम भिन्न हैं, “प्रभु मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर आयें।” (मति.7.6)  येसु उनके शब्दों की तारीफ करते हैं। वे उसकी नम्रता पर अभिभूत हैं। नम्रता एक उपयाजक का गुण होना चाहिए। जब एक उपयाजक नम्र है तो वह दूसरों की सेवा करता है। शतपति अपनी ओर से अपने ओहदे का रोब दिखा सकता था क्योंकि वह कठिनाई में था और उसे चिन्ता थी। वह येसु के साथ जोर-जबरदस्ती कर सकता था लेकिन वह दीन बन रहा। उन्होंने कुछ दिखावा नहीं किया। उसने शायद बिना सोचे-विचारे ऐसा व्यवहार किया होगा जो ईश्वर के समान नम्र और स्वभाव से दीन बना रहा। (मति.11. 29)  ईश्वर जो प्रेम हैं, प्रेम से सेवा करने हेतु सदैव तैयार रहते हैं। वे धैर्यवान, नम्र और समर्पित हैं वे हमारी गलतियों के लिए सताये जाते और हमारी सुधार हेतु मदद करते हैं। ये तमाम बातें ख्रीस्तीय सेवा के गुण हैं।

संत पापा ने उपयाजकों को सेवा हेतु विनम्रता के गुण में बढ़ने का परामर्श दिया।

संत पौलुस और शतपति के बाद तीसरा सेवक जो आज के पाठों के माध्यम से हमारे सामने रखा गया हैं जिसे येसु चंगाई प्रदान करते हैं। सुसमाचार हमें बतलाता है कि वह एक प्यार सेवक था जिसे स्वामी खुश थे। हम अपनी छवि उस सेवक के रुप में देख सकते हैं। हममें से प्रत्येक जन ईश्वर के प्यारे हैं जो हमें प्रेम करते हैं हमें चुनते और अपनी सेवा हेतु बुलाते हैं किन्तु हम सभी को चंगाई की जरूरत है। सेवा करने हेतु हमें एक स्वस्थ हृदय की जरूरत है। एक ऐसा दिल जिसे येसु चंगाई प्रदान करते हैं, जो क्षमाशीलता को जानता है और अपने में संकुचित नहीं है। हम येसु से प्रतिदिन चंगाई हेतु प्रार्थना करें जिससे हम उनकी तरह सच्चे सेवक बन सकें। “सेवक ही नहीं किन्तु उनके मित्र की तरह बन सकें।″  (जो.15.15)

संत पापा ने उपयाजकों से कहा, ″ प्रिय उपयाजको, आप अपनी दैनिक प्रार्थना में इस कृपा की याचना करें कि आप अपने कामों, छोटी असुविधाओं, मुसीबतों और आशा भरे जीवन को येसु को समर्पित कर दें। जब आप प्रभु की बलि वेदी के पास अपनी सेवा दे रहे होगें, वहाँ आप ईश्वर की उपस्थिति को पायेंगे जो अपने को आप के लिए देते हैं जिससे आप अपने को दूसरों के लिए दे सकें। इस तरह, सेवा हेतु तत्पर, विनम्र हृदय और नित्य येसु से वार्ता द्वारा, आप ईश्वर के सेवक बनकर ग़रीबों का आलिंगन करने से नहीं डरेंगे।

Fr. Sanjay Dilip Ekka SJ

 








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