2016-05-25 18:33:00

विधवा और न्यायकर्ता


वाटिकन सिटी, बुधवार 25 मई 2016, (सेदोक, वी.आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को, धर्मग्रन्थ पर आधारित ईश्वर की करुणा विषय पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए इतालवी भाषा में  कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

हमने न्यायकर्ता और विधवा का दृष्टान्त सुना जो हमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है- (लूका.18.1-18) हमें निरन्तर प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हिम्मत नहीं हारना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जब हमें प्रार्थना करने की इच्छा हो तब ही केवल कभी-कभी, प्रार्थना करे। नहीं, येसु हमसे कहते हैं कि हमें सदैव प्रार्थना करनी चाहिए और कभी हताश नहीं होना चाहिए। वे हमें विधवा और न्यायकर्ता का उदाहरण देते हैं।

न्यायकर्ता एक ताकतवर व्यक्ति हैं जो मूसा के नियमों के आधार पर लोगों का न्याय करता है। धर्मग्रंथ इस बात की चर्चा करता है कि जनता के न्यायकर्ता ईश्वर से डरते, उनपर श्रद्धा रखते, पक्षपात और भ्रष्ट नहीं होते है।(निग्र.18,21) लेकिन इसके विपरीत यह न्यायकर्ता न तो ईश्वर से डरता और न ही किसी का सम्मान करता था। वह एक अन्यायी न्यायकर्ता था जो नियमों पर संदेह किये बिना, अपने को जो उचित लगता वही करता था। उससे पास एक विधवा न्याय की मांग करने आती है। विधवा, अनाथ और परदेशी है जो समाज में अति संवेदनशील समुदायों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करती है। वे अपनी सामाजिक स्थिति के कारण अपने अधिकारों से दखल कर दिये जाते क्योंकि उनकी बातों का प्रतिनिधित्व कोई बलपूर्वक नहीं करता। न्यायकर्ता की उदासीनता के विरूद्ध विधवा का एक मात्र हथियार यही है कि वह न्याय की गुहार में न्यायकर्ता से बार-बार अर्जी करे। उसकी यह दृढ़ता लक्ष्य तक पहुँचती है। वह न्यायकर्ता, वास्तव में उस विधवा को न्याय दिलाता है इसलिए नहीं कि वह करुणा से प्रेरित है और न ही उसकी अंतः आत्मा उसपर दबाव डालती है वरन् इसलिए कि वह विधवा बार-बार उसे तंग न करें, वह उसके लिए न्याय की व्यवस्था करता है। इस दृष्टान्त के द्वारा येसु दो निष्कर्ष निकालते हैं यदि वह विधवा अन्यायी न्यायकर्ता को अपने बारंबार आग्रह से झुका सकती है, तो ईश्वर जो न्यायी पिता हैं, अपने चुने हुए लोगों के लिए जो उनकी दुहाई दिन रात देते हैं न्याय क्यों नहीं करेंगे। वे उनके विषय में “देर नहीं करेंगे” बल्कि वे उनकी प्रार्थनाओं को “तुरन्त” सुनेंगे। इसीलिए येसु हम से अग्रह करते हैं कि हम निरन्तर प्रार्थना करें। हमारी थकान और निराशा विशेषकर हमारी अप्रभावकारी प्रार्थनाओं के बावजूद। येसु हमें भरोसा दिलाते हुए कहते हैं कि अन्यायी न्यायकर्ता के विपरीत ईश्वर शीघ्रता से अपने बच्चों की प्रार्थनाओं को सुनते यद्यपि इसका अर्थ यह नहीं कि हम जब चाहें और जैसे चाहें यह पूरी हो जाये। प्रार्थना कोई जादुई छड़ी नहीं है। यह ईश्वर में हमारे विश्वास को बनाये रखने हेतु मदद करता है इस परिस्थिति में भी जब हम ईश्वर की योजना को अपने जीवन में नहीं समझते हैं। इसका उदाहरण स्वयं येसु ख्रीस्त हैं जिन्होंने अपने पिता के पास निरन्तर प्रार्थना की। इब्रानियों के नाम पत्र हमें याद दिलाता है कि “येसु ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बच सकते थे, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उसकी प्रार्थना सुनी गई।” देखने और सुनने में यह व्यर्थ लगता है क्योंकि येसु क्रूस पर मार डाले गये। इब्रानियों के नाम पत्र कोई गलत तथ्य का जिक्र नहीं करता क्योंकि ईश्वर ने अपने बेटे को बचाया और उसे विजयी घोषित किया, इसके लिए उसे मृत्यु से होकर गुजरना जरूरी था। गेतसेमानी बारी में येसु के द्वारा अपने पिता से की गई प्रार्थना सुनी गई जहाँ वे पिता से यह निवेदन करते हैं कि दुःखभोग का कड़वा प्याला उनके सामने से दूर किया जाये। येसु की प्रार्थना में पिता के प्रति विश्वास है जो पिता की इच्छा को नहीं रोकता और इसलिए येसु कहते हैं मेरी इच्छा नहीं वरन् तेरी इच्छा पूरी हो। (मती.26.29) संत पापा ने कहा कि प्रार्थना में अधिक महत्वपूर्ण कर्म नहीं वरन् पिता से हमारा संबंध महत्वपूर्ण होता है जो प्रार्थना में हमारे विचारों और आकांक्षाओं को ईश्वर की योजना के अनुरूप परिवर्तित कर देता है क्योंकि जो प्रार्थना करता है वह सर्वप्रथम ईश्वर की करुणामय प्रेम में अपने को संयुक्त करने की चाह रखता है।

संत पापा ने कहा कि दृष्टान्त एक प्रश्न के द्वारा समाप्त होता हैं, “जब मानव पुत्र धरती पर आयेगा, तो क्या वह विश्वास बचा हुआ पायेगा?” हम सबों को चेतावनी दी जाती है कि हमें प्रार्थना का परित्याग नहीं करना चाहिए यद्यपि यह नहीं सुनी जाती है। प्रार्थना हमारे विश्वास को दिखलाता है और प्रार्थना के बिना हमारा विश्वास कमजोर हो जाता है। हम ईश्वर से विश्वास हेतु निवेदन करे जिससे हम उस विधवा से समान अपने विश्वास में अडिग बने रहे और ईश्वर के करुणामय प्रेम का अनुभव कर सके।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थ यात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए कहा,

मैं अँग्रेज़ी बोलने वाले तीर्थयात्रियों का जो इस आमदर्शन समारोह में भाग लेने आये हैं, विशेषकर इंग्लैण्ड, आयलैण्ड, स्कोटलैण्ड, डेनमार्क, स्वीजरलैण्ड, चीन, इन्डोनेशिया, जापान, नाइजीरिया फिलीपीन्स, सेशेल्स, कनाडा, और संयुक्त राज्य अमरीका से आये आप सभों का अभिवादन करता हूँ। मेरी शुभकामना भरी प्रार्थना और वर्तमान करुणा की जयन्ती वर्ष आपके परिवारों के लिए आध्यात्मिक नवीकरण का समय हो। येसु ख्रीस्त की खुशी और शांति आप सभों के साथ बनी रहे। इतना कहने के बाद संत पापा ने सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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