नई दिल्ली, बुधवार, 18 मई 2016 (ऊका समाचार): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के स्वास्थ्य कार्यालय के अधिकारी "निष्क्रिय सुखमृत्यु" के वैधीकरण हेतु कानून की सरकारी योजना का विरोध कर रहे हैं।
धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के स्वास्थ्य कार्यालय के सचिव फादर मैथ्यू पेरुमपिल ने कहा, "यदि सरकार निष्क्रिय सुखमृत्यु को वैध बना देगी तो लोग सक्रिय रूप से इसमें लिप्त होना शुरू कर देंगे जो मानव प्रतिष्ठा और गरिमा के खिलाफ़ होगा।"
निष्क्रिय सुखमृत्यु तब होती है जब चिकित्सा विशेषज्ञ या तो उपचार बन्द कर देते हैं या फिर रोगी को जीवित रखने की कोई चेष्टा नहीं करते हैं।
ऊका समाचार से फादर पेरुमपिल ने कहा, "कानूनी दृष्टिकोण से अधिक हमें दयालु दृष्टिकोण रखने की जरूरत है।"
भारतीय सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने रोगियों एवं चिकित्सकों के संरक्षण के लिये असाध्य रोगियों सम्बन्धी एक विधेयक का मसौदा तैयार किया है तथा इस पर जनता का सुझाव आमंत्रित किया है।
09 मई को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाईट पर विधोयक का मसौदा प्रकाशित किया गया था। "विधेयक को कानून में परिणत किया जाये अथवा नहीं" पर आगामी माह तक सार्वजनिक वाद-विवाद सम्भव है।
काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा के अनुसारः "कारण एवं साधन जो भी हों, प्रत्यक्ष सुखमृत्यु का अर्थ है विकलांग, रोगी अथवा मरणासन्न व्यक्ति के जीवन का अन्त करना जो नैतिक रूप से अस्वीकार्य है।" काथलिक कलीसिया की धर्मशिक्षा में यह भी लिखा है कि "जानबूझकर की गई सुखमृत्यु," भले ही उसका प्रकार अथवा मकसद जो भी हो, हत्या ही है।"
विश्व व्यापी काथलिक उदारता संगठन कारितास के कार्यकारी निर्देशक फादर फेडरिक डिसूज़ा ने ऊका समाचार से कहा, "निष्क्रिय सुखमृत्यु उस व्यक्ति की हत्या के बराबर है जो अपनी सहमति देने की स्थिति में नहीं है।"
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