2016-05-13 15:24:00

आदिवासी ईसाइयों द्वारा झारखंड में "स्थानीयता नीति" का विरोध


नई दिल्ली, शुक्रवार, 13 मई 2016 (ऊकान) : कलीसिया के नेताओं सहित आदिवासी लोगों ने झारखंड सरकार द्वारा पारित "स्थानीयता नीति" का विरोध किया है। सरकार की इस नई नीति के अनुसार आदिवासी बहुल क्षेत्र में बाहर से आये गैरआदिवासी लोग जो पिछले 30 साल या उससे अधिक साल से झारखंड में रह रहे हैं वे मूल निवासियों के समान राज्य के सामाजिक लाभ पाने के हकदार होंगे।

सन् 2000 में बिहार राज्य के विभाजन से बने झारखंड राज्य के मंत्रिमंडल ने 7 अप्रैल को आदिवासियों के विकास हेतु तैयार किये गये "स्थानीयता नीति" को मंजूरी दे दी है।

विदित हो कि लंबे समय से एक अलग राज्य के निर्माण करने की माँग में आदिवासियों के नौकरियों और शैक्षिक सुविधाओं में लाभ के निर्धारण में यह नीति निहित थी।

गुमला धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष पौल अलोईस लकड़ा ने कहा, "कलीसिया ने इस नीति का विरोध किया है, इस नीति से स्थानीय लोगों की तुलना में बाहरी लोगों को अधिक मदद मिलेगी। "

उन्होंने कहा, "इस नई नीति के तहत  स्थानीय आदिवासियों को गैरआदिवासियों के साथ सरकारी नौकरियों और शैक्षिक सीटों के आरक्षण को साझा करना होगा।"

नीति के आलोचकों का कहना है कि 1947 में भारत की आजादी के बाद, जब से खनन और उद्योगों के क्षेत्र को विकसित करने के लिए शुरू किया,  तब से सैकड़ों गैरआदिवासी बाहरी लोगों ने झारखंड में पलायन शुरू कर दिया।

धर्माध्यक्ष लकड़ा ने कहा कि कलीसिया के अधिकारियों ने राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यालय में अधिकारियों से संपर्क किया है। उन्होंने आश्वासन दिया गया है कि नीति अभी भी बदली जा सकती है।

उन्होंने कहा कि ईसाई समूहों सहित आदिवासियों ने 15 मई को आदिवासियों के पक्ष में इस नीति को बदलने हेतु सरकार पर दबाव डालने के लिए एक राज्यव्यापी विरोध की योजना बनाई है।

 गुमला धर्मप्रांत के प्रतिधर्माध्यक्ष फादर सिप्रियन कुल्लु ने कहा कि सरकार "स्थानीय लोगों की तुलना में बाहरी लोगों के बारे में चिंतित है" क्योंकि राजनीति में बाहरी लोग ज्यादा प्रभावशाली हैं। झारखंड राज्य की 32 लाख आबादी में करीब 1 लाख आदिवासी ईसाइयों की संख्या है।

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आदिवासी शोधकर्ता फादर विन्सेंट एक्का ने ऊका समाचार से कहा कि इस नीति से आदिवासियों की तुलना में बाहरी लोगों को सरकारी नौकरियाँ पाने में मदद मिलेगी क्योंकि ज्यादातर आदिवासी लोग इसके लिए काबिल नहीं हैं।








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