2016-05-11 15:35:00

करुणामय पिता के दृष्टान्त पर मनन


वाटिकन सिटी, बुधवार 23 मार्च 2016, (सेदोक, वी.आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को, धर्मग्रन्थ पर आधारित ईश्वर की करुणा विषय पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए इतालवी भाषा में  कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज हम करुणामय पिता के दृष्टान्त पर मनन करेंगे। यहाँ पिता और उनके दो पुत्रों का जिक्र करता है जहाँ हम ईश्वर के अतुल्य प्रेम के बारे में सुनते हैं।
हम अंतिम छोर से शुरू करें जहाँ पिता के हृदय की खुशी झलकती है जो कहते हैं, “हम आनन्द मनायें क्योंकि मेरा यह पुत्र जो मर गया था पुनः जीवित हो गया है, जो खो गया था वह मिल गया है।(लूका.23-24) इन शब्दों के द्वारा पिता अपने पुत्र को स्वीकार करते हैं जो अपनी गलतियों को स्वीकारते हुए कहता है, “मैं आप का सुपुत्र कहलाने योग्य नहीं रहा...(लूका. 19)। लेकिन ये वचन उसके पिता हेतु असहनीय हैं जो अपने बेटे की ओर झुकते और उसे सम्मान देते हेतु सुन्दर वस्त्र, अंगूठी, जूते पहनाने का आग्रह करते हैं। येसु उस पिता का जिक्र करते हैं जिसे अपने बेटे की चिन्ता है जो सही सलामत वापस लौट आया है। बेटे के स्वागत को बहुत ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। “वह दूर था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और दया से द्रवित हो उठा। उसने दौड़ कर उसे गले लगा लिया और उसका चुम्बन किया।”(लूक. 20) पिता की करुणा असीमित और शर्तहीन है जो अपनी संतान के कुछ कहने से पहले ही बोल उठता है, जबकि वास्तव में संतान अपनी गलती को जाने, पहचाने और उसके स्वीकार करे। “मैंने पाप किया है... मुझे अपने सेवकों में से एक जैसा रख लीजिए”। लेकिन ये सारे वाक्य पिता की क्षमा के सामने विलीन हो जाते हैं। पिता का आलिंगन और चुम्बन बेटे को यह एहसास दिलाता है कि इन सारी चीजों के बावजूद वह सदैव से अपने पिता का पुत्र रहा है। येसु की यह शिक्षा महत्वपूर्ण है जहाँ हम पिता के बेटे-बेटियाँ बने रहते हैं अपने गुणों के कारण नहीं वरन् पिता के दिल में हमारे लिए जो प्रेम है उसके कारण, और उस प्रेम को हम से कोई नहीं छीन सकता।
येसु के वचन हमें प्रोत्साहित करते हुए कभी हताश नहीं होने को कहते हैं। संत पापा ने कहा कि मैं उन माता-पिता के बारे में सोचता हूँ जो अपने बच्चों को खतरनाक राह में चलते हुए देखे हैं। मैं उन पल्ली पुरोहितों और प्रचारकों के बारे में सोचता हूँ जो सोचते हैं कि उनके काम व्यर्थ हैं, मैं उनके बारे भी सोचता हूँ जो क़ैदख़ानों में बन्द हैं जो सोचते हैं कि अब उनकी जिन्दगी समाप्त हो गई है। वे भविष्य को ध्यान में न रखकर अपने जीवन में गलत चुनाव कर लिये, वे जो दया और क्षमा की कमाना करते हैं लेकिन यह भी सोचते हैं कि वे इसके योग्य नहीं हैं। जीवन की किसी भी परिस्थिति में हमें कदापि यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें कोई भी चीज ईश्वर के बेटे-बेटियाँ होने से नहीं रोक सकती क्योंकि पिता हमें प्रेम करते और सदैव हमारे वापस आने की राह देखते हैं।

संत पापा ने कहा कि इस दृष्टान्त में दूसरा पुत्र, जो बड़ा बेटा है उसे पिता की करुणा से रूबरू होने की जरूरत है। वह सदैव अपने पिता के घर में रहा है लेकिन वह अपने पिता से एकदम भिन्न है। उसके शब्दों में कोमलता का अभाव है। “देखिए, मैं इतने बरसों से आपकी सेवा करता आया हूँ। मैंने कभी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया...लेकिन जैसे ही आप का यह बेटा आया...(लूका.29-30)। उसने अपने संबोधन में कभी “पिता” और “भाई” जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया। वह शेखी बघारता है कि उसने हमेशा पिता के साथ रहकर उसकी सेवा की फिर भी वह कभी प्यार में खुशी का एहसास नहीं किया। वह अपने पिता पर दोषारोपण करता है कि उसने उसे बकरी का बच्चा तक नहीं दिया जिससे वह अपने मित्रों से साथ आनन्द मना सके। पिता की स्थिति कितनी दयनीय है एक बेटा दूर चला गया था और दूसरा निकट रहते हुए भी कभी उसके निकट नहीं रहा।

संत पापा ने कहा कि बड़े बेटे को करुणा की आवश्यकता है। हम सभों की स्थिति बड़े बेटे जैसी है क्योंकि हम बहुधा सोचते हैं कि इतना मेहनत करने से क्या फायदा जब हमें बदले में कुछ नहीं मिलेगा। येसु हमें याद दिलाते हैं कि पिता के घर में मेहनताना नहीं है लेकिन परिवार के सदस्य के रूप में हमारा उत्तरदायित्व है। ईश्वर के साथ हमें लेन-देन नहीं वरन् येसु से साथ उनके पद चिन्हों पर चलना है जिन्होंने हमारे लिए क्रूस पर अपना सब कुछ निछावर कर दिया।

पिता अपने बड़े बेटे से कहते हैं, “बेटा तुम तो सदा मेरे साथ रहते हो और जो मेरा है वह तुम्हारा है...।” यह करुणा का तर्क है। छोटे बेटे ने सोचा कि पापों के कारण उसे सज़ा मिलनी चाहिए और जेष्ठ पुत्र ने सोचा कि उसे उसकी सेवा का पुरस्कार मिलेगा। दोनों भाइयों के बीच आपसी वार्ता नहीं होती। दोनों की कहनी अलग-अलग है लेकिन दोनों येसु के तर्क से विपरीत सोचते हैं यदि हम अच्छा काम करें तो हमें पुरस्कार मिलेगा और यदि हम बुरा कार्य करें तो हमें सज़ा मिलेगी। यह तर्क पिता के शब्दों द्वारा विखंडित कर दिया जाता है, “परन्तु आनन्द मानना और उल्लसित होना उचित था क्योंकि तुम्हारा यह भाई जो मर गया था वह जी गया है, जो खो गया था वह फिर मिल गया है।”(लूका.31) पिता ने अपने खोये हुए बेटे को पा लिया है और वह अपने भाई को भी मिल जायेगा। पिता के लिए सबसे बड़ी खुशी यही है कि बच्चे एक दूसरे को भाई के रूप में पहचाने।
बच्चे यह निर्णय ले सकते हैं कि वे पिता की खुशी में सम्मिलित होना चाहते हैं या नहीं। वे अपनी चाह और अपने जीवन ज़ीने के तरीके को लेकर अपने आप से सवाल कर सकते हैं। दृष्टान्त जेष्ठ पुत्र के निर्णय को खुला रखते हुए समाप्त होता है और यह हमें प्रेरणा प्रदान करता है। सुसमाचार हमें शिक्षा देता है कि हम ईश्वर पिता के घर में आनन्द, करुणा और भ्रातृत्व को मनाने हेतु प्रवेश करें। हम अपना हृदय खोलें और पिता की तरह करुणामय बनें जैसे की वे हैं। 








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