2016-04-27 11:00:00

प्रेरक मोतीः सन्त ज़ीटा (1212-1272)


वाटिकन सिटी, 27 अप्रैल सन् 2016

इटली के टोस्काना प्रान्त के एक ग़रीब ख्रीस्तीय परिवार में, सन् 1212 ई. को ज़ीटा का जन्म हुआ था। उनकी बड़ी बहन सिस्टरशियन धर्मसंघ की धर्मबहन थी तथा उनके चाचा ग्रात्सियानो एक मठवासी भिक्षु थे जिन्हें लोग सन्त मानते थे। ज़ीटा एक बहुत ही धर्मपरायण आज्ञाकारी पुत्री थी जो अपनी माता की सभी आज्ञाओं का पालन करती थी।

बारह वर्ष का आयु में, परिवार की अर्थिक मदद के लिये, ज़ीटा इटली के लूका नगर के धनवान बुनकर फान्तीनेल्ली के घर में नौकरानी बन गयी। अपने जीवन के अन्तिम 48 वर्ष ज़ीटा ने इसी परिवार की नौकरानी बनकर बिताये। अपने व्यस्त जीवन के बावजूद ज़ीटा प्रतिदिन ख्रीस्तयाग में भाग लेने तथा प्रार्थना करने का समय निकाल लिया करती थीं। घर के काम वे इतनी अच्छी तरह से करती थीं कि अन्य नौकर उनसे ईर्ष्या करने लगे थे। वास्तव में, अपने दैनिक कार्यों को वे  अपना धर्म समझती थीं। वे कहा करती थीं: "वह नौकर पवित्र नहीं हो सकता जो अपने काम में व्यस्त न रहे; आलसी लोग पवित्र नहीं हो सकते।"

निर्धनों को वे खाना खिलाया करती थीं जिसके लिये पहले तो उनके मालिक उनसे परेशान रहा करते थे किन्तु ज़ीटा के धैर्य, सहनशीलता एवं भलाई ने उन्हें भी जीत लिया था। अपने काम से समय निकाल कर ज़ीटा रोगियों एवं क़ैदियों की भी भेंट किया करती थीं। लूका में ज़ीटा के अच्छे आचरण, उनकी पवित्रता एवं धर्मपरायणता की सर्वत्र चर्चा थी। यह भी कहा जाता है कि प्रार्थना करते समय ज़ीटा को दिव्य दर्शन प्राप्त हुआ करते थे।

27 अप्रैल, सन् 1278 ई. को, फान्तीनेल्ली परिवार में ही, ज़ीटा का निधन हो गया था। उसी क्षण से लोग उन्हें सन्त ज़ीटा कहकर पुकारने लगे थे। सन्त ज़ीटा घरेलु नौकरों एवं नौकरानियों की संरक्षिका हैं। खोई हुई चाभियों के लिये भी सन्त ज़ीटा से प्रार्थना की जाती है। सन्त ज़ीटा का पर्व 27 अप्रैल को मनाया जाता है।             

चिन्तनः निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए हम जीवन के हर पल प्रभु ईश्वर का स्तुतिगान करें। 








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