2016-04-12 12:05:00

प्रेरक मोतीः सन्त जूलियस (337-352 सन्त पापा)


वाटिकन सिटी 12 अप्रैल सन् 2016

रोम के अधिकारी रुस्तिकुस के सुपुत्र जूलियस, 337 ई. से 352 ई. तक, सन्त पापा थे। छः फरवरी सन् 337 ई. को, सन्त पापा मार्क के बाद, जूलियस रोमी काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष नियुक्त किये गये थे।

अपने परमाध्यक्षीय काल में सन्त पापा जूलियस आरियन विवाद में लिप्त हो गये थे। सन् 338 ई. में निकोदेमिया के यूसेबियुस ने अथनासियुस को एलेक्ज़ेन्ड्रिया की पवित्र पीठ धर्माध्यक्ष स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। यूसेबियुस एवं उनके अनुयायियों ने जॉर्ज को नियुक्त किया तथा आरियाई लोगों ने पिस्तुस को नियुक्त कर दिया।

सन्त पापा जूलियस ने सन् 340 ई. में, विवाद का समाधान पाने के लिये, रोम में, एक सभा बुलाई थी जिसका पूर्वी रीति के धर्माधिकारियों ने बहिष्कार कर दिया था। इसके बाद यूसेबियुस के धर्माध्यक्षों को पत्र लिखकर सन्त पापा जूलियस ने फटकार बताई तथा घोषित कर दिया कि अथानासियुस ही एलेक्ज़ेनड्रिया के वैध धर्माध्यक्ष थे तथा उन्हें इस पद पर प्रतिष्ठापित कर दिया। इसके बाद कटुता बनी रही जो सन् 342-343 ई. में सम्राट कॉन्सतान्स तथा कोन्सतानतियुस द्वारा सोफिया के सारदिका में बुलाई गई सभा तक समाप्त नहीं हुई। इस सभा में सम्राट ने सन्त पापा जूलियस की कार्रवाई को उचित ठहराया और कहा कि अपदस्थ किये गये किसी भी धर्माध्यक्ष को रोम के सन्त पापा से अपील करने की अनुमति है।

सन्त पापा जूलियस ने रोम में कई गिरजाघरों एवं महागिरजाघरों का निर्माण करवाया। 12 अप्रैल सन् 352 ई. को रोम में उनका निधन हो गया था। उनका पर्व 12 अप्रैल को मनाया जाता है।             

चिन्तनः "ईश्वर ने घरिया में सोने की तरह उन्हें परखा और होम-बलि की तरह उन्हें स्वीकार किया। ईश्वर  के आगमन के दिन वे ठूँठी के खेत में धधकती चिनगारियों की तरह चमकेंगे। वे राष्ट्रों का शासन करेंगे; वे देशों पर राज्य करेंगे, किन्तु प्रभु सदा-सर्वदा उनका राजा बना रहेगा। जो ईश्वर पर भरोसा रखते हैं, वे सत्य को जान जायेंगे; जो प्रेम में दृढ़ रहते हैं, वे उसके पास रहेंगे; क्योंकि जिन्हें ईश्वर  ने चुना है, वे कृपा तथा दया प्राप्त करेंगे" (प्रज्ञा ग्रन्थ, 3:6-9)।  








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