2016-04-12 12:14:00

उत्पीड़न है कलीसिया का दैनिक आहार, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 12 अप्रैल सन् 2016 (सेदोक): सन्त पापा फ्रांसिस ने कहा है कि उत्पीड़न कलीसिया का दैनिक आहार है।

वाटिकन स्थित सन्त मर्था प्रेरितिक आवास के प्रार्थनालय में, मंगलवार को, ख्रीस्तयाग के अवसर पर प्रवचन करते हुए सन्त पापा ने कलीसिया के पहले शहीद स्तेफन और उन नन्हें शहीदों का स्मरण दिलाया जो हेरोद द्वारा मार डाले गये थे। सन्त पापा ने कहा कि इन्हीं के समान सदियों के अन्तराल में अनेकानेक ख्रीस्तानुयायी येसु ख्रीस्त में अपने विश्वास ख़ातिर मारे गये तथा अभी भी विश्व के अनेक क्षेत्रों में अनेकानेक ख्रीस्तीयों पर क्रमबद्ध ढंग से अत्याचार किये जा रहे हैं। 

सन्त पापा ने कहा कि अत्याचार दो प्रकार के होते हैं, प्रथम, जो जान लेने पर तुले होते हैं तथा गिरजाघर से बाहर आते लोगों पर आत्मघाती हमला कर देते हैं तथा द्वितीय है, श्वेत जुराबों वालों की प्रताड़ना जो समाज में व्यक्ति को लगभग बहिष्कृत सा बना देती है और यदि वह ईश नियमों के विपरीत जाने से इनकार कर देता है तो उससे उसका रोज़गार तक छीन लेती है।   

सन्त पापा ने कहा, "मैं तो कहूँगा कि अत्याचार कलीसिया का दैनिक आहार है। येसु भी कहा करते थे और यदि हम रोम के कोलोसेओ की कहानी सुनें और उसपर विचार करें तो वहाँ शहीद वे हुए सिंहों द्वारा खा लिये गये थे। कलीसिया में शहादत का सिलसिला अभी बन्द नहीं हुआ है तनिक सोचें, तीन सप्ताहों पूर्व, पाकिस्तान में पास्का महापर्व के दिन ख्रीस्त के पुनरुत्थान का पर्व मनाने वाले ख्रीस्तीयों को मार डाला गया। इसी प्रकार कलीसिया अपने शहीदों के संग-संग आगे बढ़ती रही है।"  

सन्त पापा ने कहा कि इससे भी अधिक घिनौना और क्रूर है वह अत्याचार और वह उत्पीड़न जो संस्कृति के वेश में, आधुनिकता वेश में और प्रगति के वेश में छिपा है। उन्होंने कहा, "विडम्बना यह कि इस प्रकार के उत्पीड़न को हमें शिक्षित उत्पीड़न का नाम देना पड़ रहा है। यह उत्पीड़न सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के विरुद्ध है, यह मनुष्यों से उनकी प्रतिष्ठा और उनके अन्तःकरण की स्वतंत्रता छीन लेता तथा मानवाधिकारों का घोर अतिक्रमण करता है।"

सन्त पापा ने कहा कि ये सब संसार के उत्पीड़न हैं जबकि प्रभु ईश्वर ने स्वतंत्र रहने के लिये हमारी सृष्टि की है ताकि हम उनके प्रेम के साक्षी बन सकें। सभी ख्रीस्तानुयायियों से उन्होंने अनुरोध किया कि वे प्रभु येसु के अन्तिम शब्दों को याद रखें जिन्होंने सदैव उनके साथ रहने की प्रतिज्ञा की थी तथा उनसे साहस और प्रेरणा ग्रहण करें।








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